145 साल पहले ही हो गया था नगर परिषद का गठन
चन्द्रशेखर कौशिक.जयपुर
जयपुर की नगरीय व्यवस्था 145 साल पहले अब से अधिक सुदृढ़ थी। समय समय पर नगरीय व्यवस्था में बदलाव भी हुए। जयपुर शहर बसने के 142 साल बाद 18 अप्रैल 1869 में नगर परिषद का गठन हुआ। रियासत के समय की परिषद काफी मजबूत थी, समस्याओं के समाधान भी।
नगर परिषद के गठन के समय वर्ष 1940 का 2 लाख आबादी का शहर आज 40 लाख का जनसंख्या में तब्दील हो गया। उन दिनों में नगर की व्यवस्था के लिए निगम का बजट जहां 80 हजार हुआ करता था, आज ये बजट 775 करोड़ पहुंच गया। यही नहीं 1946 में परिषद के समय 25 वर्ग मील का क्षेत्र अब बढ़कर नगर निगम में 467 वर्ग किलोमीटर हो गया।
यूं होता गया बदलाव
शुरुआती दौर में स्वास्थ्य विभाग के अधीन सफाई के काम के लिए महाराजा रामसिंह ने जयपुर नगर के सौंदर्य को यथावत बनाए रखने के लिए 1869 में नगर कमेटी की स्थापना करवाई। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स के अनुसंधान अधिकारी रहे विष्णु कुमार गौड़ और नगर परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष रहे श्याम बिहारी सक्सेना के जयपुर नगर परिषद पुस्तक में लेख के मुताबिक सन 1870 में लागू हुए प्रथम स्वायत्त शासन संबंधी कानून के तहत जयपुर नगर कमेटी को सबसे पहले बनाया गया। उन दिनों में परिषद के अध्यक्ष और सचिव की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, जबकि सदस्यों को विशिष्ट नागरिकों द्वारा नामजद किया जाता था।
-परिषद का काम शुरुआत में सफाई ही था। सन 1880 में जयपुर में सवाई माधोसिंह ने नगर कमेटी को और मजबूती प्रदान करते हुए पहली बार सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति भी की। इसके साथ ही सफाई संबंधी ट्राम वे, सार्वजनिक तहारतों, पेशाबघर, और कूड़े के लिए ट्रेचिंग ग्राउंड बनवाए गए।
-परिषद की आय सरकारी खजाने में भेजी जाती थी और सरकार ही इसका सारा खर्च वहन करती थी। लगभग चार दशक तक परिषद अपने सीमित अधिकारों के अन्तर्गत कार्य करती रही। महाराजा सवाई मानसिंह के समय 1922 में परिषद की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। 1928 तक परिषद को म्युनिसिपल कमेटी कहा जाता था, इसके बाद इसे म्यूनिसिपल बोर्ड कहा जाने लगा और पहली बार म्यूनिसिपल नियम एवं उपनियम बनाए गए। इस समय बोर्ड के कुल 26 सदस्य होते थे। ये सभी शहर के गणमान्य नागरिक होते थे इन्हें सरकार नामजद करती थी। तब बोर्ड की वार्षिक आय एक लाख रुपए एवं व्यय लगभग 80 हजार रुपए था।
ये थी परिषद की सीमाएं
परिषद की सीमाएं उस समय रेजीडेंसी, रामबाग पैलेस, मोती डूंगरी, गलता, लाल डूंगरी,काला महादेव, ब्रह्मपुरी, शीतल निवास व नाला अमानीशाह तक थी।
जनता को मिला पालिका प्रतिनिधि चुनने का अधिकार
