शनिवार, 11 सितंबर 2010

गणपति चतुथी : ईद-उल-फितर-33वर्ष बाद एक साथ



बाराने रहमत के साथ नमाजियों का इस्तकबाल
भोर होते ही पक्षियों की चहचहाहट के साथ रिमझिम बारिश की बूंदों का आगमन। प्रथम पूज्य गणेश के दर्शनों के लिए भक्तों की कतार और श्रद्धा का अटूट नजारा। वहीं दूसरी ओर ईद—उल—फितर के पावन पर्व पर अकीदतमंदों बारगाह-ए-यजदी में सजदा। गणपति के मंत्रों की अविरल धारा और ईद के पावन मौके पर खुदा की बारगाह में अकीदतमंदों के सजदे के बीच मानो इंद्रदेव भी उनके अभिवादन में उमड़ पड़े। ईद और गणेश चतुर्थी का पर्व 33वर्ष बाद एक साथ आया। अब यह पावन मौका 99 साल बाद आएगा।
प्रणम्ये शीर्षादेवं गौरीपुत्र विनायकं....
गणेश चतुर्थी पर मानो पूरा शहर प्रथम पूज्य की अगवानी में डूब गया हो। शहर के प्रमुख गणेश मंदिरों के अलावा घर—घर में सुबह से ही गौरीपुत्र की महिमा का गान शुरू हो गया।
मोतीडूंगरी गणेशजी मनोहारी पोशाक में नजर आए। वहीं भगवान गणेश स्वर्णमंडित मुकुट और चांदी की धोती में आकर्षक मुद्रा में नजर आ रहे थे। इस अवसर पर मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में महंत कैलाश शर्मा के सान्निध्य में विभिन्न झांकियों में मनोहारी पोशाकों के साथ आरती की गई। इसके अतिरिक्त गणेश चतुर्थी पर गढ़ गणेश मंदिर, लाल डूंगरी गणेश मंदिर, नहर के गणेश मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर, दिल्ली रोड के बंगाली बाबा आत्माराम ब्रह्मचारी गणेश मंदिर सहित शहरभर के मंदिरों में विभिन्न आयोजन हुए। इस दौरान मंदिरों में मेले का सा माहौल रहा।
मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में तड़के से ही भक्तों की लाइन लगी रही। प्रथम पूज्य की एक झलक देखने के लिए भक्त उत्साह के साथ आगे बढ़ते ही जा रहे थे। बारिश के कारण दोपहर 12 बजे तक भक्तों की संख्या बहुत कम थी। वहीं दोपहर बाद 2 बजे से पासधारकों की लाइन भी लंबी नजर आई। इस बीच तख्तेशाही रोड तक भक्तों की लंबी कतार दिखाई दी।
अल्लाह के बादगाने में ईद का शुक्राना
ईद-उल-फितर के पावन पर्व पर दिल्ली रोड स्थित ईदगाह में बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने नमाज अदा की व खुदा से देश में खुशहाली की दुआ मांगी। इस बीच बाराने रहमत के साथ नमाजियों का इस्तकबाल हुआ।
मुख्य नमाज के लिए ईदगाह में सुबह से ही लोगों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था। हर कोई आगे की पंक्ति में बैठने के लिए उत्सुक था। सुबह फजर की नमाज के बाद ही घरों में ईद की नमाज की तैयारियां शुरू हो गई थी। युवा, बड़े और यहां तक कि छोटे बच्चे भी नमाज के लिए ईदगाह पहुंचे। सुबह आठ बजते ही रामगंज, घाटगेट, चार दरवाजा, आगरा रोड तथा गलता गेट के रास्तों में नमाजियों का रैला था। ऐसा लग रहा था कि पूरा शहर ही ईदगाह की ओर चल दिया हो।
चीफ काजी खालिद उस्मानी ने खुतबा दिया व नमाज अदा करवाई। चीफ काजी ने कहा कि गणपति चतुर्थी व ईद का एक साथ होना ईश्वर का संदेश है। वह बताना चाहता है कि हिंदू-मुस्लिम एक ही पंथ हैं यह किसी सीमा में बंधे हुए नहीं है। देश दुनिया में इसीलिए भारत की पहचान है कि हिंदू-मुस्लिम आपसी भाईचारे से सभी पर्व मनाते हैं। शहर मुफ्ती अहमद हसन फितरे की अहमियत पर प्रकाश डाला। मौलवी महफूज नासिर व मोहम्मद जाकिर ने तकरीर पेश की।
दूसरी ओर जौहरी बाजार स्थित जामा मस्जिद में इमाम मुफ्ती अमजद अली ने नमाज अदा करवाई। उन्होंने कहा कि ईद का त्योहार अल्लाह की बादगाने में शुक्राने के तौर पर है। इस मौके पर जामा मस्जिद इंतजामिया कमेटी के सचिव अनवर शाह ने मुल्क की तरक्की की दुआ मांगी। आमेर रोड पर शिया जामा मस्जिद में मौलाना सैयद नाजिश अकबर काजमी साहब ने नमाज अदा करवाई। नमाज के बाद नमाजियों ने गिले-शिकवे दूर कर एक दूसरे से गले मिलकर ईद की बधाई दी।

शनिवार, 28 अगस्त 2010

जन्माष्टमी उत्सव पर असमंजस!


जन्माष्टमी को लेकर इस बार असमंजस की स्थिति बनी हुई है। पंचांगों के मुताबिक जन्माष्टमी का पर्व 1 सितंबर को मनाया जाएगा, जबकि गौडिय़ संप्रदाय के मुताबिक जयपुर के आराध्य गोविंददेवजी मंदिर में यह उत्सव 2 सितंबर को मनाया जाएगा।
शास्त्रों के मुताबिक भगवान कृष्ण का जन्म अष्टमी, रोहणी नक्षत्र व अद्र्धरात्रि में हुआ था। इसे देखते हुए पंचांगों के मतानुसार जन्माष्टमी का पर्व 1 सितंबर को मनाया जाएगा। मगर गोविंददेवजी मंदिर में जन्माष्टमी का यह पर्व 2 सितंबर का मनाए जाने और पंचांगों के मत अलग-अलग होने से जन्माष्टमी पर्व मनाने को लेकर असमंजस रहेगा। हालांकि कृष्ण की नगरी मथुरा व वृंदावन में भी यह पर्व 2 को ही मनाया जाना है। मगर तिथियों की स्थिति कृष्ण जन्म के उत्सव की घड़ी को मनाए जाने पर सवाल खड़ कर रही है?
पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के मुताबिक हर साल उदियात तिथि के आधार पर गोविंद देवजी में रोहणी युक्त अद्र्धव्यापिनी अष्टमी तिथि में जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस बार 2 सितंबर को अद्र्धरात्रि में नवमी तिथि रहेगी व मृगशिरा नक्षत्र रहेगा। इसलिए 1 सितंबर को जन्माष्टमी पर्व मनाना ही श्रेष्ठ रहेगा।
राजस्थान ज्योतिष परिषद के महासचिव डॉ. विनोद शास्त्री के अनुसार जन्माष्टमी का पर्व तो अद्र्धव्यापिनी तिथि में रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी में ही मनाया जाना चाहिए। ज्योतिषी दिनेश मिश्रा ने बताया कि भगवान कृष्ण की जन्म की तिथि के अनुसार अद्र्धरात्रि में रोहणी नक्षत्र होने पर ही मनाया जाना श्रेष्ठ माना गया है।
पंचांगों मे ये है तिथि का फेर
सप्तमी तिथि 1 सितंबर को सुबह 10.51 तक रहेगी। इसके बाद अष्टमी तिथि शुरू होगी, जो 2 सितंबर को सुबह10.43 तक रहेगी। इसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र 1 सितंबर को दोपहर 1.19 से शुरू होगा, जो 2 सितंबर को दोपहर 1.47 बजे तक रहेगा। इसके बाद मृगशिरा नक्षत्र शुरू हो जाएगा।

जेडीए ने की महगे पौधों से तौबा


अब सस्ते पौधे लगाने की जगत महंगे पौधों के चोरी होने व मुरझाने से उठाया कदम
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जेडीए ने इस बार महगे पौधे लगाने से तौबा कर ली है। शहर में पिछले दो वर्षो में लगाए गए महगे पौधों के चोरी होने व मुरझाने के कारण जेडीए ने अब सस्ते पौधे लगाने की जुगत शुरू की है।
गत वर्ष जेडीए ने कुल एक लाख पच्चीस हजार पौधे और ब्यूटीफिकेशन के लिए झाडी पेड लगाए थे। इनमें कई पौधों की प्रति पौधा एक हजार रुपए तक की कीमत थी। इनमें से अधिकतर पौधे चोरी हो गए अथवा मुरझा गए। कई स्थानों पर बसावट नहीं होने के कारण जानवरों के निवाले बन गए। इनमें हाथोज, कालवाड, महल रोड रामनगरिया में अधिकतर पौधे चोरों का निशाना बन गए।
गौरतलब है कि गत वर्ष जगतपुरा, रामनगरिया, वैशालीनगर, विद्याधर नगर, कालवाड़ रोड, हाथोज, रोहिणीनगर, लोहामंडी, ट्रांसपोर्ट नगर, एयरपोर्ट रोड, वाईस गोदाम पर रोड साइड व डिवाइडरों पर जेडीए ने पौधे लगाए गए थे। इसके अलावा टोंक रोड व जेएलएन मार्ग पर भी आवश्यकतानुसार पेड़ व पौधे लगाए गए थे।
ये पौधे लगाए गए : जेडीए की योजना में रोड साईड में अमलताश, गुलमोहर, शीशम, अशोक, मोलसरी, चक्रेशिया, स्पेथोडिया,उतरंजिवा, चंपा, कचनार के पेड़ों के अलावा पीली, लाल व ड्वार्फ कनेर, डिकोमा गुडीचुडी, जैड्रोफा, इनर्मी, गोल्डन डूरंट, गुडहल आदि झांडी, छायादार व फूलदार पेड़ लगाए गए।
अब लगाए जाएंगे 6 लाख 18 हजार पौधे : अब छह लाख अ_ारह हजार रुपए के पौधे लगाए जाएंगे। इनमें करंज, नीम, शीशम, गुलमोहर, बेल्टोफोरम, स्पेथोडिया, अमलताश, कचनार, कनेर, टिकोमा, अमेलिया, बोगनवेलिया, कोर्टिय के पौधे कल्पना नगर, राजभवन, पीतांबरा, नारायण विहार, कीर्तिसागर नगर, हाथोज रोड, कालवाड-निवारु रोड, महल रोड, जीरोता, सीतापुरा, मूर्तिकार कॉलोनी, अलंकार विहार, सिरसी रोड आदि क्षेत्रों में लगाए जाएंगे। इन पौधों की कीमत 40 से 350 रुपए तक है।
इनका कहना है :
जेडीए के सीनियर होर्टीकल्चरिस्ट महेश विजयवर्गीय ने बताया कि अशोक के पेड काफी झुलस गए थे। इसलिए इस बार अशोक व अन्य महगेपौधे नहीं लगाए जा रहे। पर्यावरण के अनुकूल पेड लगाए जा रहे है। सस्ते पौधे लगाने का कारण इस बार पौधों पर दरें कम हो गई हैं।

शनिवार, 21 अगस्त 2010

वरिष्ठ भाजपा नेता सीपी ठाकुर पहुंचे जयपुर के ज्योतिषविद की शरण में


ज्योतिषाचार्य पं.पुरुषोत्तम गौड से जाना चुनावी चिंता का हल, वरिष्ठ भाजपा नेता ठाकुर ने कहा किभाजपा-संघ का आपसी तालमेल न होना बना राजस्थान में हार का कारण
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वरिष्ठ भाजपा नेता व बिहार प्रदेशाध्यक्ष चंद्रेश्वर प्रसाद ठाकुर पिछले दिनों गोपनीय यात्रा पर पटना से जयपुर ज्योतिषविद की शरण में पहुंचे। आगामी माह में होने वाले चुनावों की चिंता को दूर करने के लिए वह पटना से यहां स्वेजफार्म निवासी ज्योतिषाचार्य पं.पुरुषोत्तम गौड़ से मंत्रदीक्षा व हाल-ए-चुनाव की जानकारी प्राप्त पहुंचे। सी.पी.ठाकुर ने करीब एक घंटे तक गुप्त मंत्रणा की। इसके बाद वह यहां से दिल्ली के लिए रवाना हो गए। इस के दौरान सी.पी.ठाकुर की विशेष बातचीत के अंश-
--प्रदेश में भाजपा की हार का कारण क्या रहा?
--यूं तो वसुंधरा बहुत अच्छी मुख्यमंत्री साबित हुई हैं मगर संघ और भाजपा का आपसी तालमेल नही बैठ पाने के कारण भाजपा को प्रदेश में हार का सामना करना पड़ा। हालांकि उस समय मैंने राजस्थान का प्रभारी बनाने का प्रस्ताव भी रखा था, मगर कुछ कारणों से इस पर सहमति नहीं हो पाई।
--मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल कैसा रहा?
--सर्वश्रेष्ठ। जयपुर बम धमाके के दौरान हर पीढि़त के उनकी तत्परता व उनका कार्य सराहनीय रहा।
--राजस्थान की हार से अब बिहार में चुनावी रणनीति के लिए आपने क्या सबक लिया?
--बिहार में संघ के साथ तालमेल और आपसी बातचीत और भाजपा-जदयू के गठबंधन में बिहार में अपना परचम लहराएंगे। इसी बीच उन्होंने कहा कि गुजरात में गोधरा कांड के बावजूद भाजपा की जीत हिंदू-मुस्लिम के भेद को मिटाकर जनसेवक की भावना से ही संभव हो पाई थी।
--जयपुर में ही ज्योतिष सलाह लेने का विचार कैसे आया?
--राजनीतिक सलाहकारों व न्यूज के माध्यम से यहां के ज्योतिष बारे में बहुत सुना था। यही लालसा मुझे यहां पं.गौड़ का आशीर्वाद लेने के लिए खींच लाई।

