बुधवार, 26 मई 2010

तीन सौ शिवालयों में हो रहा है जल संरक्षण


--भक्तों द्वारा चढाया जाने वाला जल बन सकता है भविष्य के लिए वरदान
--शहर में हैं करीब 7000 शिवालय
--सावन में 6 करोड़ लीटर पानी बचाना संभव

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शहर के 300 शिवालय सावन के महीने में भक्तों की ओर से चढ़ाए जाने वाले जल को बचाने में लगे हैं। भूजल पुनर्भरण व्यवस्था के जरिए अकेले सोमवार को लगभग 4 लाख लीटर और पूरे महीने में 1 करोड़ लीटर जल का संरक्षण होने से तेजी से गिर रहे भूजल स्तर को थामने में मदद मिलेगी। अनुमान के मुताबिक इन मंदिरों में सावन के सामान्य दिनों में डेढ़ लाख और सोमवार को 2 लाख शिवभक्त जल चढ़ाते हैं।
पिछले आठ साल से इस काम से जुड़े और 2008 र्में 306 मंदिरों में जल संरक्षण की योजना शुरू करने के लिए राज्य सरकार से सम्मानित हो चुके पंडित पुरुषोत्तम गौड का कहना है कि अगर यह व्यवस्था शहर के सभी सात हजार शिवालयों में अपनाई जाए, तो सावन में करीब छ करोड़ लीटर पानी बचाया जा सकता है। कूकस स्थित सदाशिव ज्योर्तिलिगेश्वर महादेव मंदिर में जल पुनर्भरण ढांचा (वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम) लगा हुआ है। मंदिर समिति के सचिव विष्णु नाटाणी ने बताया कि एक समय में शक्करकुई सूख चुका था, पर अब इसके पानी से हजारों लोगों की प्यास बुझाई जाती है।
संरक्षण का तरीका---------------
अधिकांश शिव मंदिरों में कुएं व चैंबर बनाए गए हैं। हालांकि दुग्धाभिषेक के समय चैंबर को बंद कर दूध निकाल लिया जाता है। कुछ मंदिरों में शिव पंचायत के चैंबर को दो पाइपों से जोड़ा गया है, जिनसे आने वाले पानी व दूध को निकासी के लिए दो अन्य चैंबरों से जोड़ा गया है। इनमें एक चैंबर दूध के लिए और दूसरे को या तो वहां स्थित कुएं से जोड़ा गया है या जल संरक्षण के लिए एक अन्य बड़ा चैंबर बनाया गया है। दोनों चैंबरों में स्टॉपर लगाए गए हैं।
सुझाव------------------------
भूजल वैज्ञानिक व पुनर्भरण विशेषज्ञ विनय भारद्वाज ने बताया कि उपयुक्त तकनीक वाला ढांचा बनाकर कई शिवालयों में पहले से मौजूद कुंओं में भक्तों द्वारा चढ़ाए जाने वाले जल को भरा जा सकता है, जिसका कई कार्यों में उपयोग हो सकता है। महापौर पंकज जोशी का कहना है कि जल संरक्षण की यह योजना प्रत्येक शिव मंदिर में शुरू की जानी चाहिए।
धूलेश्वर मंदिर------------------
पुजारी कैलाश शर्मा ने बताया कि यहां सावन में प्रतिदिन बड़ी संख्या में भक्त आते हैं, पर जल संरक्षण के बारे में अभी तक सोचा नहीं। व्यवस्था हो सकती है, तो हम इसे जरूर अपनाएंगे।
जंगलेश्वर महादेव मंदिर-----------
अर्पित होने वाले दूध व जल यहां स्थित कुएं में जाते हैं। सेवा समिति ट्रस्ट के अध्यक्ष आरडी बाहेती का कहना है कि भक्त दूध और जल एक साथ चढ़ाते हैं, तो उन्हें कैसे रोका जा सकता है?
लक्ष्मीनारायण बाईजी मंदिर---------
मंदिर महंत पुरुषोत्तम भारती ने बताया कि शिवालय में पानी का संरक्षण नहीं हो पाता है क्योंकि यहां ज्यादा भक्त नहीं आते। फिर भी ऐसी कोई व्यवस्था है तो उसे लागू करने में कोई हर्ज नहीं है।
घाट के बालाजी-----------------
महंत सुरेशाचार्य के अनुसार जल पुनर्भरण से काफी पानी को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। यह व्यवस्था सभी मंदिरों में होनी चाहिए। हाईकोर्ट परिसर शिवालय : हाइकोर्ट गेस्ट हाउस के प्रबंधक नरेंद्र सिंह का कहना था कि पानी की समस्या दिन-ब-दिन विकराल रूप लेती जा रही है। इसे सहेजकर रखना भविष्य के लिए अच्छा होगा। शिवालयों में जल संरक्षण अच्छी शुरूआत है।
भक्त भी बोले-------------------
मोतीडूंगरी के आनंदपुरी निवासी किरण सैन के अनुसार शवालयों में चढ़ाए जाने वाले पानी को संरक्षित करने से भूजल स्तर बढ़ाने में मदद मिल सकती है। झोटवाड़ा रोड निवासी राजेश ने बताया कि मंदिरों में जल पुनर्भरण के लिए भक्तों को भी आगे आना होगा। कॉलोनियों के अंदर मौजूद कई मंदिरों में तो काफी पानी यूं ही जाया हो जाता है।

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