रविवार, 27 नवंबर 2011

इतिहास में दूसरी बार मकर संक्रांति 15 को

अब प्रत्येक दो साल के अंतराल में 15 को ही मनेगा यह पर्व
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इतिहास में दूसरी बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। अब तक मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी को मनाया जाता था, मगर इस साल ये पर्व 15 जनवरी को दिन मनाया जाएगा। ज्योतिषविदों व खगोलविदों की राय में ऐसा पृथ्वी और सूर्य की गति में परिवर्तन के कारण होगा। हालांकि 2012 (लीप इयर) के बाद संक्रांति अगले दो साल तक 14 जनवरी को ही मनेगी। इसके बाद इसी क्रम में दो साल तक 15 जनवरी और फिर दो साल 14 जनवरी को मनाई जाएगी। ज्योतिषविदों के मुताबिक शास्त्रों में 14 जनवरी को ही मकर संक्रांति होने का कोई उल्लेख नहीं है, ये तो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा हुआ पर्व है। हुआ यूं कि 14 जनवरी निकल जाने के बाद रात्रि 12 बजकर 58 मिनट पर सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। इसलिए मकर संक्रांति इस बार 14 जनवरी के बजाय 15 जनवरी को मनाई जाएगी।
पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं. दामोदर प्रसाद शर्मा व ज्योतिषाचार्य चन्द्रमोहन दाधीच के मुताबिक 15 जनवरी को ही पुण्यकाल होगा। सूर्यास्त से एक घंटे 12 मिनट बाद यदि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करे तो मकर संक्रांति अगले दिन ही मनाई जाती है एवं पुण्य काल भी उसी दिन रहता है। सुनने भले ही ये अजीब लगे लेकिन वर्ष 2012 में ऐसा ही हो रहा है। 15 जनवरी को आ रही मकर संक्रांति को लेकर ज्योतिषियों व आम लोगों में हलचल शुरू हो गई है। पिछली शताब्दियों में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश अलग-अलग तारीखों में होता रहा है लेकिन 19वीं व 20वीं शताब्दी के बाद ये दूसरा मौका है जब सूर्य 15 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश कर रहा है इससे पहले वर्ष 2008 में 14 जनवरी की अद्र्धरात्रि बाद 12 बजकर 09 मिनट पर सूर्य ने मकर राशि में प्रवेश किया था। लेकिन इस बार 2008 के संयोग से भी 49 मिनट बाद सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर रहा है। ऐसा दो शदी के बाद पहला संयोग है। संक्रांति का पुण्य काल तो 15 जनवरी को बीते सालों में कई बार आया है लेकिन 15 जनवरी को सूर्य का मकर राशि में इतनी देर से प्रवेश पहली बार हो रहा है। इसका पुण्य काल अगले दिन 15 जनवरी को प्रात:काल सूर्योदय से सांयकाल 4 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। मकर संक्रांति की तारीख बदलने से इस दिन होने वाले धार्मिक आयोजन और दान-पुण्य भी 15 जनवरी को ही किए जाने चाहिए।  

यूं मनाई मकर संक्रांति
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सन् 290 : 22 दिसंबर 16वीं व 17वीं शताब्दी में 9 व 10 जनवरी को 17वीं व 18वीं शताब्दी : 11 व 12 जनवरी 18वीं व 19वीं शताब्दी : 13 व 14 जनवरी 19वीं व 20वी शताब्दी : 14 व 15 जनवरी अब आगे ऐसे मनेगी संक्रांति 21वीं व 22 शताब्दी : 14, 15 व 16 जनवरी
 
'योतिषीय मत


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पं. बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक पृथ्वी की गति प्रतिवर्ष 50 विकला (5 विकला =2 मिनट) पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि लीप ईयर में ये दोनों वापस उसी स्थिति में आ जाते हैं। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में 22 से 24 मिनट का अंतर आ जाता है। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते 70 से 80 वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष 2080 से लगातार 15 जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा।  

खगोलीय मत
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बी.एम.बिडला प्लेनेटोरियम के सहायक निदेशक संदीप भट्टाचार्य के मुताबिक मकर संक्रांति का अंतर पृथ्वी की आयन गति के कारण होता है। इस कारण आसमान का वर्नल इक्वीनोक्स (वैज्ञानिक गणना का एक काल्पनिक बिंदु) धीरे-धीरे खिसकता रहता है। यह 26 हजार साल में एक बार आसमान का एक चक्कर पूरा करता है जो हर साल 52 सैकंड आगे खिसक जाता है। समय के साथ बदलाव जुड़ते-जुड़ते करीब 70 से 80 साल में एक साल आगे बढ़ जाता है।