सोमवार, 22 जून 2015

एक सच्ची घटना : जीवन है कुछ पल का...जीयो खुलके...दोस्ती और जिंदादिली से

दोस्तो एक अहम घटना आपसे शेयर कर रहा हूं। हम अक्सर अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं। जो दोस्त हैं...करीबी हैं उनसे हम केवल इसीलिए दूरी बनाए रखते हैं या तो वह याद कर लेगा या फिर हां कर लेंगे। लेकिन कभी-कभी ये इतना दुखद हो जाता है कि हम पछताते रह जाते हैं...और पिछली यादों को सहलाते रहते हैं। लेकिन वह वक्त लौटकर वापस नहीं आता।
घटना ये है कि एक बार मैं और मेरा एक करीबी मित्र दोनों आपस बात कर रहे थे...हमारी बातें ऐसे अतीत में खो गईं कि मेरे मित्र को अपने एक अन्य बचपन के मित्र का खयाल आया। उसने तुरंत उसे फोन किया। फोन उसके बेटे ने उठाया...जब उसने दोस्त के बारे में पूछा तो उसके आंखों के आंसू बह निकले और जवाब सुनते ही मानों उसके पैरों से जमीन खिसक गई हो और उसका सबकुछ लुट गया हो। फोन रखा तो असल कहानी पता चली कि उनके दोस्त को गुजरे 12 दिन हो चुके और आज उनका 12वां था। ये घटना कोई काल्पनिक नहीं ये सच्ची घटना है। हम आज की दुनिया में असल में इतने व्यस्त हो चुके हैं कि काम के अलावा परिवार तक की जिम्मेदारियों को भूल जाते हैं।
हां अभी ये घटना अभी यहीं खत्म नहीं हुई। जिस मित्र के पास बैठकर मुझे इस दुखद बात का पता चला...असल में उस घटना के बाद मैं खुद भी इतना व्यस्त हो गया कि उसके बाद उनसे मिलने का मौका तक नहीं मिला। बात में पता चला कि उनके पीलिया हो गया....इस बीमारी में वे काफी कमजोर होने के कारण कई दिन तक बिस्तर पर रहे। इस दौरान एक बार बीच में उनसे मिलने का मौका मिला। फिर करीब दो से तीन महीने तक उनसे कोई संपर्क नहीं हो सका। हाल ही में पता चला कि उनके ये बीमारी इस कदर फैल गई कि उन्हें दूसरी जिंदगी मिली। सुनकर बड़ा कष्ट हुआ...ना मैं उनकी कोई मदद कर सका और ना ही उनसे मिलने जा सका। बाद में बमुश्किल उनसे संपर्क हुआ। फिर मिलना भी।
हो सकता है कि ये घटना कई मित्रों को अच्छी ना लगे...कोरी कल्पना लगे...दकियानूसी लगे। लेकिन मेरा इस घटना को आपसे शेयर करने का  उद्देश्य केवल इतना है कि हमें पता है कि जीवन का कोई मोल नहीं होता और जीवन का कोई भरोसा भी नहीं। बस जरूरत केवल इतनी है कि जो पल हमें मिले हैं उन्हें अपने दोस्तों के साथ खुलकर जी तो सकते हैं। हमेशा संपर्क में रहो...ताकी सबकी खुशी और दुख हम बांट सकें। कोशिश हो तो उनके दुख बांट भी सकें।
                                                                               आपका एक अभिन्न मित्र
                                                                                  चन्द्रशेखर कौशिक

मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

साल 2015 में दो बार मनेगा ईद-ए-मिलादुन्नबी

योम-ए-पैदाइश : पहला 4 या 5 जनवरी और दूसरी बार 24 या 25 दिसंबर (दोनों चांद हिसाब से) को, 33 से 34 साल में रिपीट होता है इस्लामी कलेंडेर।
साल 2015 में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की योम-ए-पैदाइश का दिन ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) दो बार मनेगा।  मोहम्मद साहब की पैदाइश के पर्व को अकीदतमंद दोहरी खुशियों के साथ मनाएंगे। इस्लामी कलेंडेर 33 से 34 साल में रिपीट होने के कारण ऐसा संयोग बनेगा।
 इस्लामी कलेंडेर चांद के हिसाब से चलने के कारण इस बार इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख यानि ईद मिलादुन्नबी 4 या 5 जनवरी 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इसी तरह दिसंबर 2015 में रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख ( ईद-ए-मिलादुन्नबी) 24 या 25 दिसंबर 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इस तरह मोहम्मद साहब की पैदाइश का दिन साल 2015 में दो बार मनेगा।
 इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल में मनता है ईद-मिलादुन्नबी
 इस्लामी कलेंडेर के तीसरे माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख को ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) मनाई जाती है। यौम-ए-पैदाइश के इस पर्व पर सीरते पाक के जलसे आयोजित होते हैं। कुराने पाक की तिलावत और नाते पाक व तकरीरें की जाती हैं। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मस्जिदों, मदरसों और अन्य स्थानों पर विशेष आयोजन होते हैं। अकीदतमंद इबादत में समय बिताएंगे। कब्रिस्तान में जाकर दुरुद सलाम पढ़े जाएंगे और फातेहा ख्वानी होगी।
 मोहम्मद साहब की हिजरत के 1435 वर्ष पूरे
 मोहम्मद साहब मक्के से मदीना आए, तो उसे हिजरत कहा जाता है। वह साल हिजरी कहलाया। जामिया आलिया के निदेशक हाजी अनवर शाह बताते हैं कि मोहम्मद साहब की हिजरत को अब 1435 वर्ष हो गए।  इस्लाम में लगभग सवा लाख पैगंबर हुए। इनमें पहले पैगंबर आदम अल इस्लाम हुए, जबकि आखिरी और सबसे बड़े पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हुए। इस्लामी माह के तीसरे महीने की 12 तारीख को मोहम्मद साहब का जन्म माना जाता है। चूंकि इस्लामी कलेंडेर चांद हिसाब से चलता है।
 हर साल 11 से 12 दिन पीछे हो जाता है इस्लामी कलेंडेर
 इस्लामी कलेंडेर में प्रत्येक माह 29 या 30 दिन का होता है, फिर चांद के हिसाब से अगले माह की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कलेंडेर में जहां 365 दिन होते हैं, वहीं इस्लामी कलेंडेर में 360 दिन होते हैं। इसके अलावा हर साल इस्लामी कलेंडेर में  अंग्रेजी कलेंडेर के मुकाबले 11-12 दिन का अंतर आ जाता है। इस तरह हर बार 33 से 34 साल में इस्लामी कलेंडेर रिपीट हो जाता है। इस कारण हर ऋतु में इस्लामी पर्व मनता है। इसी करण 33 से 34 साल में एक पर्व दो बार भी आ जाता है।

अब की बजाय रियासत काल में अधिक सुदृढ़ थी जयपुर की नगरीय व्यवस्था

145 साल पहले ही हो गया था नगर परिषद का गठन
चन्द्रशेखर कौशिक.जयपुर
जयपुर की नगरीय व्यवस्था 145 साल पहले अब से अधिक सुदृढ़ थी। समय समय पर नगरीय व्यवस्था में बदलाव भी हुए। जयपुर शहर बसने के 142 साल बाद 18 अप्रैल 1869 में नगर परिषद का गठन हुआ। रियासत के समय की परिषद काफी मजबूत थी, समस्याओं के समाधान भी।
नगर परिषद के गठन के समय वर्ष 1940 का  2 लाख आबादी का शहर आज 40 लाख का जनसंख्या में तब्दील हो गया। उन दिनों में नगर की व्यवस्था के लिए निगम का बजट जहां 80 हजार हुआ करता था, आज ये बजट 775 करोड़ पहुंच गया। यही नहीं 1946 में परिषद के समय 25 वर्ग मील का क्षेत्र अब बढ़कर नगर निगम में 467 वर्ग किलोमीटर हो गया।
यूं होता गया बदलाव
 