बुधवार, 11 अगस्त 2010

पारंपरिक पर्व तीज आज

महिलाएं और युवतियां तीज माता से करेंगी अखंड सौभाग्य की कामना,सिंजारे का रहा बेसब्री से इंतजार
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पारंपरिक पर्व तीज गुरुवार को हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। इस इस मौके पर चारों ओर तीज के पद गूंज उठेंगे।
महिलाएं और युवतियां लहरिया पहनकर व सोलह शृंगार कर ताल-तलैया के पास तीज माता का पूजन करेंगी। तीज माता से अखंड सौभाग्य की कामना करेंगी। तीज से पहले बुधवार को सिंजारा मनाया गया। इस दौरान घर—-घर में घेवरों और मेहंदी की महक छाई रही। बाजारों में घेवरों और लहरिया खरीदने वालों की भीड़ रही। नवविवाहित युवतियों के लिए और सगाई का पहला सिंजारा ससुराल पक्ष की ओर से भेजा गया। इसमें सुहाग सामग्र्री के साथ घेवर आदि मिठाईयां भेजी गई। इस दौरान नवविवाहित घरों में सिंजारे का बेसब्री से इंतजार रहा। महिलाओं और कन्याओं ने मेहंदी रचाई।
ठाठ-बाट से निकलेगी तीज माता की सवारी
पर्यटन विभाग की ओर से जनानी ड्ïयोढ़ी से पारंपरिक तीज की सवारी निकाली जाएगी। सवारी शाही लवाजमे के साथ शाम 6 बजे रवाना होगी। लवाजमे में हाथी,घोड़े, ऊंट के साथ में कच्छी घोड़ी, अलगोजा, बहरूपिया, कालबेलिया, चकरी और बूंदी के बैल अपनी प्रस्तुति देंगे। इस दौरान लोकनर्तक व अन्य कलाकार सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देंगे। सवारी विभिन्न मार्र्गों से होकर चौगान स्टेडियम पहुंचकर विसर्जित होगी। इस मौके पर त्रिपोलिया गेट पर हिंद होटल पर दर्शकों व विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी। शुक्रवार को बूढ़ी तीज की सवारी निकाली जाएगी।

हो गया दीदारे चांद, रमजान का पाक माह शुरू


मस्जिदों में तरावी में सुनाया कुराने पाक ....सहरी से इफ्तार तक चलेगा इबादत का दौर
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रमजान का पावन महीना गुरुवार से शुरू होगा। इस दौरान रोजेदार एक माह तक रोजे रखेंगे व मस्जिदों में जाकर इबादत करेंगे।
जौहरी बाजार की जामा मस्जिद में बुधवार को चीफ काजी खालिद उस्मानी की अध्यक्षता में सेंट्रल हिलाल कमेटी की बैठक हुई। चीफ काजी खालिद उस्मानी ने बताया कि जयपुर के आसपास, अजमेर के ऊंटडा व झालरापाटन सहित अनेक क्षेत्रों से चांद दिखाई देने की जानकारी के आधार पर कमेटी ने गुरुवार से रमजान शुरू होने की घोषणा की। इस मौके पर शहर मुफ्ती अहमद हसन, मुफ्ती अमजद अली, मुफ्ति मोहम्मद जाकिर व इजहार अहमद यजदानी उपस्थित थे।
बुधवार को मस्जिदों में कुराने पाक तरावी में सुनाया गया। बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने मस्जिदों में जाकर नमाज अदा की। यह सिलसिला 27 दिन तक जारी रहेगा। रमजान के पाक महीने में रोजेदार प्रतिदिन सुबह से लेकर सूर्यास्त तक खाना पीना छोड़कर इबादत करेंगे। अकीदतमंद सदाचार से अपना समय बिताएंगे। रोजेदार सूर्योदय से एक घंटे पहले सहरी करेंगे। पूरे दिन कार्यों के साथ इबादत करेंगे और शाम को सूर्यास्त के बाद रोजा इफ्तार करेंगे।
जामा मस्जिद के सचिव अनवर शाह ने बताया कि मस्जिद में जिला प्रशासन नगर निगम, पीएचईडी, फायर व अन्य सभी विभागों की ओर से विशेष इंतजाम किए गए हैं। अकीदतमंदों की सुविधा के सभी इंतजाम रहेंगे।

शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

सावन में संयोगों की भरमार

सावन माह में इस बार संयोगों की भरमार रहेगी। ज्योतिषविदों के मुताबिक वर्षों बाद तीन वारों का उनके महत्व के अनुसार संयोग भी बन रहा है।
इन संयोगों में मंगल, शनि व सोम को सावन के प्रमुख पर्व, व्रत व ग्रहों का परिवर्तन होगा। इनमें सावन के दोनों प्रदोष व्रत शनिवार को आ रहे हैं। राजस्थान ज्योतिष परिषद के महासचिव डॉ. विनोद शास्त्री व ज्योतिषी पं. चंद्रमोहन दाधीच के अनुसार पौराणिक मान्यतानुसार शनिवार को प्रदोष का आना विशेष महत्व वाला माना गया है। इसी शृंखला में जहां सोमवार 16 अगस्त में शिव की आराधना होगी, वहीं सावन में अधिष्ठाता सूर्यदेव का सोमवार को सूर्य संक्रमण होगा। इस दिन सूर्यदेव स्वयं की ही राशि सिंह में प्रवेश करेंगे। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन सूर्य संक्रमण कहलाता है। ज्योतिषी दिनेश मिश्रा ने बताया कि 10 अगस्त मंगलवार को देवपितृकार्य अमावस्या अर्थात हरियाली अमावस्या होगी। वहीं 24 अगस्त को मंगलवार के ही दिन रक्षाबंधन का भी विशेष संयोग बनेगा। रामभक्त हनुमान के वार पर रक्षाबंधन से रक्षासूत्र का बंधन अटूट माना जाता है। वहीं हरियाली अमावस्या पर अखंड सौभाग्य की कामना का सुफल मिलेगा। सावन के विभिन्न संयोगों की शृंखला में ही इससे पहले मंगलवार को ही सावन का शुभारंभ हुआ। वहीं शनिवार को ही नागपंचमी का पर्व मनाया गया।

जंतर-मंतर के बफर जोन में आ रहे मंदिरों का होगा कायाकल्प


देवस्थान के तीन मंदिर हैं बफर जोन में, विभाग ने दी पुरातत्व विभाग को सक्षम स्वीकृति
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विश्व धरोहरों की सूची में 28 वां स्थान प्राप्त कर चुके जंतर-मंतर के बफर जोन में आ रहे मंदिरों का कायाकल्प होगा। फिलहाल पुरातत्व विभाग ने एक मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए देवस्थान विभाग को प्रस्ताव भेजा है।
जंतर-मंतर के बफर जोन में देवस्थान विभाग के तीन मंदिर आ रहे हैं। इनमें चांदनी चौक स्थित आनंद कृष्ण विहारीजी मंदिर, बृजनिधिजी मंदिर और प्रतापेश्वर महादेव मंदिर शामिल हैं। पुरातत्व विभाग ने प्राचीन आनंद कृष्ण बिहारीजी मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए करीब 26 लाख का प्रस्ताव तैयार किया है। जंतर-मंतर के विश्व धरोहर में शामिल होने के बाद देवस्थान विभाग के इन मंदिरों की देखभाल पुरातत्व विभाग भी करेगा। वहीं नियमानुसार विश्व धरोहर के 200 मीटर की परिधि में आ रहा क्षेत्र विशेष संरक्षण श्रेणी में माना जाएगा
बफर जोन : पुरातत्वविदों के मुताबिक दो बड़ी रियासतों के मध्य आ रही छोटी रियासत को बफर जोन में माना जाता है।
इनका कहना है
फिलहाल देवस्थान विभाग से आनंद कृष्ण बिहारीजी मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए 26 लाख का प्रस्ताव तैयार कर स्वीकृति मांगी है।-जितेंद्र जोशी, एक्सईएन, पुरातत्व विभाग
पुरातत्व विभाग से प्रस्ताव स्वीकृति के लिए भिजवाया जा चुका है। - पंकज प्रभाकर, सहायक आयुक्त, देवस्थान विभाग

सोमवार, 2 अगस्त 2010

अब कलेक्टर की अनुमति से ही होंगे सामूहिक विवाह

महिला बाल विकास विभाग ने बदले नियम, बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए बढ़ाई कलेक्टर की मॉनिटरिंग, संस्थानों की राशि 2 लाख से बढ़ाकर 10 लाख की-----------------------
15 दिन पहले लेनी होगी अनुमति, तीन दिन पहले तय जोड़ों का पूरा ब्यौरा देना होगा कलेक्टर को-------------

बाल विवाह पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अब सामूहिक विवाह समारोह के आयोजन से पहले संबंधित संस्था को कलेक्टर से अनुमति लेनी होगी। इसके लिए सरकार ने नियमों में संशोधन कर दिया है। अनुमति नहीं लेने की स्थिति में संस्था का रजिस्टे्रशन रद्द हो सकता है। इसके साथ ही सरकार ने सामूहिक विवाहों को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक संस्थाओं को मिलने वाले अनुदान में पांच गुणा बढ़ोतरी कर दी है।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने राजस्थान सामूहिक विवाह अनुदान नियमन व अनुदान नियम- 1996 में हाल ही में संशोधन किया है। इसके तहत सामूहिक विवाह का आयोजन करने वाली संस्था के लिए यह जरूरी होगा कि वह कलेक्टर से 15 दिन पहले सामूहिक विवाह सम्मेलन की अनुमति प्राप्त करे। सम्मेलन में विवाह बंधन में बंधने वाले जोड़ों की संख्या और उनके बारे में पूरी जानकारी 3 दिन पहले तक कलेक्टर के पास पहुंचानी भी अनिवार्य होगी। ताकि कलेक्टर यह सुनिश्चित कर सके कि सम्मेलन में कहीं अव्यस्क जोड़ों की शादी तो नहीं हो रही है।
ऐसे मिलेगी अनुमति- संस्था को आवेदन के निर्धारित प्रपत्र में प्रत्येक जोड़े की आयु का प्रमाणिक विवरण देना होगा। विवाह स्थल की पूर्ण जानकारी पेश करनी होगी। आयोजक संस्था को यह सुनिश्चित करना होगा कि समारोह स्थल पर आकस्मिक परिस्थितियों से निबटने के लिए चिकित्सा, अग्रिशमन व अन्य व्यवस्थाएं कर दी गई है।
पांच गुणा बढ़ा अनुदान

संशोधित नियमों के तहत कम से कम 10 जोड़े और अधिक से अधिक 166 जोड़ों के लिए अनुदान का प्रावधान है। इनमें अनुदान प्रति जोड़ा 6000 रुपए देय होगा। प्रति जोड़ा अनुदानित राशि में 25 प्रतिशत की राशि संस्था को विवाह आयोजन के रूप में देय होगी, जबकि 75 प्रतिशत राशि नव विवाहिता के नाम से डाकघर या अधिसूचित राष्ट्रीयकृत बैंक में न्यूनतम तीन वर्षकी अवधि के लिए सावधि जमा कराई जाएगी।
सूचना नहीं देने पर होगी कार्यवाई
सामूहिक विवाह की सूचना जिला कलेक्टर को नहीं देने पर संबंधित संस्था के खिलाफ नियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। इनमें संस्था को कम से कम एक हजार और अधिक से अधिक पांच हजार रुपए जुर्माना देना होगा। इसके अलावा संस्था का पंजीकरण निरस्त किया जा सकता है या भविष्य में सामूहिक विवाह आयोजित करने के लिए अयोग्य षित किया जा सकता है।
इनका कहना है
सामूहिक विवाह सम्मेलनों में होने वाले फर्जीवाड़े को रोकने और समाज में फैली कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए राजस्थान सामूहिक विवाह अनुदान नियमन व अनुदान नियम 1996 में संसोधन किया गया है। इसका पालन नहीं करने वाली संस्था के खिलाफ उचित कार्रवाई का प्रावधान भी रखा गया है।- एस.के.अग्रवाल, अतिरिक्त निदेशक, महिला अधिकारिता विभाग।

शनिवार, 31 जुलाई 2010

जंतर-मंतर विश्व धरोहर सूची में शामिल........


