सोमवार, 2 अगस्त 2010

अब कलेक्टर की अनुमति से ही होंगे सामूहिक विवाह

महिला बाल विकास विभाग ने बदले नियम, बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए बढ़ाई कलेक्टर की मॉनिटरिंग, संस्थानों की राशि 2 लाख से बढ़ाकर 10 लाख की-----------------------
15 दिन पहले लेनी होगी अनुमति, तीन दिन पहले तय जोड़ों का पूरा ब्यौरा देना होगा कलेक्टर को-------------

बाल विवाह पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अब सामूहिक विवाह समारोह के आयोजन से पहले संबंधित संस्था को कलेक्टर से अनुमति लेनी होगी। इसके लिए सरकार ने नियमों में संशोधन कर दिया है। अनुमति नहीं लेने की स्थिति में संस्था का रजिस्टे्रशन रद्द हो सकता है। इसके साथ ही सरकार ने सामूहिक विवाहों को प्रोत्साहन देने के लिए सामाजिक संस्थाओं को मिलने वाले अनुदान में पांच गुणा बढ़ोतरी कर दी है।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने राजस्थान सामूहिक विवाह अनुदान नियमन व अनुदान नियम- 1996 में हाल ही में संशोधन किया है। इसके तहत सामूहिक विवाह का आयोजन करने वाली संस्था के लिए यह जरूरी होगा कि वह कलेक्टर से 15 दिन पहले सामूहिक विवाह सम्मेलन की अनुमति प्राप्त करे। सम्मेलन में विवाह बंधन में बंधने वाले जोड़ों की संख्या और उनके बारे में पूरी जानकारी 3 दिन पहले तक कलेक्टर के पास पहुंचानी भी अनिवार्य होगी। ताकि कलेक्टर यह सुनिश्चित कर सके कि सम्मेलन में कहीं अव्यस्क जोड़ों की शादी तो नहीं हो रही है।
ऐसे मिलेगी अनुमति- संस्था को आवेदन के निर्धारित प्रपत्र में प्रत्येक जोड़े की आयु का प्रमाणिक विवरण देना होगा। विवाह स्थल की पूर्ण जानकारी पेश करनी होगी। आयोजक संस्था को यह सुनिश्चित करना होगा कि समारोह स्थल पर आकस्मिक परिस्थितियों से निबटने के लिए चिकित्सा, अग्रिशमन व अन्य व्यवस्थाएं कर दी गई है।
पांच गुणा बढ़ा अनुदान

संशोधित नियमों के तहत कम से कम 10 जोड़े और अधिक से अधिक 166 जोड़ों के लिए अनुदान का प्रावधान है। इनमें अनुदान प्रति जोड़ा 6000 रुपए देय होगा। प्रति जोड़ा अनुदानित राशि में 25 प्रतिशत की राशि संस्था को विवाह आयोजन के रूप में देय होगी, जबकि 75 प्रतिशत राशि नव विवाहिता के नाम से डाकघर या अधिसूचित राष्ट्रीयकृत बैंक में न्यूनतम तीन वर्षकी अवधि के लिए सावधि जमा कराई जाएगी।
सूचना नहीं देने पर होगी कार्यवाई
सामूहिक विवाह की सूचना जिला कलेक्टर को नहीं देने पर संबंधित संस्था के खिलाफ नियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। इनमें संस्था को कम से कम एक हजार और अधिक से अधिक पांच हजार रुपए जुर्माना देना होगा। इसके अलावा संस्था का पंजीकरण निरस्त किया जा सकता है या भविष्य में सामूहिक विवाह आयोजित करने के लिए अयोग्य षित किया जा सकता है।
इनका कहना है
सामूहिक विवाह सम्मेलनों में होने वाले फर्जीवाड़े को रोकने और समाज में फैली कुरीतियों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए राजस्थान सामूहिक विवाह अनुदान नियमन व अनुदान नियम 1996 में संसोधन किया गया है। इसका पालन नहीं करने वाली संस्था के खिलाफ उचित कार्रवाई का प्रावधान भी रखा गया है।- एस.के.अग्रवाल, अतिरिक्त निदेशक, महिला अधिकारिता विभाग।

2 टिप्‍पणियां:

  1. सरकार और सरकार में बैठे लोगों के मानसिक दिवालियापन की एक और मिसाल ,सरकार में बैठे भ्रष्ट मंत्री कोई भी सार्थक सामाजिक काम होने ही नहीं देना चाहते ,अरे मैं कहता हूँ कमियों की जड़ तो मंत्रालय और देश के जिलों के समाहारालय में भ्रष्ट मंत्रियों और आधिकारियों के रूप में बैठें हैं जिनको नियंत्रित और ईमानदारी से काम करने के लिए बाध्य करने की जरूरत है सारे फर्जिबारों के जड़ में इन लोगों का शेयर होता है | नियम-कायदे को बेचते हैं ये लोग न की उसका पालन करते हैं | काम करते नहीं कागजी लकीर को पिटते रहते हैं सारा दिन जिसकी वजह से व्यवस्था सड़ चुकी है |

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