 शुरुआती दौर में स्वास्थ्य विभाग के अधीन सफाई के काम के लिए महाराजा रामसिंह ने जयपुर नगर के सौंदर्य को यथावत बनाए रखने के लिए 1869 में नगर कमेटी की स्थापना करवाई। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स के अनुसंधान अधिकारी रहे विष्णु कुमार गौड़ और नगर परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष रहे श्याम बिहारी सक्सेना के जयपुर नगर परिषद पुस्तक में लेख के मुताबिक सन 1870 में लागू हुए प्रथम स्वायत्त शासन संबंधी कानून के तहत जयपुर नगर कमेटी को सबसे पहले बनाया गया। उन दिनों में परिषद के अध्यक्ष और सचिव की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, जबकि सदस्यों को विशिष्ट नागरिकों द्वारा नामजद किया जाता था।
-परिषद का काम शुरुआत में सफाई ही था। सन 1880 में जयपुर में सवाई माधोसिंह ने नगर कमेटी को और मजबूती प्रदान करते हुए पहली बार सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति भी की। इसके साथ ही सफाई संबंधी ट्राम वे, सार्वजनिक तहारतों, पेशाबघर, और कूड़े के लिए ट्रेचिंग ग्राउंड बनवाए गए।
-परिषद की आय सरकारी खजाने में भेजी जाती थी और सरकार ही इसका सारा खर्च वहन करती थी। लगभग चार दशक तक परिषद अपने सीमित अधिकारों के अन्तर्गत कार्य करती रही। महाराजा सवाई मानसिंह के समय 1922 में परिषद की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। 1928 तक परिषद को म्युनिसिपल कमेटी कहा जाता था,  इसके बाद इसे म्यूनिसिपल बोर्ड कहा जाने लगा और पहली बार म्यूनिसिपल नियम एवं उपनियम बनाए गए। इस समय बोर्ड के कुल 26 सदस्य होते थे। ये सभी शहर के गणमान्य नागरिक होते थे इन्हें सरकार नामजद करती थी। तब बोर्ड की वार्षिक आय एक लाख रुपए एवं व्यय लगभग 80 हजार रुपए था।
ये थी परिषद की सीमाएं
परिषद की सीमाएं उस समय रेजीडेंसी, रामबाग पैलेस, मोती डूंगरी, गलता, लाल डूंगरी,काला महादेव, ब्रह्मपुरी, शीतल निवास व नाला अमानीशाह तक थी।
 जनता को मिला पालिका प्रतिनिधि चुनने का अधिकार
 