राजा सवाई जयसिंह का सपना हुआ साकार
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ज्योतिष की सटीक भविष्यवाणी और खगोलिय घटनाओं के लिए दुनियाभर में अनूठी पहचान दर्ज करा चुका जयपुर का जंतर-मंतर अब यूनेस्कों की विश्व धरोहर सूची में शामिल हो गया है। सवाई जयसिंह की देशभर की वेधशालाओं में से एक इस वेधशाला का विश्व धरोहर में शामिल होना राजस्थानी धरती के लिए गर्व की बात है। शनिवार देर रात करीब 2 बजे पर्यटन मंत्रालय से अधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा की गई तो पर्यटन मंत्री बीना काक खुद को न रोक सकी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपनी महत्वाकांक्षा को गिनाने के लिए पहुंच गई। उधर मुख्यमंत्री ने भी प्रदेश की इस उपलब्धि पर प्रशंसा जाहिर की। जंतर-मंतर अधीक्षक ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि सवाई जयसिंह का सपना आज विदेशी धरती पर भी रंग जमा रहा है इससे बढ़कर खुशी की कोई बात नहीं हो सकती।

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

सावन में फहरेगा एकता का परचम

सावन इस बार एकता का परचम फहरेगा। भगवान शिव की आराधना के इस पावन महीने में सभी धर्मों के धर्मावलंबी सांप्रदायिक सौहाद्र्र की बयार बहाएंगे।
सावन के पहले दिन जहां सावन की शुरुआत पर शिवमंदिरों में बम भोले के गुणगान से गूंज उठे। शिवमंदिरों में सहस्राभिषेक, रुद्राभिषेक का दौर शुरू हुआ। वहीं शाबान की पंद्रहवीं रात शब-ए-बारात के रूप में मनाई गई। मान्यतानुसार ईश्वर मानव के आगामी वर्ष का भाग्य तय करते हैं। मुस्लिम अनुयायियों ने गुनाहों का प्रायश्चित किया और इबादत में समय गुजारा। दूसरे दिन रोजा रखेंगे। इसी माह रमजान शुरू होंगे। केरल के प्रमुख पर्व ओणम, पारसी नववर्ष भी इस माह से शुरू हो जाएंगे। इसी बीच 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ का जन्म व तप कल्याणक और मोक्षसप्तमी पर 23 वें तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ का मोक्ष कल्याणक मनाया जाएगा।
सावन माह के इस अनूठे संगम में चार माह चलने वाले चातुर्मास का दौर भी शुरू हो जाएगा। इसमें हिंदू संत-महंतों के चातुर्मास प्रवेश के साथ ही जैन आचार्य-मुनियों का चातुर्मास होगा। चातुर्मास में संत महात्मों का प्रवचन से लोग लाभान्वित रहेंगे।
हिंदू व मुस्लिम त्योहार 32 से 35 वर्ष में साथ—साथ....
ज्योतिष गणना के अनुसार हिंदू त्योहार चंद्र वर्ष व सौर वर्ष के अनुपात के बराबर करते हुए मनाए जाते हैं। पंडित बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पंडित दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार मुस्लिम त्योहार चंद्रवर्ष के अनुसार ही मनाए जाते हैं। चंद्रवर्ष 354 दिन का होता है। प्रतिवर्ष 11 दिन के अंतर के कारण दोनों के त्यौहार 32 से 35 साल में साथ—साथ आ जाते हैं। जामा मस्जिद के सचिव अनवर शाह बताते हैं कि एक साथ आने वाले मुस्लिम त्योहारों में सभी के मानवमात्र के कल्याण का संकल्प लेना चाहिए।
यूं होगा सावन में संस्कृतियों का मिलन....
27 जुलाई : सावन व शब-ए-बारात, 12 अगस्त : रमजान, 15 अगस्त : भगवान नेमीनाथ का जन्म व तप कल्याणक , 16 अगस्त : मोक्षसप्तमी , 19 अगस्त : पारसी नववर्ष, 23 अगस्त : ओणम।

झूमती फिजाओं और महकती हवाओं ने चढ़ाए शिव को श्रद्धा के फूल


घंटे व घडिय़ालों से गूंजे शिवालय
सावन की फुहारों के साथ ही मंगलवार को शिव के सावन का आगाज हो गया। झूमती फिजाओं और महकती हवाओं ने सुबह शिव मंदिरों में श्रद्धा के फूल चढ़ाए।
यूं तो आषाढ़ की पूर्णिमा से ही मंदिरों में सावन की पूजा-अर्चना का दौर शुरू हो गया था। मगर मंगलवार से शुरू हुए श्रावण के पहले दिन शहर के मंदिर बम भोले और ओम नम: शिवाय के जयकारों से गूंज उठे। इसके साथ ही कई मंदिरों में सहस्रघटाभिषेक, रुद्राभिषेक व जलाभिषेक का दौर भी शुरू हुआ। साथ ही मंदिर शिव चालीसा, रुद्रपाठ, शिव महिमा और शिव स्त्रोत के साथ ही वैदिक मंत्रों की ऋचाओं से गूंज रहे थे।
दूसरी ओर, कावडिय़ों ने गलता तीर्थ से गालव गंगा का पवित्र जल लाकर शिव का अभिषेक किया। इस मौके पर शहर के प्रमुख मंदिर ताड़केश्वर महादेव मंदिर, क्विंस रोड स्थित झाडख़ंड महादेव मंदिर, बनीपार्क स्थित जंगलेश्वर महादेव मंदिर, झोटवाड़ा रोड स्थित चमत्मकारेश्वर महादेव मंदिर, धूलेश्वर गार्डन स्थित धूलेश्वर बाग और कूकस स्थित सदाशिव ज्योतिर्लिंगेश्वर महादेव मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भक्तों की भीड़ रही।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

इतिहास के पन्नों से भी खो गई जगन्नाथजी के रथ की सवारी

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दौज और नवमी को जयपुर में पुरातन रीति से निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथजी के रथ की सवारी अब न जाने कहां लुप्त हो गई। चारदीवारी में रहने वाली रौनक की अब किताबों में भी कहानी देखने को नहीं मिलती। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी रामगंज स्थित धाबाईजी के खर्रे से भगवान जगन्नाथ की भव्य सवारी निकलती थी। आइए जानते हैं सवारी का इतिहास-------------------------
दो सौ साल पहले से महाराजा पृथ्वीसिंह के समय से जगन्नाथजी के मंदिर से इसी रथ से ख्वासजी का रास्ता से सिरहड्योढी बाजार होकर ख्वासजी का बाग तक जगन्नाथजी की रथयात्रा निकाली जाती थी। महाराजा सवाई माधोसिंह के समय में इस रथ को पुन:निर्मित करवाया गया और धातुओं की नक्कासी की गई थी।
खूबसूरत कलाकृति व नक्काशी युक्त रथ की देवस्थान विभाग की लापरवाही के कारण छतरियां टूट चुकी है और इसमें लगे धातुओं का तो अता-पता ही नहीं है। इसमें सात छतरियां और घोड़ेनुमा आकृति बनी हुई थी। रामगंज के धाबाईजी का खुर्रा स्थित जगन्नाथजी मंदिर से जगन्नाथजी के विग्रह की सवारी को लेकर चलने वाला यह रथ देवस्थान विभाग के कल्कीजी मंदिर के बाहर लावारिस हालत में पड़ा हुआ था, जो बाद में पुजारियों के विद्रोह के बाद कल्कीजी मंदिर के रथखाना (गैराज) में रख दिया गया। जगन्नाथजी मंदिर के पुजारी ज्ञानचंद शर्मा के अनुसार पंद्रह साल पहले गैराज को देवस्थान विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया था।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

जो रस बरस रह्यो गोकुल में वह तीन लोक में नाय...


गोसेवा परिवार की ओर से जनता में गोसेवा जाग्रत करने व गोवंश की रक्षा के लिए तीन दिवसीय नानी बाई का मायरा
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तबले की थाप, मंजीरे की धुन और गौ मां की रक्षा की पुकार। भक्ति की अविरल धारा से सराबोर भक्तों से खचाखच भरा गोविंददेवजी का दरबार। यहां मानो हर कोई नंदलाल और गौ की भक्ति में लीन हो गया हो। मौका था श्रीगोधाम महातीर्थ आनंदवन, पथमेड़ा और गोसेवा परिवार की ओर से प्रदेश की जनता का गोसेवा के लिए जाग्रत करने के लिए और गोवंश की रक्षा के लिए शुक्रवार को शुरू हुए तीन दिवसीय नानी बाई के मायरे का।
गिनीज बुक में नाम दर्ज करा चुका गोविंददेवजी मंदिर का सत्संग भवन मेरो प्यारो नंदलाल किशोरी राधे, किशोरी राधे-किशोरी राधे...के भजनों के साथ भक्तों की तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। गौमाता मंदिर में बह्मपीठाधीश्वर नारायणदास महाराज, पथमेड़ा के दत्तशरणानंद महाराज, महंत अंजन कुमार गोस्वामी, गोधाम के संरक्षक ज्ञानानंद महाराज तथा शुकसंप्रदाचार्य अलबेली माधुरीशरण महाराज ने दीप प्रज्वलन किया। इसके बाद व्यास पूजा की।
कथा व्यास राधाकृष्ण महाराज ने कहा कि इस संसार में गोमाता की भक्ति ही परमात्मा के अवतरण का आधार है। अकाल पीडि़त लाखों निराश्रित गोमाता की सेवार्थ गोधाम पथमेड़ा द्वारा प्रेरित गोसेवा परिवार समिति जयपुर की ओर से आयोजित नानी बाई के मायरे की कथा के माध्यम से जयपुर के भक्त गो माता की सेवा कर पाएंगे।
उन्होंने कहा कि गो मां की सेवा तन-मन-धन से करनी चाहिए। धनवान व्यक्ति को रातभर नींद नहीं आती। यहां तक कि उसे अपने परिवारजनों पर भरोसा भी नहीं रहता। यदि वह धन गोसेवा में लग जाए तो उसका जीवन सफल हो जाए। नंदबाबा के पास गोधन था, इसीलिए वहां गोपाल आए। कथा के मध्य में जो रस बरस रह्यो गोकुल में वह तीन लोक में नाय...और ए भाई मैं तो भक्तां रो दास...की पंक्तियों पर भक्त झूम उठे। कथाव्यास राधा कृष्ण ने कहा कि कंस के पास खूब धन था, लेकिन उसे चैन नहीं था और दूसरी तरफ गाय देखने के लिए भगवान गोकुल आए। भगवान छप्पन भोग, चांदी का महल बनाने से नहीं आए। गाय रे बिना भगवान का मन नहीं लगे...। उन्होंने भगवद भक्ति स्वरूप भक्त नरसी की भावपूर्ण कथा सुनाई।

जो आत्मिक ज्ञान कराए वही है सद्गुरु : आचार्य किरीट


गुरुपूर्णिमा महोत्सव के तहत आचार्य किरीट भाई एक दिवसीय सत्संग प्रवचन
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गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत एक दिवसीय सत्संग प्रवचनों में शुक्रवार को आचार्य किरीट भाई ने कहा कि गुरु अपनी कटाक्ष दृष्टि से शिष्य का उद्धार करता है।
आचार्य ने कहा कि जीवन में गुरु हर कोई हो सकता है माता-पिता, भाई-बहिन। जो व्यवहारिक जीवन का ज्ञान दे वहीं गुरु होता है। इस दौरान भजन गायक जगदीश के निर्देशन में कलाकारों ने मेरे सद्गुरु हैं रंगरेज, चुनरिया मेरी रंग दीनी...भजन से साधकों को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। इस मौके पर किरीट भाई ने रंगरेज का अर्थ समझाते हुए कहा कि दुनिया के सभी रंग लाल, नीले और पीले रंग से बनते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु वह है जो आत्मा का ज्ञान कराए और ईश्वर प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करे। जीवन के अंधकार और भय को हटाकर ज्ञान को बढ़ावा दे। शंका समाधान में एक शिष्य द्वारा पूछे गए प्रश्र के जबाव में उन्होंने कहा कि भक्ति मंत्र का कोई मूल्य नहीं है। भगवान बिना भक्ति के किसी के पास नहीं आते। महेात्सव में आचार्य ने भक्तों को लक्ष्मी यंत्र भेंट किए गए। इस मौके पर उन्होंने लक्ष्मीजी की कथा सुनाई और लक्ष्मी यंत्र का महत्व समझाया। अंत में लड्डू गोपालजी की पूजा की गई। इसके बाद बड़ी संख्या में भक्तों ने पादुका पूजन किया।

सोमवार, 12 जुलाई 2010

जीवन के परम लक्ष्य का एक ही मार्ग, गुरुमंत्र


गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत संत आसाराम बापू की मंत्र दीक्षा............
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शहर में प्रात:काल की वेला में रविवार को चल रही मधुर सुगंधित शीतल बयार के आगाज के साथ ही भारत की वैदिक संस्कृति का दृश्य साकार हो उठा। मौका था गुरु पूर्णिमा महोत्सव के तहत अमरूदों के बाग में योग वेदांत समिति की ओर से आयोजित तीन दिवसीय सत्संग के अंतिम दिन संत आसाराम बापू की मंत्र दीक्षा का।

हजारों साधक-साधिकाओं ने एक साथ बैठकर मंत्र जाप किया, तो पूरा वातावरण गुरु भक्ति की परंपरा के इस अनुपम सागर में रम गया। संत आसाराम बापू ने विद्या के लिए सारस्वत मंत्र की दीक्षा दी। इसके साथ ही मंत्रों का महत्व बताया। बापू ने कहा कि मंत्रों में सुसुप्त शक्तियों को जाग्रत करने की विलक्षण क्षमता होती है। यंत्र से मंत्र अधिक प्रभावशाली होता है। ओमकार पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि ओमकार भगवान का स्वाभाविक नाम है। शांत बैठकर ओमकार का गुंजन करने से भगवान विश्रांति प्राप्त होती है।

ओ और न के बीच का स्थान परमात्मा का है। सद्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलकर श्रद्धा, तत्परता और इंद्रिय संयम के साथ साधना से मनुष्य अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। वास्तव में मनुष्य जीवन परमात्मा प्राप्ति के लिए है। सद्गुरु द्वारा बताए गए मार्ग से जितना लाभ होता है, उतना मनमानी साधना से नहीं होता।

सामाजिक जीवन में सफलता के लिए उन्होंने आपसी स्नेह की सलाह दी। उन्होंने कहा कि मनुष्य को निंदा, ईष्र्या और द्वेष से बचना चाहिए। आरंभ में बापू के शिष्य सुरेशानंद ने मंत्र जाप विधि व लाभ बताए। इसके बाद बापू हवाई मार्ग से कोलकाता के लिए रवाना हुए। समिति के संरक्षक बाबूलाल गुप्ता ने बताया कि मुख्य कार्यक्रम २५ जुलाई को गुरु पूर्णिमा पर सुबह दिल्ली और शाम को अहमदाबाद में होगा। प्रवक्ता तुलसी संगतानी ने कार्यक्रम की सफलता के लिए जिला प्रशासन व जनता का आभार जताया।

शुक्रवार, 18 जून 2010

पुरा स्मारकों की सुरक्षा करेंगे एना डिटेक्टर


अब पुरा स्मारकों की सुरक्षा एना डिटेक्टर करेंगे। पुरातत्व विभाग ने हाल ही शहर के 5 स्मारकों पर ये डिटेक्टर लगाए हैं।
स्मारकों पर लगे न्यूक्लियर रेडिएशन डिटेक्टर पृथ्वी से निकलने वाली नाभिकीय विकिरणों का आकलन करेंगे, ताकि ये स्मारक सुरक्षित रह सकें। अभी ये डिटेक्टर अलबर्ट हॉल, नाहरगढ़ किला, जंतर-मंतर, हवामहल और आमेर में लगाए गए हैं। विशेष रूप से यूएसए से मंगाई गई पेनिक्यूबल फिल्म रेडिएशन की रेंज बताने में सहायता करेगी।
यूं करेगा काम
इस डिटेक्टर पर रिसर्च कर रहीं निम्स यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की विभागाध्यक्ष ज्योति शर्मा ने बताया कि पत्थरों से लगातार रेडिएशन निकलते रहते हैं। इनसे इनके मॉलीक्यूल (अणु) कमजोर पडऩे लगते हैं। इस कारण अणुओं की बॉन्डिंग भी कमजोर पड़ जाती है और दीवारों में दरारें पडऩे लगती हैं। यह डिटेक्टर इनका बचाव करेगा। इसमें लगी पेनिक्यूलेबल फिल्म रेडिएशन का पता लगाएगी। तीन माह बाद इस फिल्म को न्यूक्लियर साइंस सेंटर दिल्ली भेजा जाएगा, जहां विकिरणों का आकलन किया जाएगा और उनकी रेंज का पता चलाया जा सकेगा। फिर इसकी रेंज के अनुसार इन विकिरणों से इमारतों की सुरक्षा के लिए न्यूक्लियर रेडिएशन डिवाइस लगाई जाएगी। शोध के लिए अभी एना डिटेक्टर पुरातत्व विभाग की सहायता से पुरावशेषों पर लगाए गए हैं।
इनका कहना है
हवामहल अधीक्षक पंकज धरेंद्र का कहना है कि इमारतों की सुरक्षा के लिए एना डिटेक्टर एक अच्छी कड़ी साबित हो सकती है। इसलिए अभी यह पुरा स्मारकों में 9 स्थानों पर लगाए गए हैं। यदि यह कार्य करने में सफल रहता है, तो इन्हें अन्य स्थानों पर भी लगाया जाएगा।

सोमवार, 14 जून 2010

भारत की शान, महाराणा प्रताप की आन.....


