योम-ए-पैदाइश : पहला 4 या 5 जनवरी और दूसरी बार 24 या 25 दिसंबर (दोनों चांद हिसाब से) को, 33 से 34 साल में रिपीट होता है इस्लामी कलेंडेर।
साल 2015 में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की योम-ए-पैदाइश का दिन ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) दो बार मनेगा। मोहम्मद साहब की पैदाइश के पर्व को अकीदतमंद दोहरी खुशियों के साथ मनाएंगे। इस्लामी कलेंडेर 33 से 34 साल में रिपीट होने के कारण ऐसा संयोग बनेगा।
इस्लामी कलेंडेर चांद के हिसाब से चलने के कारण इस बार इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख यानि ईद मिलादुन्नबी 4 या 5 जनवरी 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इसी तरह दिसंबर 2015 में रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख ( ईद-ए-मिलादुन्नबी) 24 या 25 दिसंबर 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इस तरह मोहम्मद साहब की पैदाइश का दिन साल 2015 में दो बार मनेगा।
इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल में मनता है ईद-मिलादुन्नबी
इस्लामी कलेंडेर के तीसरे माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख को ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) मनाई जाती है। यौम-ए-पैदाइश के इस पर्व पर सीरते पाक के जलसे आयोजित होते हैं। कुराने पाक की तिलावत और नाते पाक व तकरीरें की जाती हैं। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मस्जिदों, मदरसों और अन्य स्थानों पर विशेष आयोजन होते हैं। अकीदतमंद इबादत में समय बिताएंगे। कब्रिस्तान में जाकर दुरुद सलाम पढ़े जाएंगे और फातेहा ख्वानी होगी।
मोहम्मद साहब की हिजरत के 1435 वर्ष पूरे
मोहम्मद साहब मक्के से मदीना आए, तो उसे हिजरत कहा जाता है। वह साल हिजरी कहलाया। जामिया आलिया के निदेशक हाजी अनवर शाह बताते हैं कि मोहम्मद साहब की हिजरत को अब 1435 वर्ष हो गए। इस्लाम में लगभग सवा लाख पैगंबर हुए। इनमें पहले पैगंबर आदम अल इस्लाम हुए, जबकि आखिरी और सबसे बड़े पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हुए। इस्लामी माह के तीसरे महीने की 12 तारीख को मोहम्मद साहब का जन्म माना जाता है। चूंकि इस्लामी कलेंडेर चांद हिसाब से चलता है।
हर साल 11 से 12 दिन पीछे हो जाता है इस्लामी कलेंडेर
इस्लामी कलेंडेर में प्रत्येक माह 29 या 30 दिन का होता है, फिर चांद के हिसाब से अगले माह की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कलेंडेर में जहां 365 दिन होते हैं, वहीं इस्लामी कलेंडेर में 360 दिन होते हैं। इसके अलावा हर साल इस्लामी कलेंडेर में अंग्रेजी कलेंडेर के मुकाबले 11-12 दिन का अंतर आ जाता है। इस तरह हर बार 33 से 34 साल में इस्लामी कलेंडेर रिपीट हो जाता है। इस कारण हर ऋतु में इस्लामी पर्व मनता है। इसी करण 33 से 34 साल में एक पर्व दो बार भी आ जाता है।
साल 2015 में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की योम-ए-पैदाइश का दिन ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) दो बार मनेगा। मोहम्मद साहब की पैदाइश के पर्व को अकीदतमंद दोहरी खुशियों के साथ मनाएंगे। इस्लामी कलेंडेर 33 से 34 साल में रिपीट होने के कारण ऐसा संयोग बनेगा।
इस्लामी कलेंडेर चांद के हिसाब से चलने के कारण इस बार इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख यानि ईद मिलादुन्नबी 4 या 5 जनवरी 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इसी तरह दिसंबर 2015 में रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख ( ईद-ए-मिलादुन्नबी) 24 या 25 दिसंबर 2015 (चांद के हिसाब से) को होगी। इस तरह मोहम्मद साहब की पैदाइश का दिन साल 2015 में दो बार मनेगा।
इस्लामी माह रवि-उल-अव्वल में मनता है ईद-मिलादुन्नबी
इस्लामी कलेंडेर के तीसरे माह रवि-उल-अव्वल की 12 तारीख को ईद-ए-मिलादुन्नबी (बारावफात) मनाई जाती है। यौम-ए-पैदाइश के इस पर्व पर सीरते पाक के जलसे आयोजित होते हैं। कुराने पाक की तिलावत और नाते पाक व तकरीरें की जाती हैं। मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में मस्जिदों, मदरसों और अन्य स्थानों पर विशेष आयोजन होते हैं। अकीदतमंद इबादत में समय बिताएंगे। कब्रिस्तान में जाकर दुरुद सलाम पढ़े जाएंगे और फातेहा ख्वानी होगी।
मोहम्मद साहब की हिजरत के 1435 वर्ष पूरे
मोहम्मद साहब मक्के से मदीना आए, तो उसे हिजरत कहा जाता है। वह साल हिजरी कहलाया। जामिया आलिया के निदेशक हाजी अनवर शाह बताते हैं कि मोहम्मद साहब की हिजरत को अब 1435 वर्ष हो गए। इस्लाम में लगभग सवा लाख पैगंबर हुए। इनमें पहले पैगंबर आदम अल इस्लाम हुए, जबकि आखिरी और सबसे बड़े पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब हुए। इस्लामी माह के तीसरे महीने की 12 तारीख को मोहम्मद साहब का जन्म माना जाता है। चूंकि इस्लामी कलेंडेर चांद हिसाब से चलता है।
हर साल 11 से 12 दिन पीछे हो जाता है इस्लामी कलेंडेर
इस्लामी कलेंडेर में प्रत्येक माह 29 या 30 दिन का होता है, फिर चांद के हिसाब से अगले माह की शुरुआत होती है। अंग्रेजी कलेंडेर में जहां 365 दिन होते हैं, वहीं इस्लामी कलेंडेर में 360 दिन होते हैं। इसके अलावा हर साल इस्लामी कलेंडेर में अंग्रेजी कलेंडेर के मुकाबले 11-12 दिन का अंतर आ जाता है। इस तरह हर बार 33 से 34 साल में इस्लामी कलेंडेर रिपीट हो जाता है। इस कारण हर ऋतु में इस्लामी पर्व मनता है। इसी करण 33 से 34 साल में एक पर्व दो बार भी आ जाता है।
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