 1938 में जयपुर नगर पालिका का गठन किया गया। इस अधिनियम के अनुसार निर्वाचकों को अपना प्रतिनिधि चुनकर बोर्ड में भेजने का अधिकार मिला। तब सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो गई। इसके बाद 1 जनवरी 1944 को नगर पालिका अधिनियम 1943 के अनुसार यह संस्था नगर परिषद के रूप में क्रमोन्नत हुई। सन 1940 तक जयपुर को 2 लाख की आबादी का शहर माना जाता था, तब सदस्यों की संख्या 34 हुई। इनमें 30 सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा और 4 सदस्यों का निर्वाचन सरकार द्वारा होता था।
पहले निर्वाचित नगर पालिका अध्यक्ष बने देवीशंकर तिवाड़ी
1944 में नगर पालिका अधिनियम बनने के बाद पहले अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी को चुना गया। ये राजस्थान में भी पहला चुनाव था। तिवाड़ी हिंदुस्तान के सबसे पुराने नगर पंचों में से भी एक माने जाते थे।
फंड की समस्या से उबरने को पहली बार लागू हुआ व्हीकल टैक्स
म्यूनिसिपल  कौंसिल में जनता को अध्यक्ष चुनने के अधिकार मिलने के साथ ही फंड जुटाने की समस्या खड़ी हो गई। तब पहले निर्वाचित अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी ने इस समय समस्या से उबरने के लिए पहली बार जयपुर शहर में व्हीकल टैक्स लागू किया।
स्थापित हुआ स्वतंत्र कोष
1 नवम्बर 1946 से संस्था का कोष भी स्वतंत्र रूप से स्थापित किया गया। वर्ष 1946-47 में इसकी आय 5 लाख 17 हजार और व्यय 7 लाख 11 हजार आंकी गई। जनसंख्या बढ़ने के साथ परिषद का क्षेत्र तब 25 वर्ग मील हो गया।
ये था क्षेत्र : उत्तर बंध दरवाजे से काला महादेव होकर गैटोर, उत्तर पश्चिम में एक सीधी रेखा व हजारी बुर्ज, उत्तर में अमानीशाह के साथ-साथ झोटवाड़ा, रामबाग तक।
 अब ये क्षेत्र : अब 40 लाख आबादी का जयपुर शहर नौ जोन में बंट गया। इनमें मोती डूंगरी जोन, हवामहल (पूर्व), हवामहल (पश्चिम), विद्याधर नगर, सिविल लाइन, सांगानेर, मानसरोवर,आमेर शामिल हैं।
1947 में सदस्यों की संख्या हुई 40 और 7 समितियों का गठन
स्वतंत्रता के पश्चात परिषद की बढ़ी जिम्मेदारियों के अनुसार सदस्यों की संख्या 40 हो गई और 7 समिति-उपसमितियों का गठन किया गया। इनमें वित्त उपसमिति, भवन निर्माण उपसमिति, हाट उपसमिति, सवारी गाड़ी उपसमिति, जनस्वास्थ्य उपसमिति, उपनियम उपसमिति, क्रय उपसमिति।
अब हो गई 17 समितियां, सदस्य संख्या हुई 91
अब समितियों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। इन समितियों में बीपीसी समिति, वित्त समिति, नियम-उपनियम समिति, स्वास्थ्य समिति तो आज भी है। वहीं क्रय समिति, सवारी गाड़ी और हाट समिति अब नहीं है। नई समितियों में अतिक्रमण समिति, विद्युत समिति, उद्यान समिति, गृहकर समिति, कार्यकारिणी समिति, लाइसेंस समिति, सीवरेज समिति, फायर समिति, गैराज समिति, अपराधों का शमन व समझौता समिति, गंदी बस्ती सुधार समिति, पशु नियंत्रण व संरक्षण समिति और सांस्कृतिक समिति शामिल हैं। अब सदस्यों की संख्या बढ़कर 91 में हो गई।
ये थे आय का स्त्रोत
गृहकर, चुंगीकर, भूमि का विक्रय, बाजार व मेले, लाइसेंस शुल्क यथा कसाई खाना,  आटा चक्कियां, कली के भट्टे, भवन निर्माण, जुर्माना,  व अन्य राजकीय अनुदान।
अब ये आय के स्त्रोत
यूडीटेक्स, होर्डिंग-बैनर, लाइसेंस, बिल्डिंग परमिशन, जमीनों का ऑक्शन, सीवरेज टैक्स, पार्किंग और कैरिंग चार्ज।
सार्वजनिक शौचालय और पेशाबघर : तब भी समस्या, आज भी
सार्वजनिक शौचालय की समस्या को नगर पालिका के समय में 1962 में भी भी महसूस किया गया। सन 1962 में 2 लाख से अधिक की जनसंख्या में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या केवल 62 थी। इस समय में 2000 की जनसंख्या के अनुरूप एक जगह कुल 250 शौचालयों की आवश्यकता थी। नगर में कुल 44 पेशाब घरों में 49 स्थान के अनुपात से 500 पेशाब घरों में 1000 स्थान होने चाहिए थे। जबकि आज 40 लाख की जनसंख्या में शहर में कुल 125 सार्वजनिक शौचालय ही हैं।
20 साल का हुआ निगम, प्रथम महापौर बने थे मोहनलाल गुप्ता
संविधान संशोधन के अनुरूप ही राज्य में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 में आवश्यक प्रावधान तय किये जाकर राज्य की कुछ नगर पालिकाओं में वर्ष 1994 में एवं शेष नगर पालिकाओं में वर्ष 1995 में चुनाव करवायें गये। 29 नवम्बर 1994 को जयपुर नगर निगम के चुनाव सम्पन्न हुये। इस चुनाव में शहर को कुल 70 वार्डों में बांटा गया। शहर के प्रथम महापौर के रूप में  मोहन लाल गुप्ता एवं उप महापौर के रूप में घनश्याम शर्मा का चुनाव किया।
ये थी आय-व्यय
1952-53
आय : 8लाख 82 हजार 992 रुपए
व्यय : खर्च 10 लाख 20 हजार 478 रुपए
1961-62
आय : 46 लाख 47 हजार 586 व्यय
व्यय : 50 लाख 66 हजार 402 रुपए
अब ये
वर्ष 2013-2014
आय 77462 .06 लाख
 व्यय 69734.05 लाख

