बुधवार, 10 मार्च 2010

शील की डूंगरी में शहरी व ग्रामीण परिवेश का संगम

श्रद्धावत भक्तों ने लगाई हाजिरी,शीतला माता के लगा शीतल व्यंजनों का भोग, सोलह दिवसीय गणगौर पूजा के तहत बच्चों ने रचाया दूल्हा दुल्हन का स्वांग, बाग बगीचों रही रौनक
प्रत्येक धर्म और संस्कृति को संजोए धार्मिक नगरी जयपुर के लिए सोमवार का दिन विशेष रहा। शीतलाष्टमी के पावन पर्व पर घर-घर में शीतल व्यंजनों से शीतला माता की आराधना के साथ ही शहर से करीब 35 किलोमीटर दूर चाकसू स्थित शील की डूंगरी में परंपरागत मेला भरा।
शहरी और ग्रामीण परिवेश की फिजां में मानो हरेक समाज घुल-मिल गया हो। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शील की डूंगरी का मेला परवान पर रहा। न कोई अमीर, न कोई गरीब हरेक में मातेश्वरी शीतला माता के दर्शनों की आस्था सर चढ़कर बोल रही थी। हाथों में श्रद्धा के फूल लिए हजारों भक्तों ने करीब तीन सौ मीटर दूरी तक सीढियां चढ़कर माता के दरबार में हाजिरी दी। पूरा वातावरण शीतला माता के जयकारों से गूंज रहा था। अन्य दिनों में वीरान सी नजर आने वाली शील की डूंगरी का आसपास का करीब पांच किलोमीटर का दायरा हर वर्ग के लोगों की खुशियां बटोर रहा था। माता की आस्था के साथ मेले की रौनक अष्टमी के इस पर्व में चार चांद लगा रही थी। दो दिवसीय इस मेले में रविवार देर रात से ही माता के दर्शनों की लंबी कतारे लगना शुरू हो गई थी, जो सोमवार दोपहर तक रही।
धान का दान, मांगी मन्नते : आरोग्य और सुख की कामना से दूर दूर से आए भक्तों ने माता के समक्ष धान का दान किया और मन्नतें मांगी। इनमें गेहूं, जौ व बाजरे का दान किया। वहीं माता को नारियल, चुनरी भेंट की और मालपुए का भोग लगाया।
घूंघट में झांकती संस्कृति : शहरी परिवेश के अलावा यहां संस्कृति का हर रंग नजर आ रहा था। घूंघट से झांकती ट्रेक्टर, ऊंट गाड़ी व घोड़ा गाड़ी में बैठी महिलाएं इस परंपरागत मेले का आनंद उठाती नजर आ रही थीं।
गाडोल्या से रिमोट कार तक : मेले में पुराने समय मे चलने वाली गाडोल्या भी यहां नजर आ रही थीं, तो वहीं रिमोट कार का भी थी। इसके साथ ही मेले में दस मिनट तक चलने वाला मौत के कुए का तमाशा और करीब सत्तर फीट ऊंचे झूलों का आनंद भी कुछ कम नहीं था। हर वर्ग की पसंद का नजारा यहां था।
इतिहास के पन्नों में : प्राचीन किवदंतियों में शील की डूंगरी का यह मंदिर करीब पांच सौ वर्ष पुराना है। पुजारी लक्ष्मण प्रजापति बताते हैं कि इस मंदिर से जुड़ी कई किवदंतियां हैं। लेकिन माता के दरबार में आने वाला कोई भी पीढि़त व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता। उन्होंने बताया कि हालांकि पहले की तुलना में श्रद्धालुओं में कुछ कमी आई है लेकिन इस बार पिछले वर्ष की तुलना में भक्त अधिक हैं। बस्सी के राम खिलाड़ी ने बताया कि वह कई वर्ष से यहां माता के दर्शनो के लिए आ रहे हैं और उनकी पूरी कृपा है। प्रत्येक वर्ष शहर के अलावा आसपास के गांवो के अलावा प्रदेशभर के हजारों भक्त यहां दर्शनों के लिए आते हैं।

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