1938 में जयपुर नगर पालिका का गठन किया गया। इस अधिनियम के अनुसार निर्वाचकों को अपना प्रतिनिधि चुनकर बोर्ड में भेजने का अधिकार मिला। तब सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो गई। इसके बाद 1 जनवरी 1944 को नगर पालिका अधिनियम 1943 के अनुसार यह संस्था नगर परिषद के रूप में क्रमोन्नत हुई। सन 1940 तक जयपुर को 2 लाख की आबादी का शहर माना जाता था, तब सदस्यों की संख्या 34 हुई। इनमें 30 सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा और 4 सदस्यों का निर्वाचन सरकार द्वारा होता था।
पहले निर्वाचित नगर पालिका अध्यक्ष बने देवीशंकर तिवाड़ी
1944 में नगर पालिका अधिनियम बनने के बाद पहले अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी को चुना गया। ये राजस्थान में भी पहला चुनाव था। तिवाड़ी हिंदुस्तान के सबसे पुराने नगर पंचों में से भी एक माने जाते थे।
फंड की समस्या से उबरने को पहली बार लागू हुआ व्हीकल टैक्स
म्यूनिसिपल कौंसिल में जनता को अध्यक्ष चुनने के अधिकार मिलने के साथ ही फंड जुटाने की समस्या खड़ी हो गई। तब पहले निर्वाचित अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी ने इस समय समस्या से उबरने के लिए पहली बार जयपुर शहर में व्हीकल टैक्स लागू किया।
स्थापित हुआ स्वतंत्र कोष
1 नवम्बर 1946 से संस्था का कोष भी स्वतंत्र रूप से स्थापित किया गया। वर्ष 1946-47 में इसकी आय 5 लाख 17 हजार और व्यय 7 लाख 11 हजार आंकी गई। जनसंख्या बढ़ने के साथ परिषद का क्षेत्र तब 25 वर्ग मील हो गया।
ये था क्षेत्र : उत्तर बंध दरवाजे से काला महादेव होकर गैटोर, उत्तर पश्चिम में एक सीधी रेखा व हजारी बुर्ज, उत्तर में अमानीशाह के साथ-साथ झोटवाड़ा, रामबाग तक।
अब ये क्षेत्र : अब 40 लाख आबादी का जयपुर शहर नौ जोन में बंट गया। इनमें मोती डूंगरी जोन, हवामहल (पूर्व), हवामहल (पश्चिम), विद्याधर नगर, सिविल लाइन, सांगानेर, मानसरोवर,आमेर शामिल हैं।
1947 में सदस्यों की संख्या हुई 40 और 7 समितियों का गठन
स्वतंत्रता के पश्चात परिषद की बढ़ी जिम्मेदारियों के अनुसार सदस्यों की संख्या 40 हो गई और 7 समिति-उपसमितियों का गठन किया गया। इनमें वित्त उपसमिति, भवन निर्माण उपसमिति, हाट उपसमिति, सवारी गाड़ी उपसमिति, जनस्वास्थ्य उपसमिति, उपनियम उपसमिति, क्रय उपसमिति।
अब हो गई 17 समितियां, सदस्य संख्या हुई 91
अब समितियों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। इन समितियों में बीपीसी समिति, वित्त समिति, नियम-उपनियम समिति, स्वास्थ्य समिति तो आज भी है। वहीं क्रय समिति, सवारी गाड़ी और हाट समिति अब नहीं है। नई समितियों में अतिक्रमण समिति, विद्युत समिति, उद्यान समिति, गृहकर समिति, कार्यकारिणी समिति, लाइसेंस समिति, सीवरेज समिति, फायर समिति, गैराज समिति, अपराधों का शमन व समझौता समिति, गंदी बस्ती सुधार समिति, पशु नियंत्रण व संरक्षण समिति और सांस्कृतिक समिति शामिल हैं। अब सदस्यों की संख्या बढ़कर 91 में हो गई।
ये थे आय का स्त्रोत
गृहकर, चुंगीकर, भूमि का विक्रय, बाजार व मेले, लाइसेंस शुल्क यथा कसाई खाना, आटा चक्कियां, कली के भट्टे, भवन निर्माण, जुर्माना, व अन्य राजकीय अनुदान।
