सोमवार, 17 मई 2010

सत्तर साल में चौदह बार बना तेरह दिन का पक्ष


आगामी तीस सालों में दो बार, पचास वर्ष बाद कल से शुरू होगा वैशाख शुक्लपक्ष में तेरह दिन का पक्ष
पचास वर्ष बाद वैशाख के शुक्लपक्ष से शुक्रवार को तेरह दिन का पक्ष शुरू होगा। ज्योतिषविदों की माने तो तेरह दिन के पक्ष का यह विशेष संयोग सत्तर वर्षों में चौदह बार बना, वहीं आगामी तीस वर्षों में यह केवर दो बार ही बनेगा।
यूं तो इस पक्ष में विवाह आदि शुभ कार्य संपन्न नहीं किए जा सकते। मगर इस बार द्वितीय वैशाख के शुक्लपक्ष में प्रतिपदा व चतुर्दशी तिथि क्षय होने के कारण बनने वाले 13 दिन के पक्ष से मांगलिक कार्य शुरू होंगे। पं.बंशीधर जयपुर पं.निर्माता पं.दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार माना जाता है कि 13 दिवसीय पक्ष का संयोग सर्वप्रथम महाभारत काल में बना था। पंचाग निर्माताओं की मानें तो अधिकमास के बाद वैशाख शुक्लपक्ष में तेरह दिन का पक्ष संभवतया अब तक का पहला संयोग है।
सत्तर वर्ष पहले और तीस वर्ष बाद
पं. दामोदरप्रसाद शर्मा व पं.शक्तिमोहन श्रीमाली के अनुसार ज्योतिष आकलन में इससे पहले 1948 में वैशाख शुक्लपक्ष में 13 दिन का पक्ष था, लेकिन तब अधिक मास नहीं था। तेरह दिन का पक्ष ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष 1940, श्रावण शुक्लपक्ष 1945, वैशाख शुक्लपक्ष 1948, आश्विन शुक्लपक्ष 1951, भाद्रपद शुक्लपक्ष 1959, आषाढ़ कृष्णपक्ष 1962, कार्तिक कृष्णपक्ष 1974, श्रावण शुक्लपक्ष 1976, ज्येष्ठ कृष्णपक्ष 1979, द्वितिय आश्विन कृष्ण पक्ष 1982, आश्विन कृष्णपक्ष 1990, आषाढ़ शुक्लपक्ष 1993, कार्तिक शुक्लपक्ष 2005 और श्रावण कृष्णपक्ष 2007 में भी बना था। आगामी तीस वर्षों में यह वर्ष 2010 के बाद भाद्रपद शुक्लपक्ष 2021, आषाढ़ कृष्णपक्ष 2024 में बनेगा।
यूं बना तेरह दिन का पक्ष
ज्योतिषाचार्य दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार तिथि का निर्माण चंद्रमा और सूर्य के अंतर से होता है। चंद्रमा की गति यदि तेज होती है और तिथियों के मान को जल्दी पार करता है तो तिथि का क्षय हो जाता है। पूरे पखवाडे में यदि चंद्रमा की गति 800 घटी- 13 अंश 20 कला या इससे अधिक रहती है तो उस पखवाड़ें में दो तिथियों का क्षय हो जाता है।

इस कारण संपन्न होगे विवाहादि मागलिक कार्य :
ज्योतिषविदों के मुताबिक केंद्र में शुभ ग्रहों की स्थिति वाले लग्र में यह दोष समाप्त हो जाता है। ज्योतिषी चंद्रमोहन दाधीच व पं.पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार इस वर्ष अधिकांश पंचागों में पीयूषधारा के वाक्य को ध्यान में रखते हुए द्वितीय वैशाख शुक्ल में 13 दिन के पक्ष में विवाह आदि मागलिक कार्यों के मुहूर्तों का उगेख किया गया है, पंचाग दर्पण के मतानुसार अत्यंत आवश्यक स्थिति में ही इन्हें स्वीकार करें।

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