मंगलवार, 8 जून 2010

चौदह साल में एक भी निशक्त आरएएस नहीं -------------------------------

निशक्तजन अधिनियम को लागू हुए भले ही चौदह बर्ष बीत चुके हों, मगर इन सालों में एक भी निशक्त को मुख्य आरएएस कैडर में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है
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अधिनियम के अनुसार प्रत्येक वर्ग में निशक्त को 3 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। लेकिन पिछले चौदह सालों में 129 आरएएस बने थे , लेकिन एक को भी इस का लाभ नहीं मिला। जबकि कम से कम 4 पदों पर निशक्त आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था। हालांकि निशक्तजन न्यायालय की ओर से इस मामले में सुनीता सिंह और डॉ. आकाश अरोड़ा के परिवाद पर कार्मिक विभाग व मुख्यमंत्री को 10 मार्च 2010 में पत्र भेजकर जवाब मांगा। लेकिन फिलहाल कोई जबाव नहीं आया। पत्र में बताया गया कि दोनों ही परिवादियों का आरएएस में चयन के बाद भी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया गया। जबकि इस विषय में राज्य सरकार ने अक्टूबर 2002 में आरक्षण के लिए चिह्नित पदों पर ज्यों की त्यों भर्ती करने का निर्णय किया था। अगस्त 2003 में प्रमुख शासन सचिव राजस्व की अध्यक्षता में कार्मिक विभाग की बैठक में आरक्षण प्रावधान लागू होने का निर्णय लिया गया था।

कब बना कानून
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भारतीय संसद ने निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 पारित किया। प्रदेश में इस कानून को 1996 से लागू माना गया। इस अधिनियम की धारा 33 में निशक्त व्यक्तियों को चिह्नित पदों पर तीन प्रतिशत पद आरक्षित किए जाने का प्रावधान है। यहां तक कि वर्ष 2000 में इस अधिनियम का नियम नियोजन होने के बावजूद भी कार्मिक विभाग ने इसे प्रभावी रूप में नहीं माना।
न्यायालय ने भी माना 1996 से ही लागू आरक्षण
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—सितंबर 2000 में राजस्थान हाइकोर्ट में न्यायमूर्ति राजाराम यादव ने डॉ. विजय कुमार अग्रवाल के प्रकरण में 1996 से ही एक्ट के तहत आरक्षण लागू होने का निर्णय सुनाया।
—जुलाई 2002 में राजस्थान हाइकोर्ट में ही न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने डॉ. मनुजा अग्रवाल के केस में स्पष्ट रूप से कहा कि एक्ट प्रावधान शुरू होने से ही लागू माना जाए।
इनका कहना है
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निशक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन के अनुसार गत चौदह वर्षों में आरएएस के कुल 129 पद निकाले गए। अधिनियम के अनुसार इनमें कम से कम चार निशक्तजनों की भर्ती होनी चाहिए थी। मगर एक भी व्यक्ति को इसका लाभ नहीं दिया गया। अधिनियम बनने के बावजूद भी सरकार और कार्मिक विभाग मौन धारण किए हुए हैं।

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