गुरुवार, 22 मार्च 2012

कुछ लोग कह रहे हैं कि हमारा संतुलन बिगड़ गया है, वो बयान दोबारा पढ़ें : श्रीश्री

श्रीश्री रविशंकर आश्रम में श्रीश्री ने कहा कि हम इतने मूर्ख नहीं कि ये कहें कि सारे गवर्नमेंट स्कूल में नक्सलवाद पैदा हो रहा है, नक्सली क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों के बच्चे अक्सर हिंसा से ग्रस्त
आर्ट ऑफ लिविंग के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर ने कहा है कि मुख्य उद्देश्य ये नहीं है कि स्कूल सरकार चलाए या निजी संस्थाएं चलाएं। उद्देश्य ये है कि एक आदर्श व्यक्तित्व निकले। सारी निजी संस्थाएं बाजारीकरण नहीं हैं कई संस्थाएं सेवाभावी भाव से स्कूल चला रहे हैं। हम खुद भी स्कूल चला रहे हैं। 185 से ज्यादा हमारे स्कूल चल रहे हैं।
 जयपुर में प्रतापनगर सेक्टर-26 के श्रीश्री रविशंकर आश्रम में मीडिया से मुखातिब श्रीश्री ने मंगलवार को विवादित बयान के बारे में कहा कि जो नक्सलवाद से ग्रस्त क्षेत्र हैं वहां अक्सर यही पाया गया है। वहां सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चे अक्सर हिंसा से ग्रस्त पाए गए हैं। पूर्वांचल और यूपी के क्षेत्रों में पाया गया। अच्छा है राजस्थान में वो नक्सली प्रभाव नहीं। आदर्श विद्यालयों को मैंने ये प्रेरणा दी कि आप नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अपने संस्थान खोले। हम इतने मूर्ख नहीं कि ये कहें कि सारे गवर्नमेंट स्कूल्स में नक्सलवाद पैदा हो रहा है। किसी भी स्कूल को जनरलाइज नहीं करते हैं। मैं बहुत सोच समझकर बोलता हूं। कुछ लोग ये कह रहे हैं कि हमारा संतुलन बिगड़ गया है वो हमारा बयान दुबारा पढ़ें। हमने ये नक्सली क्षेत्रों के लिए कहा था। वहां कुछ रुग्ण विद्यालय हैं जिनसे इस तरह के तत्व बाहर निकल के आए हैं। उन विद्यालयों के निजीकरण पर मैंने जोर दिया है।
 नक्सल प्रभावी क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में नैतिकता की कमी     नक्सल प्रभावी क्षेत्रों में स्कूल ढंग से नहीं चल रहे वहां नैतिकता की शिक्षा नहीं दी जा रही। जब हम वहां दौरे पर थे और छोटे-छोटे बचें से बात की, कि आगे बड़े होकर क्या करना चाहते हो, तो अधिकांश बच्चों ने ये कहा कि नक्सल बनना चाहता हूं। ये नक्सली बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़े हुए थे। मैंने ऐसे क्षेत्रों में आदर्श विद्या मंदिर खोलने के लिए कहा।
 अपवाद हर जगह मिलते हैं अयोध्या के दौरे के दौरान प्राइवेट स्कूल के एक बच्चे द्वारा टीचर को गोली मारने की घटना के सवाल के बारे में श्रीश्री ने कहा कि  अपवाद हर बात में है ये जरूरी नहीं कि सभी प्राइवेट स्कूलों में अच्छा हो। वो एक मोरल और कमिटमेंट और जिम्मेदारी लेकर बच्चों को सिखाते हैं। जो सरकारी स्कूलों में नहीं दिखाई देता।
 उत्तरी व पूर्वांचल क्षेत्रों में शिक्षा पद्धति में काफी सुधार की जरूरत
 नक्सली क्षेत्रों में बच्चों को वो ही आदर्श लगता है। वहां ये सिखाया जाता है कि तुम अपने बल पर ही राज करोगे। झारखंड में, छत्तीसगढ, आंध्रप्रदेश के कई इलाकों में जाकर दौरे करो और विश्लेषण करो। वहां कई जगह ऐसा मिलेगा कि शिक्षा पद्धति में काफी सुधार की आवश्यकता है। विवाद उठाने हैं तो किसी भी बात पर उठा सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
 शिक्षा पद्धति में हो सुधार ज्यादा से ज्यादा लोग जिम्मेदारी से स्कूलों में काम करने के लिए आगे बढ़ें। वर्तमान में शिक्षा पद्धति में कई सुधार की आवश्यकता है। इसके साथ-साथ टीचर्स ट्रेनिंग की जरूरत भी है।

