शनिवार, 2 जनवरी 2010

जयपुर: बिन पौषबड़ा सब सून

जयपुर में भगवान और भक्त दोनों को ही भाता है पौष बड़े का स्वाद

जयपुर. करीब चालीस वर्ष पहले तक गिने चुने मंदिरों तक सीमित शहर की पुरातन परंपरा पौषबड़ा अब हर किसी की पसंद बन चुकी है। वैष्णव धर्म में प्राचीन काल से ही अपने ईष्टदेव को ऋतु अनुरूप सेवा की परंपरा रही है। सर्दी में अपने—अपने ईष्ट देव या देवी को गरम तासीर के खाद्य पदार्थों का भोग लगता है। जहां पूरे देश में बाजरे का खिचड़ा और मेवे और लड्डुओं का भोग लगता है, वहीं जयपुर में अपने अराध्य को पौषबड़े जिमाये जाते हैं। कुछ साल पहले तक कुछेक मंदिरों में जिमाया जाने वाला पौषबड़ा अब हर मंदिर में शरद ऋतु का दस्तूर बन चुका है। अब तो यह हालत है कि पौषबड़े के दिन पूरा लंगर होता है और हजारों और लाखों की संख्या में भगवान के साथ भक्तों को भी जिमाया जाता है।
पहले और अब
पुरातन काल में : ठाकुरजी को पौष कृष्णपक्ष शुरु होते ही राजभोग में ठाकुरजी की दूध व मेवे से बने खिचड़े से और शयन में तिल व गुड़ से बने व्यंजनों और केसरयुक्त दूध से अगवानी की जाती थी। यह दौर पंद्रह दिन तक जारी रहने के बाद शुक्ल पक्ष शुरू होते ही भगवान को पौषबड़ों का भोग लगना शुरू हो जाता था। बड़ी चौपड़ स्थित लक्ष्मीनारायण बाईजी के महंत पुरुषोत्तम भारती बताते हैं कि करीब चालीस साल पहले तक घाट के बालाजी, आमेर रोड स्थित मनसा माता मंदिर, बड़ी चौपड़ स्थित बाईजी मंदिर और स्टेशन रोड स्थित कौशल्यादास की बगीची में ही पौषबड़ों का भोग लगता था।
वर्तमान में : बदलते समय और बढ़ती महंगाई के दौर में पौषखिचड़े की प्रथा अब लगभग लुप्त हो गई है। पहले जहां पौष खिचड़ा लोकप्रिय था, अब उसका स्थान पौषबड़ों ने ले लिया। जो अब गरीब से लेकर अमीर तक की चाह बन गई है। जयपुर के बदले स्वरूप और मंदिरों की बढ़ती संख्या व कॉलोनियों के विस्तार के साथ ही पौषबड़ों के प्रचलन में बहुत अधिक विस्तार हो गया।
पौषबड़ों में छिपा है स्वस्थ रहने का राज
पौषबड़ा प्रसादी में उपयोग में आने वाली मूंग,उड़द,चौला की दाल के बड़े और अदरक व लाल मिर्ची में स्वस्थता का राज छिपा है। विद्वानों की माने तो मूंग कफ,फोड़े फुंसी और सिरदर्द दूर करने का गुण रखती है। तो उड़द से वायु व गठिया दूर होता है। वहीं अदरक मंदाग्रि दूर कर भूख जागृत करती है और खांसी भी शांत करती है। लाल मिर्च वादी दूर करती है।

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