.........याद करें और नमन करें
भारत की शान, महाराणा प्रताप की आन।
कभी अमरसिंह राठौड, तो कभी अशोक महान।
ये थे हमारे देश के वीर जवान।
विवेकानंद ने जगाई थी अलख अमेरिका में भारत के सम्मान की।
अब तुम भी जग जाओ और समझ लो इस बगिया की बानगी।
रोक लो इस समाज सेवा की राजनीति के झूठे आडंबर को।
अब रखनी होगी नीव हमें इस जर्जर होते सम्मान की।
महापुरुषों का योगदान तो शायद हम कभी भुला सकें। आज उनकी ही देन है जो हम स्वतंत्र भारत में शान से जीवन बसर कर रहे हैं। मगर शायद उनको याद करना अब एक परंपरा सी ही रह गई है। केवल महाराणा प्रताप जयंती ही नहीं प्रत्येक महापुरुष की जयंती को सर्वप्रथम तो एक जाति विशेष से जोड़ दिया गया है। वहीं कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हैं जिन्होंने इसे प्रचार और स्वयं के नाम की परंपरा बना दिया है। आज के नौनिहालों से यदि महाराणा प्रताप की जीवनी के बारे में पूछा जाए तो क्या वह उनका थोड़ा सा भी परिचय दे पाएंगे? मुझे आज भी याद है जब मैं आठ-दस साल का था तब पिताजी से कहानी सुनाने की जिद किया करता था, और वह महाराणा प्रताप और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों का कहानियों में जिक्र किया करते थे, तो अक्सर उनके जैसे बनने की इच्छा जाग जाती थी। मगर क्या अब कहानियों में महापुरुष शामिल होते हैं? नहीं।
अब तो आमजीवन में स्पाइडर मैन और सुपर मैन की कहानियां ही शामिल होती हैं। महापुरुषों की जयंती मनाने वाले लोगों से ही पूछा जाए तो उन्हें भी अपने संगठन व दल को सुदृढृ करने से फुरसत मिले तो वह बच्चों को इन महापुरुषों की कहानियां सुनाएं?

आखिर गोविंददेवजी का सत्संगभवन भी गिनीज बुक में




शहर के आराध्यदेव गोविंद देवजी की ख्याति तो दुनिया में सर्वमान्य है ही, जो यहां के लिए गौरव का विषय है। अब इसके साथ ही अब एक और उपलब्धि शामिल हो चुकी है। यहां अत्याधुनिक तकनीक से बना बिना खंभों का सबसे लंबा सत्संग भवन गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल हो चुका।
दो साल में बनकर तैयार आधुनिक तकनीक से निर्मित यह भवन 119 फीट लंबा और 124 फीट चौड़ा है। इस भवन की छत को डालने में लगातार 36 घंटे का समय लगा था। पूरे भवन में 8 कॉलम दिए गए। भवन के स्ट्रक्चर इंजीनियर दीपक सौगानी के अनुसार सामान्य से दिखाई देने वाले इस भवन को बनाने के लिए शुरूआत में थोड़ा डर लगा। इसकी छत को बनाने के लिए कंपनी की छह साइटों से काम बंद करना पड़ा। कुल तीन करोड की लागत से तैयार इस भवन की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी छत को पोस्ट टेंसनिंग तकनीक से तैयार किया गया है। इस तकनीक के उपयोग से दस से बीस फीसदी कम लागत आई। वहीं इसकी लाइफ दूसरे भवनों से 2.5 फीसदी अधिक है। भवन में एक साथ पांच हजार व्यक्ति बैठ सकते हैं। मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी के अनुसार गोविंददेवजी का इतिहास तो जग जाहिर है अब यहां के सत्संग भवन का गिनीज बुक में नामित होना भी गर्व की बात है।
ये है पोस्ट टेंसनिंग तकनीक-----------
पोस्ट टेंसनिंगतकनीक में कंक्रीट डालने से पहले नए तरीके की लोहेनुमा तार डालते हैं। पीवीसी कोटिंग से सुरक्षित इस तार में पांच तारों का समूह होता है। इस तार को डालने के बाद इसमें कंक्रीट डाली जाती है। इसके बाद इस तार को पंप से खींचा जाता है। इन तकनीक में तार प्रोटेक्टेड होते हैं। इसके साथ ही इसमें 65 फीसदी कम स्टील का उपयोग होता है। इसके साथ ही यह भूकंपरोधी भी है। यह तकनीक पहले पुल बनाने में काम आती थी।
यूं आया गिनीज बुक में--------------
-15827 वर्ग फीट की छत की लंबाई दस फ्लेट के बराबर है।
-भवन में कुल 2000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा, जिससे सौ आवासीय फ्लैट्स तैयार हो सकते हैं।
-भवन के निर्माण में 290 टन स्टील लगी, इससे साठ फ्लैट्स बन सकते हैं।
-7 जुलाई 2007 में शुरू हुए इस भवन का कार्य 23 जुलाई 2009 को पूरा हुआ।
आराध्यदेव गोविंददेवजी का इतिहास--------
मान्यतानुसार अप्रैल 1669 में जब औरंगजेब ने शाही फरमान जारी कर बृजभूमि के देव मंदिरों को गिराने और उनकी मूर्तियों को तोडऩे का हुक्म दिया तो इसके कुछ आगे पीठे वहां की सभी प्रधान मूर्तियों की सुरक्षा के लिए अन्यंत्र ले जाई गई। महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने बताया कि इस दौरान माध्वीय गौडीय संप्रदाय के गोविंदेवजी, गोपीनाथजी, मदन मोहनजी, राधा दामोदरजी और विनोदीलालजी ये पांच स्वरूप जयपुर लाए गए। इनमें से गोविंददेवजी को एक बैलगाड़ी लेकर भक्त रवाना हुए। ऐसा माना जाता है कि इन्हें पहले कांमा या वृंदावन में छिपाकर रखा गया। इसके बाद आमेर के निकट कनक वृंदावन में पहुंचने पर यह बैल अपने आप ही यही आकर रुक गए। तभी से यहां भी पुराने गोविंददेवजी विराजमान हैं।
पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार उत्तर भारत के सर्वोत्कृष्ण मंदिरों में से एक यह मंदिर सूरजमहल के नाम से जयनिवास में चंद्रमहल और बादल महल के मध्य स्थित है। किवदंती है पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह जब जयपुर शहर को बसा रहे थे तब सूरजमहल की बारादरी में रहने लगे थे। तब उन्हें एक रात मे स्वप्न आया कि यह स्थान तो भगवान का है इसे छोड़ देना चाहिए। अगले ही दिन वह चंद्रमहल में रहने लगे और कनक वृंदावन से गोविंददेवजी को यहां लाकर विराजित किया गया।

बुधवार, 9 जून 2010

शुक्र ने बदली चाल, मिथुन राशि को छोड़ कर्क में प्रवेश


गुरु की कर्क राशि पर पूर्ण दृष्टि से प्रदेश में शीघ्र ही बनेंगे मानसून के संकेत
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आकाश के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र ग्रह ने बुधवार को मिथुन राशि को छोड़कर कर्क राशि में प्रवेश किया। शुक्र का राशि परिवर्तन मानसून में गति लाएगा। वहीं प्रदेश में शीघ्र ही मानसून के संकेत मिलेंगे।
ज्योतिषीय गणना के तहत वर्तमान में कर्क राशि पर चल रही गुरु की पांचवीं दृष्टि से संपूर्ण राजस्थान में बारिश होने के आसार पनपेंगे। पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार शुक्र ग्रह कर्क राशि में 4 जुलाई तक रहेगा। कर्क राशि में बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि होने से यह वर्षा का कारक बनेगा। इसके बाद सिंह राशि का शुक्र होने पर वर्षा में कमी आएगी व वायु प्रकोप बढ़ेगा।
रोहिणी का कम तपना कम बारिश का द्योतक
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इस वर्ष रोहिणी तपी जरूर है, मगर बीच-बीच में बारिश व धूल आंधी आने से रोहिणी जितनी तपनी चाहिए, उतनी नहीं तप पाई। राजस्थान ज्योतिष परिषद के महासचिव डॉ. विनोद शास्त्री के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि अगर रोहिणी अच्छी तपे तो बारिश खूब होती है, चारों ओर हरियाली छा जाती है और अगर रोहिणी कम तपे तो बारिश कम आने के आसार पैदा हो जाते हैं। इस बार बीच में आंधी व बादल होने से आशा से कम बारिश हो सकती है। इस वर्ष संवतसर का राजा मंगल है, अगर किसी वर्ष का राजा मंगल होता है तो वर्षा की कमी के संकेत मिलते हैं। मंगल के कारण बारिश अपेक्षा से कम होती है। इसके अलावा अग्निकांड की घटनाएं बढ़ जाती हैं। पिछले दिनों अग्निकांड तथा तेज गर्मी पडऩे की घटनाएं भी इसी कारण हुई थीं। मेघेष (वर्षा का मालिक) भी मंगल है। मंगल अग्नि का कारक है तो वर्षा की कमी को दर्शाता है।

मंगलवार, 8 जून 2010

चौदह साल में एक भी निशक्त आरएएस नहीं -------------------------------

निशक्तजन अधिनियम को लागू हुए भले ही चौदह बर्ष बीत चुके हों, मगर इन सालों में एक भी निशक्त को मुख्य आरएएस कैडर में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है
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अधिनियम के अनुसार प्रत्येक वर्ग में निशक्त को 3 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। लेकिन पिछले चौदह सालों में 129 आरएएस बने थे , लेकिन एक को भी इस का लाभ नहीं मिला। जबकि कम से कम 4 पदों पर निशक्त आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था। हालांकि निशक्तजन न्यायालय की ओर से इस मामले में सुनीता सिंह और डॉ. आकाश अरोड़ा के परिवाद पर कार्मिक विभाग व मुख्यमंत्री को 10 मार्च 2010 में पत्र भेजकर जवाब मांगा। लेकिन फिलहाल कोई जबाव नहीं आया। पत्र में बताया गया कि दोनों ही परिवादियों का आरएएस में चयन के बाद भी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया गया। जबकि इस विषय में राज्य सरकार ने अक्टूबर 2002 में आरक्षण के लिए चिह्नित पदों पर ज्यों की त्यों भर्ती करने का निर्णय किया था। अगस्त 2003 में प्रमुख शासन सचिव राजस्व की अध्यक्षता में कार्मिक विभाग की बैठक में आरक्षण प्रावधान लागू होने का निर्णय लिया गया था।

कब बना कानून
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भारतीय संसद ने निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 पारित किया। प्रदेश में इस कानून को 1996 से लागू माना गया। इस अधिनियम की धारा 33 में निशक्त व्यक्तियों को चिह्नित पदों पर तीन प्रतिशत पद आरक्षित किए जाने का प्रावधान है। यहां तक कि वर्ष 2000 में इस अधिनियम का नियम नियोजन होने के बावजूद भी कार्मिक विभाग ने इसे प्रभावी रूप में नहीं माना।
न्यायालय ने भी माना 1996 से ही लागू आरक्षण
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—सितंबर 2000 में राजस्थान हाइकोर्ट में न्यायमूर्ति राजाराम यादव ने डॉ. विजय कुमार अग्रवाल के प्रकरण में 1996 से ही एक्ट के तहत आरक्षण लागू होने का निर्णय सुनाया।
—जुलाई 2002 में राजस्थान हाइकोर्ट में ही न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने डॉ. मनुजा अग्रवाल के केस में स्पष्ट रूप से कहा कि एक्ट प्रावधान शुरू होने से ही लागू माना जाए।
इनका कहना है
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निशक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन के अनुसार गत चौदह वर्षों में आरएएस के कुल 129 पद निकाले गए। अधिनियम के अनुसार इनमें कम से कम चार निशक्तजनों की भर्ती होनी चाहिए थी। मगर एक भी व्यक्ति को इसका लाभ नहीं दिया गया। अधिनियम बनने के बावजूद भी सरकार और कार्मिक विभाग मौन धारण किए हुए हैं।