अब ये आय के स्त्रोत
यूडीटेक्स, होर्डिंग-बैनर, लाइसेंस, बिल्डिंग परमिशन, जमीनों का ऑक्शन, सीवरेज टैक्स, पार्किंग और कैरिंग चार्ज।
सार्वजनिक शौचालय और पेशाबघर : तब भी समस्या, आज भी
सार्वजनिक शौचालय की समस्या को नगर पालिका के समय में 1962 में भी भी महसूस किया गया। सन 1962 में 2 लाख से अधिक की जनसंख्या में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या केवल 62 थी। इस समय में 2000 की जनसंख्या के अनुरूप एक जगह कुल 250 शौचालयों की आवश्यकता थी। नगर में कुल 44 पेशाब घरों में 49 स्थान के अनुपात से 500 पेशाब घरों में 1000 स्थान होने चाहिए थे। जबकि आज 40 लाख की जनसंख्या में शहर में कुल 125 सार्वजनिक शौचालय ही हैं।
20 साल का हुआ निगम, प्रथम महापौर बने थे मोहनलाल गुप्ता
संविधान संशोधन के अनुरूप ही राज्य में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 में आवश्यक प्रावधान तय किये जाकर राज्य की कुछ नगर पालिकाओं में वर्ष 1994 में एवं शेष नगर पालिकाओं में वर्ष 1995 में चुनाव करवायें गये। 29 नवम्बर 1994 को जयपुर नगर निगम के चुनाव सम्पन्न हुये। इस चुनाव में शहर को कुल 70 वार्डों में बांटा गया। शहर के प्रथम महापौर के रूप में मोहन लाल गुप्ता एवं उप महापौर के रूप में घनश्याम शर्मा का चुनाव किया।
ये थी आय-व्यय
1952-53
आय : 8लाख 82 हजार 992 रुपए
व्यय : खर्च 10 लाख 20 हजार 478 रुपए
1961-62
आय : 46 लाख 47 हजार 586 व्यय
व्यय : 50 लाख 66 हजार 402 रुपए
अब ये
वर्ष 2013-2014
आय 77462 .06 लाख
व्यय 69734.05 लाख
चन्द्रशेखर कौशिक.जयपुर
जयपुर की नगरीय व्यवस्था 145 साल पहले अब से अधिक सुदृढ़ थी। समय समय पर नगरीय व्यवस्था में बदलाव भी हुए। जयपुर शहर बसने के 142 साल बाद 18 अप्रैल 1869 में नगर परिषद का गठन हुआ। रियासत के समय की परिषद काफी मजबूत थी, समस्याओं के समाधान भी।
नगर परिषद के गठन के समय वर्ष 1940 का 2 लाख आबादी का शहर आज 40 लाख का जनसंख्या में तब्दील हो गया। उन दिनों में नगर की व्यवस्था के लिए निगम का बजट जहां 80 हजार हुआ करता था, आज ये बजट 775 करोड़ पहुंच गया। यही नहीं 1946 में परिषद के समय 25 वर्ग मील का क्षेत्र अब बढ़कर नगर निगम में 467 वर्ग किलोमीटर हो गया।
यूं होता गया बदलाव
शुरुआती दौर में स्वास्थ्य विभाग के अधीन सफाई के काम के लिए महाराजा रामसिंह ने जयपुर नगर के सौंदर्य को यथावत बनाए रखने के लिए 1869 में नगर कमेटी की स्थापना करवाई। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर्स के अनुसंधान अधिकारी रहे विष्णु कुमार गौड़ और नगर परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष रहे श्याम बिहारी सक्सेना के जयपुर नगर परिषद पुस्तक में लेख के मुताबिक सन 1870 में लागू हुए प्रथम स्वायत्त शासन संबंधी कानून के तहत जयपुर नगर कमेटी को सबसे पहले बनाया गया। उन दिनों में परिषद के अध्यक्ष और सचिव की नियुक्ति सरकार द्वारा की जाती थी, जबकि सदस्यों को विशिष्ट नागरिकों द्वारा नामजद किया जाता था।
