शनिवार, 31 जुलाई 2010

जंतर-मंतर विश्व धरोहर सूची में शामिल........


राजा सवाई जयसिंह का सपना हुआ साकार
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ज्योतिष की सटीक भविष्यवाणी और खगोलिय घटनाओं के लिए दुनियाभर में अनूठी पहचान दर्ज करा चुका जयपुर का जंतर-मंतर अब यूनेस्कों की विश्व धरोहर सूची में शामिल हो गया है। सवाई जयसिंह की देशभर की वेधशालाओं में से एक इस वेधशाला का विश्व धरोहर में शामिल होना राजस्थानी धरती के लिए गर्व की बात है। शनिवार देर रात करीब 2 बजे पर्यटन मंत्रालय से अधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की गई तो पर्यटन मंत्री बीना काक खुद को न रोक सकी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपनी महत्वाकांक्षा को गिनाने के लिए पहुंच गई। उधर मुख्यमंत्री ने भी प्रदेश की इस उपलब्धि पर प्रशंसा जाहिर की। जंतर-मंतर अधीक्षक ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि सवाई जयसिंह का सपना आज विदेशी धरती पर भी रंग जमा रहा है इससे बढ़कर खुशी की कोई बात नहीं हो सकती।

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

सावन में फहरेगा एकता का परचम

सावन इस बार एकता का परचम फहरेगा। भगवान शिव की आराधना के इस पावन महीने में सभी धर्मों के धर्मावलंबी सांप्रदायिक सौहाद्र्र की बयार बहाएंगे।
सावन के पहले दिन जहां सावन की शुरुआत पर शिवमंदिरों में बम भोले के गुणगान से गूंज उठे। शिवमंदिरों में सहस्राभिषेक, रुद्राभिषेक का दौर शुरू हुआ। वहीं शाबान की पंद्रहवीं रात शब-ए-बारात के रूप में मनाई गई। मान्यतानुसार ईश्वर मानव के आगामी वर्ष का भाग्य तय करते हैं। मुस्लिम अनुयायियों ने गुनाहों का प्रायश्चित किया और इबादत में समय गुजारा। दूसरे दिन रोजा रखेंगे। इसी माह रमजान शुरू होंगे। केरल के प्रमुख पर्व ओणम, पारसी नववर्ष भी इस माह से शुरू हो जाएंगे। इसी बीच 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ का जन्म व तप कल्याणक और मोक्षसप्तमी पर 23 वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ का मोक्ष कल्याणक मनाया जाएगा।
सावन माह के इस अनूठे संगम में चार माह चलने वाले चातुर्मास का दौर भी शुरू हो जाएगा। इसमें हिंदू संत-महंतों के चातुर्मास प्रवेश के साथ ही जैन आचार्य-मुनियों का चातुर्मास होगा। चातुर्मास में संत महात्मों का प्रवचन से लोग लाभान्वित रहेंगे।
हिंदू व मुस्लिम त्योहार 32 से 35 वर्ष में साथ—साथ....
ज्योतिष गणना के अनुसार हिंदू त्योहार चंद्र वर्ष व सौर वर्ष के अनुपात के बराबर करते हुए मनाए जाते हैं। पंडित बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पंडित दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार मुस्लिम त्योहार चंद्रवर्ष के अनुसार ही मनाए जाते हैं। चंद्रवर्ष 354 दिन का होता है। प्रतिवर्ष 11 दिन के अंतर के कारण दोनों के त्यौहार 32 से 35 साल में साथ—साथ आ जाते हैं। जामा मस्जिद के सचिव अनवर शाह बताते हैं कि एक साथ आने वाले मुस्लिम त्योहारों में सभी के मानवमात्र के कल्याण का संकल्प लेना चाहिए।
यूं होगा सावन में संस्कृतियों का मिलन....
27 जुलाई : सावन व शब-ए-बारात, 12 अगस्त : रमजान, 15 अगस्त : भगवान नेमीनाथ का जन्म व तप कल्याणक , 16 अगस्त : मोक्षसप्तमी , 19 अगस्त : पारसी नववर्ष, 23 अगस्त : ओणम।

झूमती फिजाओं और महकती हवाओं ने चढ़ाए शिव को श्रद्धा के फूल


घंटे व घडिय़ालों से गूंजे शिवालय
सावन की फुहारों के साथ ही मंगलवार को शिव के सावन का आगाज हो गया। झूमती फिजाओं और महकती हवाओं ने सुबह शिव मंदिरों में श्रद्धा के फूल चढ़ाए।
यूं तो आषाढ़ की पूर्णिमा से ही मंदिरों में सावन की पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया था। मगर मंगलवार से शुरू हुए श्रावण के पहले दिन शहर के मंदिर बम भोले और ओम नम: शिवाय के जयकारों से गूंज उठे। इसके साथ ही कई मंदिरों में सहस्रघटाभिषेक, रुद्राभिषेक व जलाभिषेक का दौर भी शुरू हुआ। साथ ही मंदिर शिव चालीसा, रुद्रपाठ, शिव महिमा और शिव स्त्रोत के साथ ही वैदिक मंत्रों की ऋचाओं से गूंज रहे थे।
दूसरी ओर, कावडिय़ों ने गलता तीर्थ से गालव गंगा का पवित्र जल लाकर शिव का अभिषेक किया। इस मौके पर शहर के प्रमुख मंदिर ताड़केश्वर महादेव मंदिर, क्विंस रोड स्थित झाडख़ंड महादेव मंदिर, बनीपार्क स्थित जंगलेश्वर महादेव मंदिर, झोटवाड़ा रोड स्थित चमत्मकारेश्वर महादेव मंदिर, धूलेश्वर गार्डन स्थित धूलेश्वर बाग और कूकस स्थित सदाशिव ज्योतिर्लिंगेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ रही।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