शनिवार, 5 जून 2010

पुलिस सहायता केंद्र को मदद की दरकार


चार साल से बंद पड़ा है मूक-बधिरों की सहायता के लिए यादगार में स्थापित केंद्र
___________थानों में दर्ज मूक-बधिरों की शिकायतों पर बिना भेदभाव त्वरित कार्रवाई के लिए यादगार में स्थापित सहायता केंद्र चार साल से बंद पड़ा है। केंद्र के संचालन का जिम्मा एक स्वयंसेवी संस्था को सौंपा गया था, लेकिन पुलिस और प्रशासन से सहयोग नहीं मिलने के कारण संस्था मात्र दो साल तक ही काम कर पाई।
2004 में अजमेरी गेट के यादगार परिसर में मूक-बधिर सहायता केंद्र खोला गया था। पुलिस प्रशासन के सहयोग से केंद्र के संचालन का जिम्मा स्वयंसेवी संस्था नूपुर को सौंपा गया था।
केंद्र का उद्देश्य________
केंद्र की स्थापना शहर के किसी भी थाने में दर्ज मूक-बधिरों के मामलों को बिना भेदभाव हल कर दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन पुलिस और सरकार के सहयोग के अभाव में स्वयंसेवी संस्था दो वर्ष में मात्र 45 मामलों का निस्तारण ही कर पाई। इसके बाद से केंद्र बंद पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व आईजी ओपी गल्होत्रा के समय केंद्र के लिए विशेष टीम गठित करने का प्रस्ताव भी आया था, लेकिन मामला कागजी कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ पाया।
इनका कहना है_______
--केंद्र का मुख्य काम पुलिस और मूक-बधिरों के मध्य समन्वय स्थापित करना था, लेकिन काउंसलिंग व्यवस्था के साथ आर्थिक परेशानी भी आ रही थी। हालांकि पुलिस प्रशासन के समक्ष पुलिस वेलफेयर फंड व समाज कल्याण मंत्रालय से सहायता मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। पुलिस की ओर से सहायता नहीं मिलने के कारण मजबूरन केंद्र बंद करना पड़ा।_मनोज भारद्वाज, अध्यक्ष, नूपुर संस्था
--मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, अभी जांच कराते हैं, यदि ऐसा है तो शीघ्र कार्रवाई की जाएगी। — बी.एल.सोनी, आईजी
--वर्ष 2004 में यादगार में पुलिस बधिर सहायता केंद्र स्थापित किया गया था, लेकिन अभी उसका क्या स्टेटस है, उसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है- मालिनी अग्रवाल, डीआईजी, जेडीए।

शुक्रवार, 4 जून 2010

जज्बे ने दिया नई जिंदगी का पैगाम... _____________________________ _____________________________

कुदरत ने ली आंखे, मगर दिल ने दी ताकत, सोलह वर्ष के मोहम्मद शाहिद ने कंठस्थ की कुराने हाफिज
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हौंसले बुलंद हों, इरादा पक्का हो तो इंसान अपनी हर इच्छा को पूरा कर सकता है। ऐसे में एक रास्ते पर कुदरत के हाथों मजबूर इंसान, दूसरा रास्ता अख्तियार कर आखिर बुलंदी हासिल कर लेता है। ऐसा ही एक शख्स है नाहरी का नाका के मुनव्वरा मस्जिद निवासी सोलह वर्षीय शाहिद।
कुदरत ने भले ही उसे आंखे नहीं दी हों, लेकिन उसने अपने इरादों को कभी कमतर नहीं होने दिया। बचपन से गरीबी के आंचल में पले शाहिद ने अपनी काबलियत को पढ़ाई के माध्यम से पूरा किया। हालांकि उसके हमउम्र कुरान पढऩे वाले तो बहुत हैं, लेकिन पूरा कुराने हाफिज पढऩे वाले इक्के-दुक्के ही लोग मिलेंगे। मगर शाहिद इन सभी से अलग है। मन में सौम्यता लिए वह अपने नाम को तो सार्थक करता ही है वहीं कुराने हाफिज को कहीं से भी बिना देखे पढ़ लेता है। मन में मौलवी बनने की तमन्ना लिए शाहिद नाहरी का नाका स्थित मदरसा तालिमुल कुरआन में अरबी अब्बल का कोर्स कर रहा है।
मदरसा के नाजिम अब्दुल वासिद के अनुसार वह छह साल से तालीम हासिल कर रहा है। उसने हाल ही में जामिया तुल हिदाया में आयोजित अजान के कंपटीशन में चौथा स्थान प्राप्त किया है। वहीं मदरसे में पढऩे वाले सभी बच्चों में अव्वल है। मदरसा तालीमुल कुरान के अध्यश्र कामरेड कन्नू भाई ने बताया कि शाहिद के पिता बाबू खां का कोई अता पता ही नहीं है। मां जरीना मजदूरी करके जैसे तैसे घर का खर्च चलाती है। तंजीम-ए-यजदानी के अध्यश्र शौकत अली ने बताया कि ऐसे मेधावी छात्रों की लोगों को आगे बढ़कर सहायता करनी चाहिए।

बुधवार, 2 जून 2010

चढ़ावा अपार, खर्चा अपरंपार



गोविंद देव के एक करोड़, गणेशजी के लगता हैं 60 लाख का हर साल भोग----------------------

शहर के देवस्थान अधिकृत मंदिरों में आय से अधिक खर्चा, निजी एवं ट्रस्ट के मंदिरों में चढ़ावा आ रहा है अपार
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आम आदमी भले ही महंगाई से त्रस्त हो ,लेकिन भगवान के प्रति उनकी आस्था कम नहीं हुई और चढ़ावे में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी ही हो रही है। महंगाई ने जहां लोगों के रोजाना के मेन्यू में भले ही कमी कर दी हो, मगर ठाकुरजी के भोग और पोशाक में किसी तरह की कमी नहीं आई है। जयपुर के अराध्यदेव गोविंददेव जी के मंदिर में औसतन रोजाना भोग पर 25 से 27 हजार रुपए खर्च होता है यानी एक करोड़ रुपए सालाना, जबकि देवस्थान के 29 मंदिरों का भोग का रोजाना औसतन खर्चा मात्र 136 रुपए ही है।
जलेब चौक स्थित गोविंददेवजी मंदिर औसतन रोजाना 20 हजार दर्शनार्थी आते हैं ,वहीं यहीं के आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर, बृजनिधिजी मंदिरों में भक्तों की संख्या मामूली है। विभागीय सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार की उदासीनता के कारण देवस्थान के मंदिरों में भक्तों की संख्या कम हुई है। ट्रस्ट के मंदिरों में हालात अच्छे हैं। भगवान की पोशाक हर दिन नई होती है तथा हर झांकी में भगवान की पोशाक, शृंगार व भोग बदलता है।
सालाना एक करोड़ का भोग
देवस्थान के मंदिरों में वर्षभर में औसतन 45 हजार की राशि भोग में खर्च होती है जबकि गोविंददेवजी के भोग में करीब एक करोड़ की राशि खर्च हो जाती है। मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में भोग पर प्रतिवर्ष औसतन साठ लाख रुपए खर्च होते हंैं।

शहर के प्रमुख मंदिर प्रन्यासों की आय-—व्यय
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मंदिर श्रीगोविंददेवजी
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वर्ष आय व्यय
2005 18167847.67 18167847.67
2006 23316664.10 23316664.10
2009 50625836.10 50625836.10
2010-11 64786064 64786064

मोतीडूंगरी गणेश मंदिर
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2004 9336288 9336288
2005 10638157 10638157
2006 11679050 11679050
2007 14504593.26 14504593.26

--------चांदपोल हनुमान मंदिर में 2005 से 2009 तक की आय 8,46,031 है और इतना ही खर्चा है।
--------देवस्थान के मंदिरों का आय व व्यय देखे तो खर्चा अधिक है। इनके मंदिरों में 2004---—05 से 2008—09 तक की आय 1,13,33,004 है वहीं 1,14,11,651 रुपए का खर्चा हैं।

इनका कहना है
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-देवस्थान विभाग में केवल आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों की आय-व्यय का ही ब्यौरा हमारे पास होता है देवस्थान के शेष मंदिरों की आय तो न के बराबर होती है जो किराए से आती है। प्रन्यास के मंदिरों की ऑडिट रिपोर्ट जितनी हमारे पास होती है वह हम उपलब्ध करा देते हैं।
पंकज प्रभाकर, सहायक आयुक्त(प्रथम), देवस्थान विभाग
—हर झांकी में भोग सभी मंदिरों में एक जैसा होता है, वहीं नित्य भोग भी उतना ही रहता है। यह राशि सिर्फ उत्सवों और त्यौहारों में अधिक हो जाती है। —मानस गोस्वामी, प्रवक्ता, गोविंददेवजी मंदिर
—प्रतिवर्ष मंदिर में 14 से 20 प्रतिशत आय बढ़ती है तो खर्च भी उसी हिसाब से बढ़ता है। फिर मंदिर में समय के अनुसार सिक्योरिटी बढ़ी तो अन्य सेवाएं भी बढ़ीं। इनके लिए मंदिर के भोग से ही भोजन की व्यवस्था की जाती है। इस कारण भोग में निरंतर बढ़ोतरी करनी पड़ती है। —महंत कैलाश शर्मा, मोतीडूंगरी मंदिर

शनिवार, 29 मई 2010

ढाई लाख बच्चेबिशेष शिक्षा के मोहताज


राज्यभर में दो लाख 61 हजार से अधिक निशक्त बच्चों पर मात्र 763 विशेष शिक्षक, हो रहा है आरसीआई एक्ट का उल्लंघन
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प्रदेश में एक ओर राज्य सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने के भरसक प्रयास कर रही है वहीं दूसरी ओर करीब ढाई लाख निशक्त बच्चे विशेष शिक्षा के मोहताज हैं। शायद राज्यसरकार की निशक्तों के लिए बार-बार की जाने वाली घोषणाएं केवल कागजी ही बनकर रह गई हैं।
आरसीआई एक्ट (भारतीय पुनर्वास परिषद अधिनियम 1992)के अनुसार निशक्त बच्चों को विशेष शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रत्येक 8 बच्चों पर एक शिक्षक होना चाहिए। सर्वशिक्षा अभियान के तहत राजस्थान में विभिन्न श्रेणी के कुल 2 लाख 61 हजार एक सौ छह निशक्त बच्चेचिह्नित (6 से 14 वर्ष की उम्र के)किए गए। आरसीआई एक्ट की नियमावली के तहत प्रदेशभर के इन निशक्त बच्चों पर कुल 32 हजार विशेष शिक्षक होने चाहिए। लेकिन नियमों के विपरीत प्रदेश में कुल 763 विशेष शिक्षक ही हैं जिनमें से 513 शिक्षक अनुबंधित हैं।

घोषणा के पांच वर्ष में एक कदम
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वर्ष 2005 में राज्य सरकार की ओर से संभाग स्तर पर मल्टी डिसएबल्ड स्कूल खोलने की घोषणा की गई थी। मगर पांच वर्षों में 7 संभगों की इस योजना में राज्य सरकार मात्र एक कदम ही चल पाई। जिसमें सरकार इस वर्ष मल्टीडिसएबल्ड स्कूल के लिए जमीन ही चिह्नित कर पाई।
ये कहते हैं कानून

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-केंद्रीय निशक्तजन अधिनियम 1995 की धारा 26 के अंतर्गत निशक्त बच्चों का शिक्षण कार्य विशेष शिक्षा पद्धति और विशेष शिक्षकों के माध्यम से कराया जाए। हर तहसील मुख्यालय पर ऐसे विद्यालय खोलने का प्रावधान।
-आरसीआई की धारा 13 के अंतर्गत भारतीय पुनर्वास परिषद से मान्यताप्राप्त संस्थानों में एक वर्षीय व दो वर्षीय डिप्लोमा प्राप्त व्यक्ति ही निशक्त बच्चों को शिक्षण प्रशिक्षण के लिए अधिकृत हैं।

कितने निशक्तजन (वर्ष 2001 की गणना के अनुसार)
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मानसिक नेत्रहीन मूकबधिर

पुरुष 70313 430589 86420
महिलाएं 38741 323373 61962
कुल 14,11,979

इनका कहना है
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-निशक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन का कहना है कि विभाग की ओर से राज्य सरकार की ओर से गत वर्ष आरसीआई एक्ट के अनुसार विशेष शिक्षकों की भर्ती के लिए पत्र भेजा गया था। पिछले वर्ष शिक्षा मंत्रालय में कोई सुनवाई नहीं होने पर इस वर्ष भी सरकार से निवेदन किया गया था कि यदि आरसीआई एक्ट के तहत भर्ती नहीं हो सकती तो 10 प्रतिशत ही विशेष शिक्षकों की भर्ती की जाए।

-सपोर्ट एंड एडवोकेसी फॉर हैल्पलैस पीपुल्स संस्थान के महासचिव हेमंत भाई गोयल का कहना है कि शिक्षा का अधिकार पूरे देश में लागू हो गया, तो इन बच्चों के लिए भी ग्राम, ढाणियों तक विशेष शिक्षा प्राप्त हो। संस्थान कई वर्षों से प्रदेश में विशेष शिक्षकों की भर्ती के लिए प्रयास कर रहा है मगर कोई सुनवाई नहीं हुई। निशक्त बच्चों के लिए विशेष शिक्षा विशेष शिक्षकों के माध्यम से ही करवाई जानी चाहिए। वहीं हर तहसील मुख्यालय पर शीघ्र ही विद्यालय खोले जाने चाहिए।

शुक्रवार, 28 मई 2010

कागजों में सिमटी झालाना में ईको टयूरिज्म पार्क योजना -------------------------------------------


