सोमवार, 14 जून 2010

आखिर गोविंददेवजी का सत्संगभवन भी गिनीज बुक में




शहर के आराध्यदेव गोविंद देवजी की ख्याति तो दुनिया में सर्वमान्य है ही, जो यहां के लिए गौरव का विषय है। अब इसके साथ ही अब एक और उपलब्धि शामिल हो चुकी है। यहां अत्याधुनिक तकनीक से बना बिना खंभों का सबसे लंबा सत्संग भवन गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल हो चुका।
दो साल में बनकर तैयार आधुनिक तकनीक से निर्मित यह भवन 119 फीट लंबा और 124 फीट चौड़ा है। इस भवन की छत को डालने में लगातार 36 घंटे का समय लगा था। पूरे भवन में 8 कॉलम दिए गए। भवन के स्ट्रक्चर इंजीनियर दीपक सौगानी के अनुसार सामान्य से दिखाई देने वाले इस भवन को बनाने के लिए शुरूआत में थोड़ा डर लगा। इसकी छत को बनाने के लिए कंपनी की छह साइटों से काम बंद करना पड़ा। कुल तीन करोड की लागत से तैयार इस भवन की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी छत को पोस्ट टेंसनिंग तकनीक से तैयार किया गया है। इस तकनीक के उपयोग से दस से बीस फीसदी कम लागत आई। वहीं इसकी लाइफ दूसरे भवनों से 2.5 फीसदी अधिक है। भवन में एक साथ पांच हजार व्यक्ति बैठ सकते हैं। मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी के अनुसार गोविंददेवजी का इतिहास तो जग जाहिर है अब यहां के सत्संग भवन का गिनीज बुक में नामित होना भी गर्व की बात है।
ये है पोस्ट टेंसनिंग तकनीक-----------
पोस्ट टेंसनिंगतकनीक में कंक्रीट डालने से पहले नए तरीके की लोहेनुमा तार डालते हैं। पीवीसी कोटिंग से सुरक्षित इस तार में पांच तारों का समूह होता है। इस तार को डालने के बाद इसमें कंक्रीट डाली जाती है। इसके बाद इस तार को पंप से खींचा जाता है। इन तकनीक में तार प्रोटेक्टेड होते हैं। इसके साथ ही इसमें 65 फीसदी कम स्टील का उपयोग होता है। इसके साथ ही यह भूकंपरोधी भी है। यह तकनीक पहले पुल बनाने में काम आती थी।
यूं आया गिनीज बुक में--------------
-15827 वर्ग फीट की छत की लंबाई दस फ्लेट के बराबर है।
-भवन में कुल 2000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा, जिससे सौ आवासीय फ्लैट्स तैयार हो सकते हैं।
-भवन के निर्माण में 290 टन स्टील लगी, इससे साठ फ्लैट्स बन सकते हैं।
-7 जुलाई 2007 में शुरू हुए इस भवन का कार्य 23 जुलाई 2009 को पूरा हुआ।
आराध्यदेव गोविंददेवजी का इतिहास--------
मान्यतानुसार अप्रैल 1669 में जब औरंगजेब ने शाही फरमान जारी कर बृजभूमि के देव मंदिरों को गिराने और उनकी मूर्तियों को तोडऩे का हुक्म दिया तो इसके कुछ आगे पीठे वहां की सभी प्रधान मूर्तियों की सुरक्षा के लिए अन्यंत्र ले जाई गई। महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने बताया कि इस दौरान माध्वीय गौडीय संप्रदाय के गोविंदेवजी, गोपीनाथजी, मदन मोहनजी, राधा दामोदरजी और विनोदीलालजी ये पांच स्वरूप जयपुर लाए गए। इनमें से गोविंददेवजी को एक बैलगाड़ी लेकर भक्त रवाना हुए। ऐसा माना जाता है कि इन्हें पहले कांमा या वृंदावन में छिपाकर रखा गया। इसके बाद आमेर के निकट कनक वृंदावन में पहुंचने पर यह बैल अपने आप ही यही आकर रुक गए। तभी से यहां भी पुराने गोविंददेवजी विराजमान हैं।
पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार उत्तर भारत के सर्वोत्कृष्ण मंदिरों में से एक यह मंदिर सूरजमहल के नाम से जयनिवास में चंद्रमहल और बादल महल के मध्य स्थित है। किवदंती है पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह जब जयपुर शहर को बसा रहे थे तब सूरजमहल की बारादरी में रहने लगे थे। तब उन्हें एक रात मे स्वप्न आया कि यह स्थान तो भगवान का है इसे छोड़ देना चाहिए। अगले ही दिन वह चंद्रमहल में रहने लगे और कनक वृंदावन से गोविंददेवजी को यहां लाकर विराजित किया गया।

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