-परिषद का काम शुरुआत में सफाई ही था। सन 1880 में जयपुर में सवाई माधोसिंह ने नगर कमेटी को और मजबूती प्रदान करते हुए पहली बार सफाई कर्मचारियों की नियुक्ति भी की। इसके साथ ही सफाई संबंधी ट्राम वे, सार्वजनिक तहारतों, पेशाबघर, और कूड़े के लिए ट्रेचिंग ग्राउंड बनवाए गए।
-परिषद की आय सरकारी खजाने में भेजी जाती थी और सरकार ही इसका सारा खर्च वहन करती थी। लगभग चार दशक तक परिषद अपने सीमित अधिकारों के अन्तर्गत कार्य करती रही। महाराजा सवाई मानसिंह के समय 1922 में परिषद की ओर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। 1928 तक परिषद को म्युनिसिपल कमेटी कहा जाता था, इसके बाद इसे म्यूनिसिपल बोर्ड कहा जाने लगा और पहली बार म्यूनिसिपल नियम एवं उपनियम बनाए गए। इस समय बोर्ड के कुल 26 सदस्य होते थे। ये सभी शहर के गणमान्य नागरिक होते थे इन्हें सरकार नामजद करती थी। तब बोर्ड की वार्षिक आय एक लाख रुपए एवं व्यय लगभग 80 हजार रुपए था।
ये थी परिषद की सीमाएं
परिषद की सीमाएं उस समय रेजीडेंसी, रामबाग पैलेस, मोती डूंगरी, गलता, लाल डूंगरी,काला महादेव, ब्रह्मपुरी, शीतल निवास व नाला अमानीशाह तक थी।
जनता को मिला पालिका प्रतिनिधि चुनने का अधिकार
1938 में जयपुर नगर पालिका का गठन किया गया। इस अधिनियम के अनुसार निर्वाचकों को अपना प्रतिनिधि चुनकर बोर्ड में भेजने का अधिकार मिला। तब सदस्यों की संख्या बढ़कर 30 हो गई। इसके बाद 1 जनवरी 1944 को नगर पालिका अधिनियम 1943 के अनुसार यह संस्था नगर परिषद के रूप में क्रमोन्नत हुई। सन 1940 तक जयपुर को 2 लाख की आबादी का शहर माना जाता था, तब सदस्यों की संख्या 34 हुई। इनमें 30 सदस्यों का निर्वाचन जनता द्वारा और 4 सदस्यों का निर्वाचन सरकार द्वारा होता था।
पहले निर्वाचित नगर पालिका अध्यक्ष बने देवीशंकर तिवाड़ी
1944 में नगर पालिका अधिनियम बनने के बाद पहले अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी को चुना गया। ये राजस्थान में भी पहला चुनाव था। तिवाड़ी हिंदुस्तान के सबसे पुराने नगर पंचों में से भी एक माने जाते थे।
फंड की समस्या से उबरने को पहली बार लागू हुआ व्हीकल टैक्स
म्यूनिसिपल कौंसिल में जनता को अध्यक्ष चुनने के अधिकार मिलने के साथ ही फंड जुटाने की समस्या खड़ी हो गई। तब पहले निर्वाचित अध्यक्ष देवीशंकर तिवाड़ी ने इस समय समस्या से उबरने के लिए पहली बार जयपुर शहर में व्हीकल टैक्स लागू किया।
स्थापित हुआ स्वतंत्र कोष
1 नवम्बर 1946 से संस्था का कोष भी स्वतंत्र रूप से स्थापित किया गया। वर्ष 1946-47 में इसकी आय 5 लाख 17 हजार और व्यय 7 लाख 11 हजार आंकी गई। जनसंख्या बढ़ने के साथ परिषद का क्षेत्र तब 25 वर्ग मील हो गया।
ये था क्षेत्र : उत्तर बंध दरवाजे से काला महादेव होकर गैटोर, उत्तर पश्चिम में एक सीधी रेखा व हजारी बुर्ज, उत्तर में अमानीशाह के साथ-साथ झोटवाड़ा, रामबाग तक।