पर्यटकों के लिए जापान सरकार के सहयोग से 23 लाख के बजट से तैयार कैमल व हॉर्स सफारी व झालाना की पहाडिय़ों पर एडवेंचर ट्रेकिंग की योजना।
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घनी आबादी के बीच सघन जंगलों में पर्यटकों के लिए वन्यजीवों की अठखेलियां और हॉर्स सफारी व कैमल सफारी की योजना ईको ट्यूरिज्म पार्क अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है।
राजस्थान वानिकी व जैव विविधता परियोजना के तहत बनने वाले इस पार्क में झालाना के जंगलातों की महक बिखेरते हुए जापान सरकार के सहयोग से तैयार करने की योजना बनाई गई थी। योजना में 23 लाख रुपए के बजट को स्वीकृति दी गई थी। हालांकि इस योजना में लाखों रुपए खर्च किए जा चुके हैं मगर योजना कागजों में ही सिमट कर रह गई है।
ये है योजना---
झालाना के खो-नागोरियान के 480 हैक्टेयर क्षेत्र में बनने वाले पार्क के लिए पर्यटकों को जिप्सी से भ्रमण कर वन्यजीवों को दिखाने के उद्देश्य से जंगल के लगभग आठ-दस किमी क्षेत्र में ट्रेक भी बनाए जा चुके थे। वह भी टूट-फूट रहे हैं। परियोजना के तहत पार्क में पर्यटकों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए पर्यावरण शिविर लगाए जाने, झालाना की पहाडिय़ों पर एडवेंचर ट्रेकिंग, कैमल व हॉर्स सफारी की योजना भी विचाराधीन है।
कौन-कौन से वन्यजीव व पक्षी---
झालाना के खो-नागोरियान में बनने वाले इको ट्यूरिज्म पार्क में पर्यटकों के लिए बघेरा, जरख, सांभर, चीतल, नीलगाय आदि वन्यजीव और चील, कोयल, पिथ्था, नौरंग, भुजंग, मुनिया, शिकरा, बुलबुल सहित विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों को दिखाने के लिए लाए गए थे।
वन्यजीवों ने भूख-प्यास से तोड़ा दम---
योजना के तहत झालाना क्षेत्र में एनक्लोजर बनाकर लाए गए सांभर,चीतल, हिरणों में से करीब आधे वन्यजीवों ने भूख-प्यास से दम तोड़ चुके हैं। वर्तमान में झालाना वन क्षेत्र में इन वन्यजीवों के लिए न तो खाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है और न ही पीने के लिए पानी।
ये कहते हैं---
इको ट्यूरिज्म पार्क की योजना पहले मूर्त रूप क्यों नहीं ले पाई, इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है मगर अब नई ईको ट्यूरिज्म पॉलिसी लांच की गई है। इसके अंतर्गत सभी पुरानी नई योजनाओं का नया प्लान बनाकर सरकार के पास भेजा जाएगा। - टी.के.वर्मा, उपवन संरक्षक।

बुधवार, 26 मई 2010

तीन सौ शिवालयों में हो रहा है जल संरक्षण


--भक्तों द्वारा चढाया जाने वाला जल बन सकता है भविष्य के लिए वरदान
--शहर में हैं करीब 7000 शिवालय
--सावन में 6 करोड़ लीटर पानी बचाना संभव

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शहर के 300 शिवालय सावन के महीने में भक्तों की ओर से चढ़ाए जाने वाले जल को बचाने में लगे हैं। भूजल पुनर्भरण व्यवस्था के जरिए अकेले सोमवार को लगभग 4 लाख लीटर और पूरे महीने में 1 करोड़ लीटर जल का संरक्षण होने से तेजी से गिर रहे भूजल स्तर को थामने में मदद मिलेगी। अनुमान के मुताबिक इन मंदिरों में सावन के सामान्य दिनों में डेढ़ लाख और सोमवार को 2 लाख शिवभक्त जल चढ़ाते हैं।
पिछले आठ साल से इस काम से जुड़े और 2008 र्में 306 मंदिरों में जल संरक्षण की योजना शुरू करने के लिए राज्य सरकार से सम्मानित हो चुके पंडित पुरुषोत्तम गौड का कहना है कि अगर यह व्यवस्था शहर के सभी सात हजार शिवालयों में अपनाई जाए, तो सावन में करीब छ करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है। कूकस स्थित सदाशिव ज्योर्तिलिगेश्वर महादेव मंदिर में जल पुनर्भरण ढांचा (वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) लगा हुआ है। मंदिर समिति के सचिव विष्णु नाटाणी ने बताया कि एक समय में शक्करकुई सूख चुका था, पर अब इसके पानी से हजारों लोगों की प्यास बुझाई जाती है।
संरक्षण का तरीका---------------
अधिकांश शिव मंदिरों में कुएं व चैंबर बनाए गए हैं। हालांकि दुग्धाभिषेक के समय चैंबर को बंद कर दूध निकाल लिया जाता है। कुछ मंदिरों में शिव पंचायत के चैंबर को दो पाइपों से जोड़ा गया है, जिनसे आने वाले पानी व दूध को निकासी के लिए दो अन्य चैंबरों से जोड़ा गया है। इनमें एक चैंबर दूध के लिए और दूसरे को या तो वहां स्थित कुएं से जोड़ा गया है या जल संरक्षण के लिए एक अन्य बड़ा चैंबर बनाया गया है। दोनों चैंबरों में स्टॉपर लगाए गए हैं।
सुझाव------------------------
भूजल वैज्ञानिक व पुनर्भरण विशेषज्ञ विनय भारद्वाज ने बताया कि उपयुक्त तकनीक वाला ढांचा बनाकर कई शिवालयों में पहले से मौजूद कुंओं में भक्तों द्वारा चढ़ाए जाने वाले जल को भरा जा सकता है, जिसका कई कार्यों में उपयोग हो सकता है। महापौर पंकज जोशी का कहना है कि जल संरक्षण की यह योजना प्रत्येक शिव मंदिर में शुरू की जानी चाहिए।
धूलेश्वर मंदिर------------------
पुजारी कैलाश शर्मा ने बताया कि यहां सावन में प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्त आते हैं, पर जल संरक्षण के बारे में अभी तक सोचा नहीं। व्यवस्था हो सकती है, तो हम इसे जरूर अपनाएंगे।
जंगलेश्वर महादेव मंदिर-----------
अर्पित होने वाले दूध व जल यहां स्थित कुएं में जाते हैं। सेवा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष आरडी बाहेती का कहना है कि भक्त दूध और जल एक साथ चढ़ाते हैं, तो उन्हें कैसे रोका जा सकता है?
लक्ष्मीनारायण बाईजी मंदिर---------
मंदिर महंत पुरुषोत्तम भारती ने बताया कि शिवालय में पानी का संरक्षण नहीं हो पाता है क्योंकि यहां ज्यादा भक्त नहीं आते। फिर भी ऐसी कोई व्यवस्था है तो उसे लागू करने में कोई हर्ज नहीं है।
घाट के बालाजी-----------------
महंत सुरेशाचार्य के अनुसार जल पुनर्भरण से काफी पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। यह व्यवस्था सभी मंदिरों में होनी चाहिए। हाईकोर्ट परिसर शिवालय : हाइकोर्ट गेस्ट हाउस के प्रबंधक नरेंद्र सिंह का कहना था कि पानी की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप लेती जा रही है। इसे सहेजकर रखना भविष्य के लिए अच्छा होगा। शिवालयों में जल संरक्षण अच्छी शुरूआत है।
भक्त भी बोले-------------------
मोतीडूंगरी के आनंदपुरी निवासी किरण सैन के अनुसार शवालयों में चढ़ाए जाने वाले पानी को संरक्षित करने से भूजल स्तर बढ़ाने में मदद मिल सकती है। झोटवाड़ा रोड निवासी राजेश ने बताया कि मंदिरों में जल पुनर्भरण के लिए भक्तों को भी आगे आना होगा। कॉलोनियों के अंदर मौजूद कई मंदिरों में तो काफी पानी यूं ही जाया हो जाता है।

सोमवार, 17 मई 2010

सत्तर साल में चौदह बार बना तेरह दिन का पक्ष


आगामी तीस सालों में दो बार, पचास वर्ष बाद कल से शुरू होगा वैशाख शुक्लपक्ष में तेरह दिन का पक्ष
पचास वर्ष बाद वैशाख के शुक्लपक्ष से शुक्रवार को तेरह दिन का पक्ष शुरू होगा। ज्योतिषविदों की माने तो तेरह दिन के पक्ष का यह विशेष संयोग सत्तर वर्षों में चौदह बार बना, वहीं आगामी तीस वर्षों में यह केवर दो बार ही बनेगा।
यूं तो इस पक्ष में विवाह आदि शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जा सकते। मगर इस बार द्वितीय वैशाख के शुक्लपक्ष में प्रतिपदा व चतुर्दशी तिथि क्षय होने के कारण बनने वाले 13 दिन के पक्ष से मांगलिक कार्य शुरू होंगे। पं.बंशीधर जयपुर पं.निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार माना जाता है कि 13 दिवसीय पक्ष का संयोग सर्वप्रथम महाभारत काल में बना था। पंचाग निर्माताओं की मानें तो अधिकमास के बाद वैशाख शुक्लपक्ष में तेरह दिन का पक्ष संभवतया अब तक का पहला संयोग है।
सत्तर वर्ष पहले और तीस वर्ष बाद
पं. दामोदरप्रसाद शर्मा व पं.शक्तिमोहन श्रीमाली के अनुसार ज्योतिष आकलन में इससे पहले 1948 में वैशाख शुक्लपक्ष में 13 दिन का पक्ष था, लेकिन तब अधिक मास नहीं था। तेरह दिन का पक्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष 1940, श्रावण शुक्लपक्ष 1945, वैशाख शुक्लपक्ष 1948, आश्विन शुक्लपक्ष 1951, भाद्रपद शुक्लपक्ष 1959, आषाढ़ कृष्णपक्ष 1962, कार्तिक कृष्णपक्ष 1974, श्रावण शुक्लपक्ष 1976, ज्येष्ठ कृष्णपक्ष 1979, द्वितिय आश्विन कृष्ण पक्ष 1982, आश्विन कृष्णपक्ष 1990, आषाढ़ शुक्लपक्ष 1993, कार्तिक शुक्लपक्ष 2005 और श्रावण कृष्णपक्ष 2007 में भी बना था। आगामी तीस वर्षों में यह वर्ष 2010 के बाद भाद्रपद शुक्लपक्ष 2021, आषाढ़ कृष्णपक्ष 2024 में बनेगा।
यूं बना तेरह दिन का पक्ष
ज्योतिषाचार्य दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार तिथि का निर्माण चंद्रमा और सूर्य के अंतर से होता है। चंद्रमा की गति यदि तेज होती है और तिथियों के मान को जल्दी पार करता है तो तिथि का क्षय हो जाता है। पूरे पखवाडे में यदि चंद्रमा की गति 800 घटी- 13 अंश 20 कला या इससे अधिक रहती है तो उस पखवाड़ें में दो तिथियों का क्षय हो जाता है।

इस कारण संपन्न होगे विवाहादि मागलिक कार्य :
ज्योतिषविदों के मुताबिक केंद्र में शुभ ग्रहों की स्थिति वाले लग्र में यह दोष समाप्त हो जाता है। ज्योतिषी चंद्रमोहन दाधीच व पं.पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार इस वर्ष अधिकांश पंचागों में पीयूषधारा के वाक्य को ध्यान में रखते हुए द्वितीय वैशाख शुक्ल में 13 दिन के पक्ष में विवाह आदि मागलिक कार्यों के मुहूर्तों का उगेख किया गया है, पंचाग दर्पण के मतानुसार अत्यंत आवश्यक स्थिति में ही इन्हें स्वीकार करें।

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

पुरुषोत्तम मास के बाद वैशाख शुक्लपक्ष में पहली बार तेरह दिन का पक्ष

इस बार पुरुषोत्तम मास के बाद द्वितीय वैशाख के शुक्लपक्ष में 13 दिवसीय पक्ष का पहली बार दुर्लभ संयोगबनेगाा। इससे पहले यह संयोग 1948 में बना था, लेकिन तब अधिक मास नहीं था। यूं तो इस पक्ष में विवाह आदि कार्य वर्जित माने जाते हैं मगर विवाह लग्र के केंद्र में शुभ ग्रहों की दृष्टि वाले जातकों के शुभ कार्य संपन्न हो सकेंगे। माना जाता है कि 13 दिवसीय पक्ष का संयोग सर्वप्रथम महाभारत काल में बना था।
पंचांगनिर्माताओं की मानें तो अधिकमास के बाद वैशाख शुक्लपक्ष में तेरह दिन का पक्ष संभवतया अब तक का पहला संयोगहै। पुरुषोत्तमास में व्रत व दान-पुण्य से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ज्योतिषी चंद्रमोहन दाधीच के अनुसार इस बार द्वितीय वैशाख के शुक्लपक्ष में प्रतिपदा व चतुर्दशी तिथि क्षय होने के कारण बनने वाले 13 दिन के पक्ष से मांगलिक कार्य शुरू होंगे।
पंचांगनिर्माता कहते हैं
पं.बंशीधर जयपुर पंचांगनिर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार हालांकि शास्त्रों में 13 दिवसीय पक्ष अशुद्ध माना गया है। लेकिन पंचांगमें यह मत भी दिया गया है अधिक आवश्यक होने पर विवाह करने वाले जातकों के लग्न के केंद्र में शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो यह संभव हो सकते हैं। पंचांगदर्पण के सह-संपादक पं. शक्तिमोहन श्रीमाली के अनुसार केंद्र में शुभ ग्रहों की स्थिति वाले लग्र में यह दोष समाप्त हो जाता है। इस वर्ष अधिकांश पंचांगों में पीयूषधारा के वाक्य को ध्यान में रखते हुए द्वितीय वैशाख शुक्ल में 13 दिन के पक्ष में विवाह आदि मांगलिक कार्यों के मुहूर्त लगाए गए हैं, पंचांगदर्पण के मतानुसार अत्यंत आवश्यक स्थिति में ही इन्हें स्वीकार करना चाहिए।
पहले कब बना था यह योग
पं. दामोदरप्रसाद शर्मा ने बताया कि ज्योतिष आकलन के अनुसार इससे पहले 1948 में वैशाख शुक्लपक्ष में 13 दिन का पक्ष था, लेकिन तब अधिक मास नहीं था। सामान्य तौर पर 13 दिन का पक्ष 1993 में आषाढ़ शुक्ल पक्ष, वर्ष 2005 में कार्तिक शुक्ल पक्ष और 2007 में सावन कृष्ण पक्ष में भी बना था।