नव संवत 2069 : एक सदी बाद राजा-मंत्री के दोनों पद पर काबिज हुआ शुक्र। बदला ग्रहों का मंत्रिमंडल

नव संवत 2069 इस बार एक सदी बाद अनूठा संयोग लेकर आया है। इस संवत के ग्रहों का मंत्रिमंडल शुक्रवार को बदल गया। शुक्र के इस वार में राजा और मंत्री के दोनों ही पदों पर दैत्य गुरु शुक्र काबिज हो गए हैं। ज्यातिष शास्त्रीयों का मानना है कि नया संवत आधुनिक तकनीक व नवीन आविष्कार देने वाला रहेगा।

ज्योतिषविदों की मानें तो राजा और मंत्री दोनों के पद शुक्र को मिलने का ऐसा संयोग एक सदी पहले तक देखने को नहीं मिला।16 साल बाद संवत 2086 में वापस शुक्र को राजा व मंत्री के पद पर रहने का अवसर मिलेगा। पं. बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं. दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार हालांकि दोनों पदों पर एक ग्रह के आसीन रहने का अवसर तो कई बार आया,मगर शुक्र को यह अवसर एक सदी बाद मिला। विश्वावसु नाम का यह संवत्सर प्रजा में आध्यात्मिक रुचि व आस्था बढ़ाने वाला साबित होगा। वहीं लोगों में सत्ता के प्रति रोष रहेगा। धातुओं में तेजी, आर्थिक स्थिति में मजबूती और सुख-शांति देने वाला रहेगा। नए संवत में रोहिणी का वास पर्वत पर होने से कहीं-कहीं वर्षा में कमी के संकेत मिलेंगे, तो समय का वास कुंभकार के पास होने से भ्रष्टाचार में बढ़ोतरी होगी। समय का वाहन मेंढक अच्छी वर्षा के संकेत मिलेंगे।

इनसे छिनी सत्ता

संवत 2068 के दुर्गेश, मेघेश और धनेश बुध नव संवत में तीनों पदों से विहीन हो गए। वहीं इस बार इन्हें कोई पद नहीं दिया गया है। बुध के सभी पद गुरु के पास आ गए हैं। इस संवत के राजा चंद्रमा से राजा का पद छिन गया है।

ये है मंत्रिमंडल
राजा : शुक्र, मंत्री : शुक्र, सश्येश: चंद्रमा, मेघेश, फलेश व दुर्गेश : गुरु, रसेश : मंगल, धनेश व नीरसेश : सूर्य, धान्येश : शनि।

इन संवतों में राजा-मंत्री समान

अब तक यूं रहेसंवत 2063 : गुरु, संवत 2048 : सूर्य, संवत 2046 : गुरु, संवत : 2040 : गुरु, संवत 2029 : गुरु, संवत 2023 : बुध, संवत 2006 : बुध, संवत 2004 : सूर्य, संवत 1981 : शनि।

आगे यूं रहेंगे
संवत 2071 : चंद्रमा, संवत 2078 : मंगल, संवत 2082 : सूर्य, संवत 2084 : बुध, संवत 2086 : शुक्र।