इतिहास के पन्नों से भी खो गई जगन्नाथजी के रथ की सवारी

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दौज और नवमी को जयपुर में पुरातन रीति से निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथजी के रथ की सवारी अब न जाने कहां लुप्त हो गई। चारदीवारी में रहने वाली रौनक की अब किताबों में भी कहानी देखने को नहीं मिलती। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी रामगंज स्थित धाबाईजी के खर्रे से भगवान जगन्नाथ की भव्य सवारी निकलती थी। आइए जानते हैं सवारी का इतिहास-------------------------
दो सौ साल पहले से महाराजा पृथ्वीसिंह के समय से जगन्नाथजी के मंदिर से इसी रथ से ख्वासजी का रास्ता से सिरहड्योढी बाजार होकर ख्वासजी का बाग तक जगन्नाथजी की रथयात्रा निकाली जाती थी। महाराजा सवाई माधोसिंह के समय में इस रथ को पुन:निर्मित करवाया गया और धातुओं की नक्कासी की गई थी।
खूबसूरत कलाकृति व नक्काशी युक्त रथ की देवस्थान विभाग की लापरवाही के कारण छतरियां टूट चुकी है और इसमें लगे धातुओं का तो अता-पता ही नहीं है। इसमें सात छतरियां और घोड़ेनुमा आकृति बनी हुई थी। रामगंज के धाबाईजी का खुर्रा स्थित जगन्नाथजी मंदिर से जगन्नाथजी के विग्रह की सवारी को लेकर चलने वाला यह रथ देवस्थान विभाग के कल्कीजी मंदिर के बाहर लावारिस हालत में पड़ा हुआ था, जो बाद में पुजारियों के विद्रोह के बाद कल्कीजी मंदिर के रथखाना (गैराज) में रख दिया गया। जगन्नाथजी मंदिर के पुजारी ज्ञानचंद शर्मा के अनुसार पंद्रह साल पहले गैराज को देवस्थान विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया था।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

जो रस बरस रह्यो गोकुल में वह तीन लोक में नाय...


गोसेवा परिवार की ओर से जनता में गोसेवा जाग्रत करने व गोवंश की रक्षा के लिए तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा
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तबले की थाप, मंजीरे की धुन और गौ मां की रक्षा की पुकार। भक्ति की अविरल धारा से सराबोर भक्तों से खचाखच भरा गोविंददेवजी का दरबार। यहां मानो हर कोई नंदलाल और गौ की भक्ति में लीन हो गया हो। मौका था श्रीगोधाम महातीर्थ आनंदवन, पथमेड़ा और गोसेवा परिवार की ओर से प्रदेश की जनता का गोसेवा के लिए जाग्रत करने के लिए और गोवंश की रक्षा के लिए शुक्रवार को शुरू हुए तीन दिवसीय नानी बाई के मायरे का।
गिनीज बुक में नाम दर्ज करा चुका गोविंददेवजी मंदिर का सत्संग भवन मेरो प्यारो नंदलाल किशोरी राधे, किशोरी राधे-किशोरी राधे...के भजनों के साथ भक्तों की तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। गौमाता मंदिर में बह्मपीठाधीश्वर नारायणदास महाराज, पथमेड़ा के दत्तशरणानंद महाराज, महंत अंजन कुमार गोस्वामी, गोधाम के संरक्षक ज्ञानानंद महाराज तथा शुकसंप्रदाचार्य अलबेली माधुरीशरण महाराज ने दीप प्रज्वलन किया। इसके बाद व्यास पूजा की।
कथा व्यास राधाकृष्ण महाराज ने कहा कि इस संसार में गोमाता की भक्ति ही परमात्मा के अवतरण का आधार है। अकाल पीडि़त लाखों निराश्रित गोमाता की सेवार्थ गोधाम पथमेड़ा द्वारा प्रेरित गोसेवा परिवार समिति जयपुर की ओर से आयोजित नानी बाई के मायरे की कथा के माध्यम से जयपुर के भक्त गो माता की सेवा कर पाएंगे।
उन्होंने कहा कि गो मां की सेवा तन-मन-धन से करनी चाहिए। धनवान व्यक्ति को रातभर नींद नहीं आती। यहां तक कि उसे अपने परिवारजनों पर भरोसा भी नहीं रहता। यदि वह धन गोसेवा में लग जाए तो उसका जीवन सफल हो जाए। नंदबाबा के पास गोधन था, इसीलिए वहां गोपाल आए। कथा के मध्य में जो रस बरस रह्यो गोकुल में वह तीन लोक में नाय...और ए भाई मैं तो भक्तां रो दास...की पंक्तियों पर भक्त झूम उठे। कथाव्यास राधा कृष्ण ने कहा कि कंस के पास खूब धन था, लेकिन उसे चैन नहीं था और दूसरी तरफ गाय देखने के लिए भगवान गोकुल आए। भगवान छप्पन भोग, चांदी का महल बनाने से नहीं आए। गाय रे बिना भगवान का मन नहीं लगे...। उन्होंने भगवद भक्ति स्वरूप भक्त नरसी की भावपूर्ण कथा सुनाई।