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

39 साल बाद नवसंवत्सर के राजा व मंत्री नीच राशि में

-संवत 2067 का राजा बनेगा मंगल व मंत्री होंगेे बुध
-अगली बार 17 साल बाद संवत 2084 बनेगा यह संयोग
-शोभन नामक नववर्ष में सूर्य के सीमाधिपति होने से सीमाओ पर रहेगी हलचल
चैत्र शुक्लपक्ष प्रतिपदा या नवसंवत्सर 2067 के आगमन पर ग्रहों के सत्ता परिवर्तन पर 39 वर्ष बाद नवसंवत्सर के राजा व मंत्री नीच राशि में आने का विशेष संयाग बन रहा है। नवसंवत्सर पर ग्रहों का मंत्रीमंडल बदल जाएगा। शोभन नाम के इस हिंदी वर्ष का राजा मंगल होगा और मंत्री बुध बनेंगे।
ग्रहों के इस मंत्री मंडल में सीमाधिपति सूर्य के बनने के कारण इस वर्ष सीमा पर हलचल बनी रहेगी। वहीं महंगाई बढऩे के आसार रहेंगे। पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पं. दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से भारतीय नव संवत्सर शुरू होता है जिस प्रकार राष्ट्रों के सुव्यवस्थित संचालन के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री का चुनाव होता है। मंत्रीमंडल का गठन होता है उसी प्रकार आकाशीय कौंसिल में विभिन्न पदों के लिए चयनित ग्रहों की प्रकृति, स्वभाव, परस्पर मैत्री के अनुसार पूरे वर्ष का घटनाक्रम चलता है।
चार ग्रह होंगे नीच राशिगत :
सीताबाड़ी निवासी ज्योतिषाचार्य पं.चन्द्रमोहन दाधीच के अनुसार 17 नवंबर 2009 से राहु व केतु भी नीच राशि में चल रहे हैं। यह दोनों ग्रह आगामी संवत 2067 के अंत तक नीच राशि में ही भ्रमण करेंगे। इस प्रकार संवत 2067 के शुरू होने के समय एक साथ चार ग्रह अपनी अपनी नीच राशि में रहेंगे। 15 मार्च को मध्यरात्रि बाद 2 बजकर 23 मिनट से शुरू होने वाले संवत 2067 में मंत्रीमंडल के लिए चल रही उठापटक के पदाधिकारी इस प्रकार होंगे।
मगल : राजा, मेघेष
बुध : मंत्री
चंद्रमा : सेनाधिपति,फलेश
सूर्य : सीमाधिपति
गुरु : शीतकालीन फसलों का स्वामी,धनेश
शुक्र : अग्रधन्याधिपति, नीरसाधिपति
शनि : कोई पद नहीं
इससे पहले संवत 2028 में बना था यह योग
इससे पहले यह योग संवत 2028 में वर्ष 1971 में बना था। अब यह संयोग 17 साल बाद संवत 2084 में बनेगा।
सत्तापक्ष में उत्पन्न होंगे मतभेद, बढ़ेंगी महंगाई
ज्योतिषी पं.पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार नवसंवत्सर का राजा मंगल अग्रि तत्व प्रधान, भूमि, भवन, मशीनरी, उद्योग नेतृत्व कारी है। इसके नीच राशि में होने से सत्ता पक्ष में परस्पर मतभेद की स्थितियां उत्पन्न होंगी। कहीं भीषण अग्रिकांड, भूकंप व आगजनी की घटनाओं में वृद्धि होगी। कइ्र राज्यों में वर्षा की कमी के संकेत मिलेंगे। इससे धान्यों का अभाव रहेगा। जनता महंगाई से परेशान रहेगी। सत्तारुढ सरकार किसानों व कल कारखानों के संबंध में नई नीतियों का निर्धारण करेगी। सीमा प्रांतों में सैन्य क्षमताओं की वृद्धि के इंतजाम किए जाएंगे। मंत्री बुध के नीच राशिगत होने से वायु की अधिकता से फसलों को नुकसान के आसार रहेंगे। जनता में हर्ष व संतोष का वातावरण रहेगा।

बुधवार, 10 मार्च 2010

शील की डूंगरी में शहरी व ग्रामीण परिवेश का संगम

श्रद्धावत भक्तों ने लगाई हाजिरी,शीतला माता के लगा शीतल व्यंजनों का भोग, सोलह दिवसीय गणगौर पूजा के तहत बच्चों ने रचाया दूल्हा दुल्हन का स्वांग, बाग बगीचों रही रौनक
प्रत्येक धर्म और संस्कृति को संजोए धार्मिक नगरी जयपुर के लिए सोमवार का दिन विशेष रहा। शीतलाष्टमी के पावन पर्व पर घर-घर में शीतल व्यंजनों से शीतला माता की आराधना के साथ ही शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर चाकसू स्थित शील की डूंगरी में परंपरागत मेला भरा।
शहरी और ग्रामीण परिवेश की फिजां में मानो हरेक समाज घुल-मिल गया हो। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शील की डूंगरी का मेला परवान पर रहा। न कोई अमीर, न कोई गरीब हरेक में मातेश्वरी शीतला माता के दर्शनों की आस्था सर चढ़कर बोल रही थी। हाथों में श्रद्धा के फूल लिए हजारों भक्तों ने करीब तीन सौ मीटर दूरी तक सीढियां चढ़कर माता के दरबार में हाजिरी दी। पूरा वातावरण शीतला माता के जयकारों से गूंज रहा था। अन्य दिनों में वीरान सी नजर आने वाली शील की डूंगरी का आसपास का करीब पांच किलोमीटर का दायरा हर वर्ग के लोगों की खुशियां बटोर रहा था। माता की आस्था के साथ मेले की रौनक अष्टमी के इस पर्व में चार चांद लगा रही थी। दो दिवसीय इस मेले में रविवार देर रात से ही माता के दर्शनों की लंबी कतारे लगना शुरू हो गई थी, जो सोमवार दोपहर तक रही।
धान का दान, मांगी मन्नते : आरोग्य और सुख की कामना से दूर दूर से आए भक्तों ने माता के समक्ष धान का दान किया और मन्नतें मांगी। इनमें गेहूं, जौ व बाजरे का दान किया। वहीं माता को नारियल, चुनरी भेंट की और मालपुए का भोग लगाया।
घूंघट में झांकती संस्कृति : शहरी परिवेश के अलावा यहां संस्कृति का हर रंग नजर आ रहा था। घूंघट से झांकती ट्रेक्टर, ऊंट गाड़ी व घोड़ा गाड़ी में बैठी महिलाएं इस परंपरागत मेले का आनंद उठाती नजर आ रही थीं।
गाडोल्या से रिमोट कार तक : मेले में पुराने समय मे चलने वाली गाडोल्या भी यहां नजर आ रही थीं, तो वहीं रिमोट कार का भी थी। इसके साथ ही मेले में दस मिनट तक चलने वाला मौत के कुए का तमाशा और करीब सत्तर फीट ऊंचे झूलों का आनंद भी कुछ कम नहीं था। हर वर्ग की पसंद का नजारा यहां था।
इतिहास के पन्नों में : प्राचीन किवदंतियों में शील की डूंगरी का यह मंदिर करीब पांच सौ वर्ष पुराना है। पुजारी लक्ष्मण प्रजापति बताते हैं कि इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां हैं। लेकिन माता के दरबार में आने वाला कोई भी पीढि़त व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता। उन्होंने बताया कि हालांकि पहले की तुलना में श्रद्धालुओं में कुछ कमी आई है लेकिन इस बार पिछले वर्ष की तुलना में भक्त अधिक हैं। बस्सी के राम खिलाड़ी ने बताया कि वह कई वर्ष से यहां माता के दर्शनो के लिए आ रहे हैं और उनकी पूरी कृपा है। प्रत्येक वर्ष शहर के अलावा आसपास के गांवो के अलावा प्रदेशभर के हजारों भक्त यहां दर्शनों के लिए आते हैं।

प्रयत्न से ही संभव हैसमाज में जागरूकता : अम्मा

जयपुर शहर में अमृत वर्षा का संचार करने के लिए आई माता अमृतानंदमयी अम्मा ने कहा है कि रत्न के गंदगी में गिर जाने से कभी रत्न की चमक कमजोर नहीं पड़ती। तब भी ज्ञानी पुरुष उसे ढूंढ ही लेते हैं। अम्मा से हुई बिशेष बातचीत के कुछ अंश :
-वर्तमान में धर्म की भूमिका कितनी कारगर है?
-देश में प्राचीन काल से ही शंकराचार्य व रामानुज संप्रदाय पूजनीय रहे हैं जो वर्तमान में भी वही स्थिति रखते हैं। धर्म के नाम पर कुछ लोगों ने पाखंड फैला रखा है मगर इसकी पहचान समाज को ही करनी होगी। महापुरुषों की पहचान करनी चाहिए, तभी समाज की कुरीतियों का अंत होगा।
-धर्म के नाम पर पिछले दिनों कुछ संतों का नाम स्कैंडल में भी आया है?
-सभी ऐसे नहीं होते। जरूरी नहीं लाइब्रेरी में एक दो किताबों को छोड़कर सभी किताबें ज्ञान आधारित होती हैं। हॉस्पीटल में एक डॉक्टर नालायक निकले तो जरूरी नहीं, सभी ऐसे ही हों"े। इसके लिए समाज में जागरूकता की आवश्यकता है। वह कार्य भी हमें ही करना होगा।
-समाज में जागरूकता के लिए क्या होना चाहिए?
-प्रयत्न से ही यह संभव है। यह जरूरी नहीं प्रत्येक प्रयत्न सफल हो। मगर प्रयत्न से समाज को बदला जा सकता है। डीजीपी ने भी समाज में क्रिमिनल्स के उत्थान की बात कही थी।
-क्या आप क्रिमिनल्स के उत्थान की कोई योजना शुरू करेंगी?
-हां लेकिन इलाहबाद में बेघरों के उत्थान की योजना पूर्ण होने के बाद इस पर कार्य किया जाएगा। कोशिश करेंगे, कि इसकी शुरुआत जयपुर से हो।
-देश विदेश में अम्मा के मठ हैं, क्या राजधानी में भी वह अपना मठ स्थापित करेंगी?
-मेरा पहला उद्देश्य सभी की इच्छाएं पूर्ण करना है। पहले सेवा कार्य आरंभ हों और समाज का भला हो। फिर मठ स्थापना की बात हागी। बेघरों को घर मिले। वहीं गरीबों के लिए सेल्फ एंप्लॉयमेंट स्कीम योजनाएं भी चलाई जा रही हैं।
-अम्मा ने यूएनए में स्प्रिच्यूअल लीडर्स की स्पीच में भगवान से वरदान में सर्वप्रथम स्वीपर बनने की इच्छा जाहिर की थी। क्या यह सही है?
-हां, क्योंकि स्वीपर पूरे समाज की गंदगी साफ करता है।
-जयपुर के लिए अम्मा क्या देकर जाएंगी?
-आशीर्वाद के अलावा कुछ नहीं है मेरे पास। सभी सुखी रहे। यही कामना है।

शनिवार, 16 जनवरी 2010

हवाओं ने कहा, फिजाओं ने सुना...

हवाओं ने कहा सितारों से फिजाओं ने सुना किनारों से
क्यों पूछते हो मेरा हाल
जब हमने कहा तरानों से क्यों करते हो हमसे सवाल
जीवन तो इक नैया है और हमें जाना है उस पार
वसंती रंग से रंगे समंदर में हिचकोले लेता है मेरा प्यार
आपने तो निकाली अपनी जिंदगी झिलमिल सरगम के साजों में
हमें भी करने तो अपने प्यार का इजहार

बुधवार, 13 जनवरी 2010

दे माई दे माई लोहड़ी...

पंजाब में ऋतु परिवर्तन एवं नई फसल के यौवन पर आने की खुशी मेें मनाए जाने वाले पर्व लोहड़ी पर जयपुर में पंजाबी समाज के लोगों ने अनेक आयोजन किए, कलाकारों को बुलाया, रेवड़ी, मूंगफली और पॉपकॉर्न का प्रसाद बांटा।
पहली लोहड़ी पर नवविवाहित जोड़ों एवं नवजात शिशुओं वाले घरों में उत्सव का माहौल रहा। ऐसे घरों में कुंवारे लड़के-लड़कियों की टोलियां शगुन मांगने पहुंची। वहां पहुंचकर दे माई लोहड़ी वे, जीवे तेरी जोड़ी वे.. गाकर शगुन मागा। लोगों ने घरों और चौराहों पर डीजे लगाकर पंजाबी भंगडा और गिद्दा की धुनों पर नाचते-गाते लोहड़ी पर्व मनाया। लोहड़ी की अग्नि में लोगों ने समृद्धि एवं खुशहाली के लिए रेवड़ी, मूंगफली, मक्का के फूले तथा तिल से बनी मिठाइयां अर्पित की।

सौरमंडल में अपनी आभा बिखेर रहे हैं सर्दियों के सितारे

15 को सीधी चाल में वक्री बुध, चंद्रमा 18 को हो"ा बुध के नजदीक
सौरमंडल में सर्दियों के सितारे अपनी आभा बिखेरने ल"े हैं। संध्याकाश में वे चमकने ल"े हैं। आकाश में साफ नजर आने वाले चार प्रमुख "्रह इनके बीच चार चांद ल"ा रहे हैं। सबसे चमकदार "्रह शुक्र, सूर्य की आभा में छिपा हुआ है।
सूर्य के सबसे नजदीक वक्री बुध 15 जनवरी को सीधी चाल में आए"ा, जो पूरे माह धनु राशि के तारों के बीच डोलता रहे"ा। माह के उतराद्र्ध में कोई कुहासा रहित सुबह मिल जाए तो पूर्वी श्रितिज पर यहां से सूर्य निकलता है, वहीं ल"भ" 15 डि"्री ऊपर नजर दौड़ाने पर थोड़ी कठिनाई से चंचल बुध दिखाई दे जाए"ा। बीएम बिड़ला तारामंडल के सहायक निदेशक संदीप भट्टाचार्य के अनुसार अंधकार घिरते ही बृहस्पति दश्रिण?पश्चिम श्रितिज पर अपनी चमक?दमक से सभी को आकर्षित कर रहा है। यह कुंभ राशि में पहुंच चुका है। माह के अंत तक इसकी ऊंचाई मात्र 20 डि"्री रह जाए"ी। दरअसल बृहस्पति संध्याकाश से अलविदा होने की राह पर है। यह महीना है कर्क पर सवार मं"ल का। लाल मं"ल इस समय वक्र "ति में है और दिनोदिन इसकी चमक बढ़ रही है। चक्रधारी शनि 13 से वक्री "ति में आ रहा है। यह कन्या राशि का चमकदार तारा बना हुआ है। शनि देर रात उदय हो"ा और भोर में तारों की झिलमिलाहट खत्म होने से पहले मध्याकाश में पश्चिम की ओर पहुंच जाए"ा। चंद्रमा 18 जनवरी को बृहस्पति के आसपास हो"ा। सप्त"षिमंडल व सिंह राशि के आ"मन से जनवरी का संध्याकाश बड़ा ही हरा?भरा ल"ने ल"ा है। सर्दियों की अंधेरी रातों में कई प्रसिद्ध व भव्य तारामंडलों व उनमें ज"म"ाते चमकदार नश्रत्रों को आप आसानी से पहचान सकते हैं।

