बुधवार, 2 जून 2010
चढ़ावा अपार, खर्चा अपरंपार
गोविंद देव के एक करोड़, गणेशजी के लगता हैं 60 लाख का हर साल भोग----------------------
शहर के देवस्थान अधिकृत मंदिरों में आय से अधिक खर्चा, निजी एवं ट्रस्ट के मंदिरों में चढ़ावा आ रहा है अपार
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आम आदमी भले ही महंगाई से त्रस्त हो ,लेकिन भगवान के प्रति उनकी आस्था कम नहीं हुई और चढ़ावे में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी ही हो रही है। महंगाई ने जहां लोगों के रोजाना के मेन्यू में भले ही कमी कर दी हो, मगर ठाकुरजी के भोग और पोशाक में किसी तरह की कमी नहीं आई है। जयपुर के अराध्यदेव गोविंददेव जी के मंदिर में औसतन रोजाना भोग पर 25 से 27 हजार रुपए खर्च होता है यानी एक करोड़ रुपए सालाना, जबकि देवस्थान के 29 मंदिरों का भोग का रोजाना औसतन खर्चा मात्र 136 रुपए ही है।
जलेब चौक स्थित गोविंददेवजी मंदिर औसतन रोजाना 20 हजार दर्शनार्थी आते हैं ,वहीं यहीं के आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर, बृजनिधिजी मंदिरों में भक्तों की संख्या मामूली है। विभागीय सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार की उदासीनता के कारण देवस्थान के मंदिरों में भक्तों की संख्या कम हुई है। ट्रस्ट के मंदिरों में हालात अच्छे हैं। भगवान की पोशाक हर दिन नई होती है तथा हर झांकी में भगवान की पोशाक, शृंगार व भोग बदलता है।
सालाना एक करोड़ का भोग
देवस्थान के मंदिरों में वर्षभर में औसतन 45 हजार की राशि भोग में खर्च होती है जबकि गोविंददेवजी के भोग में करीब एक करोड़ की राशि खर्च हो जाती है। मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में भोग पर प्रतिवर्ष औसतन साठ लाख रुपए खर्च होते हंैं।
शहर के प्रमुख मंदिर प्रन्यासों की आय-—व्यय
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मंदिर श्रीगोविंददेवजी
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वर्ष आय व्यय
2005 18167847.67 18167847.67
2006 23316664.10 23316664.10
2009 50625836.10 50625836.10
2010-11 64786064 64786064
मोतीडूंगरी गणेश मंदिर
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2004 9336288 9336288
2005 10638157 10638157
2006 11679050 11679050
2007 14504593.26 14504593.26
--------चांदपोल हनुमान मंदिर में 2005 से 2009 तक की आय 8,46,031 है और इतना ही खर्चा है।
--------देवस्थान के मंदिरों का आय व व्यय देखे तो खर्चा अधिक है। इनके मंदिरों में 2004---—05 से 2008—09 तक की आय 1,13,33,004 है वहीं 1,14,11,651 रुपए का खर्चा हैं।
इनका कहना है
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-देवस्थान विभाग में केवल आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों की आय-व्यय का ही ब्यौरा हमारे पास होता है देवस्थान के शेष मंदिरों की आय तो न के बराबर होती है जो किराए से आती है। प्रन्यास के मंदिरों की ऑडिट रिपोर्ट जितनी हमारे पास होती है वह हम उपलब्ध करा देते हैं।
पंकज प्रभाकर, सहायक आयुक्त(प्रथम), देवस्थान विभाग
—हर झांकी में भोग सभी मंदिरों में एक जैसा होता है, वहीं नित्य भोग भी उतना ही रहता है। यह राशि सिर्फ उत्सवों और त्यौहारों में अधिक हो जाती है। —मानस गोस्वामी, प्रवक्ता, गोविंददेवजी मंदिर
—प्रतिवर्ष मंदिर में 14 से 20 प्रतिशत आय बढ़ती है तो खर्च भी उसी हिसाब से बढ़ता है। फिर मंदिर में समय के अनुसार सिक्योरिटी बढ़ी तो अन्य सेवाएं भी बढ़ीं। इनके लिए मंदिर के भोग से ही भोजन की व्यवस्था की जाती है। इस कारण भोग में निरंतर बढ़ोतरी करनी पड़ती है। —महंत कैलाश शर्मा, मोतीडूंगरी मंदिर
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