जो आत्मिक ज्ञान कराए वही है सद्गुरु : आचार्य किरीट


गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत आचार्य किरीट भाई एक दिवसीय सत्संग प्रवचन
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गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत एक दिवसीय सत्संग प्रवचनों में शुक्रवार को आचार्य किरीट भाई ने कहा कि गुरु अपनी कटाक्ष दृष्टि से शिष्य का उद्धार करता है।
आचार्य ने कहा कि जीवन में गुरु हर कोई हो सकता है माता-पिता, भाई-बहिन। जो व्यवहारिक जीवन का ज्ञान दे वहीं गुरु होता है। इस दौरान भजन गायक जगदीश के निर्देशन में कलाकारों ने मेरे सद्गुरु हैं रंगरेज, चुनरिया मेरी रंग दीनी...भजन से साधकों को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। इस मौके पर किरीट भाई ने रंगरेज का अर्थ समझाते हुए कहा कि दुनिया के सभी रंग लाल, नीले और पीले रंग से बनते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु वह है जो आत्मा का ज्ञान कराए और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करे। जीवन के अंधकार और भय को हटाकर ज्ञान को बढ़ावा दे। शंका समाधान में एक शिष्य द्वारा पूछे गए प्रश्र के जबाव में उन्होंने कहा कि भक्ति मंत्र का कोई मूल्य नहीं है। भगवान बिना भक्ति के किसी के पास नहीं आते। महेात्सव में आचार्य ने भक्तों को लक्ष्मी यंत्र भेंट किए गए। इस मौके पर उन्होंने लक्ष्मीजी की कथा सुनाई और लक्ष्मी यंत्र का महत्व समझाया। अंत में लड्डू गोपालजी की पूजा की गई। इसके बाद बड़ी संख्या में भक्तों ने पादुका पूजन किया।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

जीवन के परम लक्ष्य का एक ही मार्ग, गुरुमंत्र


गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत संत आसाराम बापू की मंत्र दीक्षा............
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शहर में प्रात:काल की वेला में रविवार को चल रही मधुर सुगंधित शीतल बयार के आगाज के साथ ही भारत की वैदिक संस्कृति का दृश्य साकार हो उठा। मौका था गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत अमरूदों के बाग में योग वेदांत समिति की ओर से आयोजित तीन दिवसीय सत्संग के अंतिम दिन संत आसाराम बापू की मंत्र दीक्षा का।

हजारों साधक-साधिकाओं ने एक साथ बैठकर मंत्र जाप किया, तो पूरा वातावरण गुरु भक्ति की परंपरा के इस अनुपम सागर में रम गया। संत आसाराम बापू ने विद्या के लिए सारस्वत मंत्र की दीक्षा दी। इसके साथ ही मंत्रों का महत्व बताया। बापू ने कहा कि मंत्रों में सुसुप्त शक्तियों को जाग्रत करने की विलक्षण क्षमता होती है। यंत्र से मंत्र अधिक प्रभावशाली होता है। ओमकार पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ओमकार भगवान का स्वाभाविक नाम है। शांत बैठकर ओमकार का गुंजन करने से भगवान विश्रांति प्राप्त होती है।

ओ और न के बीच का स्थान परमात्मा का है। सद्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर श्रद्धा, तत्परता और इंद्रिय संयम के साथ साधना से मनुष्य अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। वास्तव में मनुष्य जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए है। सद्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग से जितना लाभ होता है, उतना मनमानी साधना से नहीं होता।

सामाजिक जीवन में सफलता के लिए उन्होंने आपसी स्नेह की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य को निंदा, ईष्र्या और द्वेष से बचना चाहिए। आरंभ में बापू के शिष्य सुरेशानंद ने मंत्र जाप विधि व लाभ बताए। इसके बाद बापू हवाई मार्ग से कोलकाता के लिए रवाना हुए। समिति के संरक्षक बाबूलाल गुप्ता ने बताया कि मुख्य कार्यक्रम २५ जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर सुबह दिल्ली और शाम को अहमदाबाद में होगा। प्रवक्ता तुलसी संगतानी ने कार्यक्रम की सफलता के लिए जिला प्रशासन व जनता का आभार जताया।