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

मह•ेगी गंगा—जमुनी तहजीब

इस साल हिंदू, मुस्लिम व जैन धर्म •े •ई प्रमुख पर्व मनाए जाएंगे साथ—साथ, शुरुआत होली से
वर्ष 2010 गंगा—जमुनी तहजीब से दम• उठेगा। वर्षभर सभी धर्मों •े धर्मावलंबी सांप्रदायि• सौहाद्र्र •ी बयार बहाएंगे। मुस्लिम धर्मावलंबी चांद •े तीसरे महीने रवि—उल—अव्वल •ी बारह तारीख •ो बरावफात मनाएंगे, वहीं अगले दिन हिंदू लोग होली मनाएंगे। दूसरी ओर जैन धर्मावलंबी महावीर जयंती पर भगवान महावीर •ो याद •रेंगे तो इसी दिन सूफी संत हजरत गौस उल आजम शेख अब्दुल •ादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलेह (11वीं शरीफ) •ी जयंती मनाई जाएगी।
सावन में शिवमंदिर भोलेनाथ •े गुणगान से गूंजेंगे, तो इसी माह रमजान शुरू होंगे। इसी माह में जन्माष्टमी और जुमातुलविदा भी है। इस•े बाद ईद उल फितर व गणेश चतुर्थी साथ—साथ हैं। वहीं नवंबर में ईद—उल—अजहा पर देवउठनी ए•ादशी है। इसी माह दीपावली भी है। दिसंबर में योम—ए—आसुरा •े पर्व •े साथ ईसाई पर्व •्रिसमस धूमधाम से मनाया जाएगा।
हिंदू व मुस्लिम त्यौहार 32 से 35 वर्ष में साथ—साथ
ज्योतिष गणना •े अनुसार हिंदू त्यौहार चंद्रवर्ष व सौर वर्ष •े अनुपात •ो बराबर •रते हुए मनाए जाते हैं। पंडित बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता पंडित दामोदर प्रसाद शर्मा •े अनुसार दूसरी ओर मुस्लिम त्यौहार सिर्फ चंद्रवर्ष •े अनुसार ही मनाए जाते हैं। सौर वर्ष 365 दिन •ा होता है, वहीं चंद्रवर्ष 354 दिन •ा होता है। प्रतिवर्ष 11 दिन •े अंतर •े •ारण दोनों •े त्यौहार 32 से 35 साल में साथ—साथ आ जाते हैं। जामा मस्जिद •े सचिव अनवर शाह बताते हैं •ि ए• साथ आने वाले मुस्लिम त्यौहारों में सभी •ो मानवमात्र •े •ल्याण •ा सं•ल्प लेना चाहिए। गलत बातों •ो भूल•र धर्म •ी ओर अग्रसर हों।
ये पर्व साथ—साथ
-———27 फरवरी : बारावफात, 28 फरवरी : होलि•ा दहन।
———28 मार्च : 11वीं शरीफ व महावीर जयंती।
———27 जुलाई : सावन •ा आगाज तो 12 अगस्त : रमजान शुरू, 1 सितंबर : जन्माष्टमी, शहादते हजरत अली, 10 सितंबर : जुमातुलविदा।
———11 सितंबर : ईद—उल—फितर, गणेश चतुर्थी
———17 सितंबर : तेजाजी •ा मेला, सुगंध धूप दशमी
———17 नवंबर : देवउठनी ए•ादशी व ईद—उल—अजहा। इसी माह दीपावली भी मनाई जाएगी।

शनिवार, 9 जनवरी 2010

सोने की चमक में भूले कायदे-कानून

जयपुर। सिक्योरिटी और मनी ट्रांजेक्शन करने वाली जिस एजेंसी से हाल में 51 लाख रुपए का तीन किलो सोना चोरी हुआ, वह कायदों को ताक पर रखकर बिना लाइसेंस के चल रही है। एजेंसी ने प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसीज एक्ट के तहत राजस्थान में कारोबार के लिए जो आवेदन किया था, वह बीते साल सितंबर में निरस्त किया जा चुका है। लेकिन, एजेंसी नियम-विरुद्ध तरीके से अपना कारोबार जारी रखे हुए हैं। सोना चोरी की वारदात के बाद जब पुलिस जांच में यह तथ्य आया तो जयपुर में उसका कारोबार बंद करवाया गया है। नतीजतन, इसी सप्ताह एक और प्राइवेट बैंक का दो सौ किलो सोना जयपुर नहीं पहुंच सका।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, जी 4 एस सिक्योरिटी कंपनी राजस्थान में सिक्योरिटी, फेसेलिटी और कैश ट्रांजेक्शन, तीन तरह का कारोबार कर रही है। दि प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसीज (रेगुलेशन) बिल 2005 के तहत कोई भी सिक्योरिटी एजेंसी सरकार से विधिवत लाइसेंस लिए बिना कारोबार नहीं कर सकती है। लेकिन, जी 4 एस सिक्योरिटी न सिर्फ सिक्योरिटी बल्कि मनी व गोल्ड ट्रांजेक्शन जैसा जोखिम भरा कारोबार कर रही है। इस कंपनी ने राजस्थान में सिक्योरिटी एक्ट के तहत लाइसेंस के लिए आवेदन किया था, लेकिन लाइसेंस के लिए एक्ट के तहत आवश्यक शर्ते पूरी नहीं करने के कारण इस कंपनी के लाइसेंस का मामला सितंबर 09 में अटक गया था। तब सिक्योरिटी कंपनी के लिए लाइसेंस देने के मामले राजस्थान पुलिस अकादमी के डायरेक्टर देख रहे थे। तीन महीने पहले यह काम वहां से आईजी (सिक्योरिटी) को शिफ्ट कर दिया गया।

इसलिए रद्द हुआ था आवेदन : कंपनी के लाइसेंस का आवेदन एक्ट की धारा 6 (2) की शर्त पूरी नहीं करने के कारण रद्द किया गया था। सिक्योरिटी एक्ट के अंतर्गत आवेदन करने वाली कंपनी यदि भारत में रजिस्ट्रर्ड नहीं हो और उसके ज्यादातर शेयर होल्डर, पार्टनर या डायरेक्टर भारतीय नहीं हो तो कंपनी लाइसेंस के योग्य नहीं मानी जाएगी।

यूं मिलता है लाइसेंस1. सिक्योरिटी एजेंसी के लिए गृह विभाग में आवेदन करना होता है। 2. लाइसेंस के लिए सेना, संघ व राज्य के सशस्त्र बलों, पुलिस व होमगार्ड को प्राथमिकता दी जाती है।3. आवेदक निर्धारित प्रारूप में आवेदन पत्र प्रस्तुत करेगा, जिसके साथ शपथ पत्र देना होता है। इसमें अपराधी या दिवालिया ना होने व भारत में पजीकृत होने व अधिकांश शेयर धारक भारत के होने का उल्लेख होगा।4. लाइसेंस मिलने के बाद यह पांच साल की अवधि के लिए मान्य होगा। इसके बाद इसका नवीनीकरण कराना होगा।

नियमों का उल्लंघन करने पर सजा : लाइसेंस लेने के बाद कंपनी अगर एक्ट के नियमों का उल्लंघन करती है तो उसका लाइसेंस एक साल के लिए निलंबित किया जा सकता है या कंपनी पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लग सकता है या दोनों सजा भी दी जा सकती है।

मंगलवार, 5 जनवरी 2010

राजापार्क गुरुद्वारे में झलकेगा भारत की सभी संस्कृतियों का मिलन

बदले स्वरूप में नजर आएगा शहर का मुख्य गुरुद्वारा, गुरुद्वारे के कायाकल्प का प्रस्ताव तैयार
शहर का प्रमुख गुरुद्वारा राजापार्क अब नए स्वरूप में नजर आएगा। इसमें भारत की सर्वधर्म संस्कृति को दर्शाती झलक नजर आएगी। गुरुद्वारे की कायाकल्प के लिए मॉडल तैयार किया चुका है। अब इस पर जल्द ही क्रियान्विति की जाएगी।गुलाबी नगरी के हृदयस्थल पर मौजूद इस गुरुद्वारे का निर्माण राजपूत, मुगल और पंजाबी संस्कृति को दर्शाती शैली में किया जाएगा। शहर में सर्वाधिक करीब अस्सी हजार से भी अधिक सिख संगत वाले इस गुरुद्वारे में विशेष रूप से गुरुद्वारे के मुख्य हॉल का विस्तार किया जाएगा।
बिखरेगी हरियाली : गुरुद्वारे में गुरु:ार के दर्शनों के साथ हरियाली भी बिखेगी। चारों ओर हरियाली बिखेरते पेड़ों के बीचोबीच करीब अस्सी फुट चौड़ा और 120 फुट लंबा मुख्य गुरुद्वारे का हॉल होगा। इसमें गुरुद्वारे में दो साइड से संगत के लिए प्रवेश द्वार होगा। मुख्य रूप से राजस्थानी शैली में संगमरमर के गुंबद बनेंगे, वहीं पालकी साहब में सभी शैलियों का मिश्रित रूप नजर आएगा।दो मंजिल का होगा गुरुद्वारा : यह गुरुद्वारा दो मंजिल का होगा। इसमें नीचे का हॉल लंगर के लिए रहेगा, वहीं ऊपरी मंजिल पर गुरु:ार प्रकाशमान होंगे। इसके साथ ही नीचे श्रद्धालुओं के लिए पार्किंग की विशेष व्यवस्था की
राजस्थान सिख समाज के अध्यक्ष अजयपाल सिंह के अनुसार गुरुद्वारा निर्माण के लिए मॉडल तैयार किया जा चुका है। शहर की सिख संगत को ध्यान में रखते हुए गुरुद्वारा को भारत की सभी शैलियों का स्वरूप दिया जाएगा। राजापार्क गुरुद्वारा कमेटी के उपाध्यक्ष सतवंत सिंह ने बताया कि गुरुद्वारा निर्माण के समय गुरु:ार को पहले से ही निर्मित भवन में प्रकाशमान कर दिया जाएगा। गुरुद्वारा का निर्माण जल्द ही बैठक कर आगे क्रियान्वित किया जाएगा।

शनिवार, 2 जनवरी 2010

जयपुर: बिन पौषबड़ा सब सून

जयपुर में भगवान और भक्त दोनों को ही भाता है पौष बड़े का स्वाद

जयपुर. करीब चालीस वर्ष पहले तक गिने चुने मंदिरों तक सीमित शहर की पुरातन परंपरा पौषबड़ा अब हर किसी की पसंद बन चुकी है। वैष्णव धर्म में प्राचीन काल से ही अपने ईष्टदेव को ऋतु अनुरूप सेवा की परंपरा रही है। सर्दी में अपने—अपने ईष्ट देव या देवी को गरम तासीर के खाद्य पदार्थों का भोग लगता है। जहां पूरे देश में बाजरे का खिचड़ा और मेवे और लड्डुओं का भोग लगता है, वहीं जयपुर में अपने अराध्य को पौषबड़े जिमाये जाते हैं। कुछ साल पहले तक कुछेक मंदिरों में जिमाया जाने वाला पौषबड़ा अब हर मंदिर में शरद ऋतु का दस्तूर बन चुका है। अब तो यह हालत है कि पौषबड़े के दिन पूरा लंगर होता है और हजारों और लाखों की संख्या में भगवान के साथ भक्तों को भी जिमाया जाता है।
पहले और अब
पुरातन काल में : ठाकुरजी को पौष कृष्णपक्ष शुरु होते ही राजभोग में ठाकुरजी की दूध व मेवे से बने खिचड़े से और शयन में तिल व गुड़ से बने व्यंजनों और केसरयुक्त दूध से अगवानी की जाती थी। यह दौर पंद्रह दिन तक जारी रहने के बाद शुक्ल पक्ष शुरू होते ही भगवान को पौषबड़ों का भोग लगना शुरू हो जाता था। बड़ी चौपड़ स्थित लक्ष्मीनारायण बाईजी के महंत पुरुषोत्तम भारती बताते हैं कि करीब चालीस साल पहले तक घाट के बालाजी, आमेर रोड स्थित मनसा माता मंदिर, बड़ी चौपड़ स्थित बाईजी मंदिर और स्टेशन रोड स्थित कौशल्यादास की बगीची में ही पौषबड़ों का भोग लगता था।
वर्तमान में : बदलते समय और बढ़ती महंगाई के दौर में पौषखिचड़े की प्रथा अब लगभग लुप्त हो गई है। पहले जहां पौष खिचड़ा लोकप्रिय था, अब उसका स्थान पौषबड़ों ने ले लिया। जो अब गरीब से लेकर अमीर तक की चाह बन गई है। जयपुर के बदले स्वरूप और मंदिरों की बढ़ती संख्या व कॉलोनियों के विस्तार के साथ ही पौषबड़ों के प्रचलन में बहुत अधिक विस्तार हो गया।
पौषबड़ों में छिपा है स्वस्थ रहने का राज
पौषबड़ा प्रसादी में उपयोग में आने वाली मूंग,उड़द,चौला की दाल के बड़े और अदरक व लाल मिर्ची में स्वस्थता का राज छिपा है। विद्वानों की माने तो मूंग कफ,फोड़े फुंसी और सिरदर्द दूर करने का गुण रखती है। तो उड़द से वायु व गठिया दूर होता है। वहीं अदरक मंदाग्रि दूर कर भूख जागृत करती है और खांसी भी शांत करती है। लाल मिर्च वादी दूर करती है।