अब ये क्षेत्र : अब 40 लाख आबादी का जयपुर शहर नौ जोन में बंट गया। इनमें मोती डूंगरी जोन, हवामहल (पूर्व), हवामहल (पश्चिम), विद्याधर नगर, सिविल लाइन, सांगानेर, मानसरोवर,आमेर शामिल हैं।
1947 में सदस्यों की संख्या हुई 40 और 7 समितियों का गठन
स्वतंत्रता के पश्चात परिषद की बढ़ी जिम्मेदारियों के अनुसार सदस्यों की संख्या 40 हो गई और 7 समिति-उपसमितियों का गठन किया गया। इनमें वित्त उपसमिति, भवन निर्माण उपसमिति, हाट उपसमिति, सवारी गाड़ी उपसमिति, जनस्वास्थ्य उपसमिति, उपनियम उपसमिति, क्रय उपसमिति।
अब हो गई 17 समितियां, सदस्य संख्या हुई 91
अब समितियों की संख्या बढ़कर 17 हो गई। इन समितियों में बीपीसी समिति, वित्त समिति, नियम-उपनियम समिति, स्वास्थ्य समिति तो आज भी है। वहीं क्रय समिति, सवारी गाड़ी और हाट समिति अब नहीं है। नई समितियों में अतिक्रमण समिति, विद्युत समिति, उद्यान समिति, गृहकर समिति, कार्यकारिणी समिति, लाइसेंस समिति, सीवरेज समिति, फायर समिति, गैराज समिति, अपराधों का शमन व समझौता समिति, गंदी बस्ती सुधार समिति, पशु नियंत्रण व संरक्षण समिति और सांस्कृतिक समिति शामिल हैं। अब सदस्यों की संख्या बढ़कर 91 में हो गई।
ये थे आय का स्त्रोत
गृहकर, चुंगीकर, भूमि का विक्रय, बाजार व मेले, लाइसेंस शुल्क यथा कसाई खाना, आटा चक्कियां, कली के भट्टे, भवन निर्माण, जुर्माना, व अन्य राजकीय अनुदान।
अब ये आय के स्त्रोत
यूडीटेक्स, होर्डिंग-बैनर, लाइसेंस, बिल्डिंग परमिशन, जमीनों का ऑक्शन, सीवरेज टैक्स, पार्किंग और कैरिंग चार्ज।
सार्वजनिक शौचालय और पेशाबघर : तब भी समस्या, आज भी
सार्वजनिक शौचालय की समस्या को नगर पालिका के समय में 1962 में भी भी महसूस किया गया। सन 1962 में 2 लाख से अधिक की जनसंख्या में सार्वजनिक शौचालयों की संख्या केवल 62 थी। इस समय में 2000 की जनसंख्या के अनुरूप एक जगह कुल 250 शौचालयों की आवश्यकता थी। नगर में कुल 44 पेशाब घरों में 49 स्थान के अनुपात से 500 पेशाब घरों में 1000 स्थान होने चाहिए थे। जबकि आज 40 लाख की जनसंख्या में शहर में कुल 125 सार्वजनिक शौचालय ही हैं।
20 साल का हुआ निगम, प्रथम महापौर बने थे मोहनलाल गुप्ता
संविधान संशोधन के अनुरूप ही राज्य में राजस्थान नगरपालिका अधिनियम 1959 में आवश्यक प्रावधान तय किये जाकर राज्य की कुछ नगर पालिकाओं में वर्ष 1994 में एवं शेष नगर पालिकाओं में वर्ष 1995 में चुनाव करवायें गये। 29 नवम्बर 1994 को जयपुर नगर निगम के चुनाव सम्पन्न हुये। इस चुनाव में शहर को कुल 70 वार्डों में बांटा गया। शहर के प्रथम महापौर के रूप में मोहन लाल गुप्ता एवं उप महापौर के रूप में घनश्याम शर्मा का चुनाव किया।
ये थी आय-व्यय
1952-53
आय : 8लाख 82 हजार 992 रुपए
व्यय : खर्च 10 लाख 20 हजार 478 रुपए
1961-62
आय : 46 लाख 47 हजार 586 व्यय
व्यय : 50 लाख 66 हजार 402 रुपए
अब ये
वर्ष 2013-2014
आय 77462 .06 लाख
व्यय 69734.05 लाख
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