रविवार, 27 नवंबर 2011

इतिहास में दूसरी बार मकर संक्रांति 15 को

अब प्रत्येक दो साल के अंतराल में 15 को ही मनेगा यह पर्व
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इतिहास में दूसरी बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। अब तक मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता था, मगर इस साल ये पर्व 15 जनवरी को दिन मनाया जाएगा। ज्योतिषविदों व खगोलविदों की राय में ऐसा पृथ्वी और सूर्य की गति में परिवर्तन के कारण होगा। हालांकि 2012 (लीप इयर) के बाद संक्रांति अगले दो साल तक 14 जनवरी को ही मनेगी। इसके बाद इसी क्रम में दो साल तक 15 जनवरी और फिर दो साल 14 जनवरी को मनाई जाएगी। ज्योतिषविदों के मुताबिक शास्त्रों में 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति होने का कोई उल्लेख नहीं है, ये तो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा हुआ पर्व है। हुआ यूं कि 14 जनवरी निकल जाने के बाद रात्रि 12 बजकर 58 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी के बजाय 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं. दामोदर प्रसाद शर्मा व ज्योतिषाचार्य चन्द्रमोहन दाधीच के मुताबिक 15 जनवरी को ही पुण्यकाल होगा। सूर्यास्त से एक घंटे 12 मिनट बाद यदि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करे तो मकर संक्रांति अगले दिन ही मनाई जाती है एवं पुण्य काल भी उसी दिन रहता है। सुनने भले ही ये अजीब लगे लेकिन वर्ष 2012 में ऐसा ही हो रहा है। 15 जनवरी को आ रही मकर संक्रांति को लेकर ज्योतिषियों व आम लोगों में हलचल शुरू हो गई है। पिछली शताब्दियों में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश अलग-अलग तारीखों में होता रहा है लेकिन 19वीं व 20वीं शताब्दी के बाद ये दूसरा मौका है जब सूर्य 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है इससे पहले वर्ष 2008 में 14 जनवरी की अद्र्धरात्रि बाद 12 बजकर 09 मिनट पर सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया था। लेकिन इस बार 2008 के संयोग से भी 49 मिनट बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। ऐसा दो शदी के बाद पहला संयोग है। संक्रांति का पुण्य काल तो 15 जनवरी को बीते सालों में कई बार आया है लेकिन 15 जनवरी को सूर्य का मकर राशि में इतनी देर से प्रवेश पहली बार हो रहा है। इसका पुण्य काल अगले दिन 15 जनवरी को प्रात:काल सूर्योदय से सांयकाल 4 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। मकर संक्रांति की तारीख बदलने से इस दिन होने वाले धार्मिक आयोजन और दान-पुण्य भी 15 जनवरी को ही किए जाने चाहिए।  

यूं मनाई मकर संक्रांति
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सन् 290 : 22 दिसंबर 16वीं व 17वीं शताब्दी में 9 व 10 जनवरी को 17वीं व 18वीं शताब्दी : 11 व 12 जनवरी 18वीं व 19वीं शताब्दी : 13 व 14 जनवरी 19वीं व 20वी शताब्दी : 14 व 15 जनवरी अब आगे ऐसे मनेगी संक्रांति 21वीं व 22 शताब्दी : 14, 15 व 16 जनवरी
 
'योतिषीय मत


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पं. बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक पृथ्वी की गति प्रतिवर्ष 50 विकला (5 विकला =2 मिनट) पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि लीप ईयर में ये दोनों वापस उसी स्थिति में आ जाते हैं। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में 22 से 24 मिनट का अंतर आ जाता है। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते 70 से 80 वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष 2080 से लगातार 15 जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा।  

खगोलीय मत
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बी.एम.बिडला प्लेनेटोरियम के सहायक निदेशक संदीप भट्टाचार्य के मुताबिक मकर संक्रांति का अंतर पृथ्वी की आयन गति के कारण होता है। इस कारण आसमान का वर्नल इक्वीनोक्स (वैज्ञानिक गणना का एक काल्पनिक बिंदु) धीरे-धीरे खिसकता रहता है। यह 26 हजार साल में एक बार आसमान का एक चक्कर पूरा करता है जो हर साल 52 सैकंड आगे खिसक जाता है। समय के साथ बदलाव जुड़ते-जुड़ते करीब 70 से 80 साल में एक साल आगे बढ़ जाता है।