आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दौज और नवमी को जयपुर में पुरातन रीति से निकाली जाने वाली भगवान जगन्नाथजी के रथ की सवारी अब न जाने कहां लुप्त हो गई। चारदीवारी में रहने वाली रौनक की अब किताबों में भी कहानी देखने को नहीं मिलती। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी रामगंज स्थित धाबाईजी के खर्रे से भगवान जगन्नाथ की भव्य सवारी निकलती थी। आइए जानते हैं सवारी का इतिहास-------------------------
दो सौ साल पहले से महाराजा पृथ्वीसिंह के समय से जगन्नाथजी के मंदिर से इसी रथ से ख्वासजी का रास्ता से सिरहड्योढी बाजार होकर ख्वासजी का बाग तक जगन्नाथजी की रथयात्रा निकाली जाती थी। महाराजा सवाई माधोसिंह के समय में इस रथ को पुन:निर्मित करवाया गया और धातुओं की नक्कासी की गई थी।
खूबसूरत कलाकृति व नक्काशी युक्त रथ की देवस्थान विभाग की लापरवाही के कारण छतरियां टूट चुकी है और इसमें लगे धातुओं का तो अता-पता ही नहीं है। इसमें सात छतरियां और घोड़ेनुमा आकृति बनी हुई थी। रामगंज के धाबाईजी का खुर्रा स्थित जगन्नाथजी मंदिर से जगन्नाथजी के विग्रह की सवारी को लेकर चलने वाला यह रथ देवस्थान विभाग के कल्कीजी मंदिर के बाहर लावारिस हालत में पड़ा हुआ था, जो बाद में पुजारियों के विद्रोह के बाद कल्कीजी मंदिर के रथखाना (गैराज) में रख दिया गया। जगन्नाथजी मंदिर के पुजारी ज्ञानचंद शर्मा के अनुसार पंद्रह साल पहले गैराज को देवस्थान विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया था।
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