शुक्रवार, 4 जून 2010

जज्बे ने दिया नई जिंदगी का पैगाम... _____________________________ _____________________________

कुदरत ने ली आंखे, मगर दिल ने दी ताकत, सोलह वर्ष के मोहम्मद शाहिद ने कंठस्थ की कुराने हाफिज
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हौंसले बुलंद हों, इरादा पक्का हो तो इंसान अपनी हर इच्छा को पूरा कर सकता है। ऐसे में एक रास्ते पर कुदरत के हाथों मजबूर इंसान, दूसरा रास्ता अख्तियार कर आखिर बुलंदी हासिल कर लेता है। ऐसा ही एक शख्स है नाहरी का नाका के मुनव्वरा मस्जिद निवासी सोलह वर्षीय शाहिद।
कुदरत ने भले ही उसे आंखे नहीं दी हों, लेकिन उसने अपने इरादों को कभी कमतर नहीं होने दिया। बचपन से गरीबी के आंचल में पले शाहिद ने अपनी काबलियत को पढ़ाई के माध्यम से पूरा किया। हालांकि उसके हमउम्र कुरान पढऩे वाले तो बहुत हैं, लेकिन पूरा कुराने हाफिज पढऩे वाले इक्के-दुक्के ही लोग मिलेंगे। मगर शाहिद इन सभी से अलग है। मन में सौम्यता लिए वह अपने नाम को तो सार्थक करता ही है वहीं कुराने हाफिज को कहीं से भी बिना देखे पढ़ लेता है। मन में मौलवी बनने की तमन्ना लिए शाहिद नाहरी का नाका स्थित मदरसा तालिमुल कुरआन में अरबी अब्बल का कोर्स कर रहा है।
मदरसा के नाजिम अब्दुल वासिद के अनुसार वह छह साल से तालीम हासिल कर रहा है। उसने हाल ही में जामिया तुल हिदाया में आयोजित अजान के कंपटीशन में चौथा स्थान प्राप्त किया है। वहीं मदरसे में पढऩे वाले सभी बच्चों में अव्वल है। मदरसा तालीमुल कुरान के अध्यश्र कामरेड कन्नू भाई ने बताया कि शाहिद के पिता बाबू खां का कोई अता पता ही नहीं है। मां जरीना मजदूरी करके जैसे तैसे घर का खर्च चलाती है। तंजीम-ए-यजदानी के अध्यश्र शौकत अली ने बताया कि ऐसे मेधावी छात्रों की लोगों को आगे बढ़कर सहायता करनी चाहिए।

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