शुक्रवार, 18 जून 2010
पुरा स्मारकों की सुरक्षा करेंगे एना डिटेक्टर
अब पुरा स्मारकों की सुरक्षा एना डिटेक्टर करेंगे। पुरातत्व विभाग ने हाल ही शहर के 5 स्मारकों पर ये डिटेक्टर लगाए हैं।
स्मारकों पर लगे न्यूक्लियर रेडिएशन डिटेक्टर पृथ्वी से निकलने वाली नाभिकीय विकिरणों का आकलन करेंगे, ताकि ये स्मारक सुरक्षित रह सकें। अभी ये डिटेक्टर अलबर्ट हॉल, नाहरगढ़ किला, जंतर-मंतर, हवामहल और आमेर में लगाए गए हैं। विशेष रूप से यूएसए से मंगाई गई पेनिक्यूबल फिल्म रेडिएशन की रेंज बताने में सहायता करेगी।
यूं करेगा काम
इस डिटेक्टर पर रिसर्च कर रहीं निम्स यूनिवर्सिटी में फिजिक्स की विभागाध्यक्ष ज्योति शर्मा ने बताया कि पत्थरों से लगातार रेडिएशन निकलते रहते हैं। इनसे इनके मॉलीक्यूल (अणु) कमजोर पडऩे लगते हैं। इस कारण अणुओं की बॉन्डिंग भी कमजोर पड़ जाती है और दीवारों में दरारें पडऩे लगती हैं। यह डिटेक्टर इनका बचाव करेगा। इसमें लगी पेनिक्यूलेबल फिल्म रेडिएशन का पता लगाएगी। तीन माह बाद इस फिल्म को न्यूक्लियर साइंस सेंटर दिल्ली भेजा जाएगा, जहां विकिरणों का आकलन किया जाएगा और उनकी रेंज का पता चलाया जा सकेगा। फिर इसकी रेंज के अनुसार इन विकिरणों से इमारतों की सुरक्षा के लिए न्यूक्लियर रेडिएशन डिवाइस लगाई जाएगी। शोध के लिए अभी एना डिटेक्टर पुरातत्व विभाग की सहायता से पुरावशेषों पर लगाए गए हैं।
इनका कहना है
हवामहल अधीक्षक पंकज धरेंद्र का कहना है कि इमारतों की सुरक्षा के लिए एना डिटेक्टर एक अच्छी कड़ी साबित हो सकती है। इसलिए अभी यह पुरा स्मारकों में 9 स्थानों पर लगाए गए हैं। यदि यह कार्य करने में सफल रहता है, तो इन्हें अन्य स्थानों पर भी लगाया जाएगा।
सोमवार, 14 जून 2010
भारत की शान, महाराणा प्रताप की आन.....
.........याद करें और नमन करें
भारत की शान, महाराणा प्रताप की आन।
कभी अमरसिंह राठौड, तो कभी अशोक महान।
ये थे हमारे देश के वीर जवान।
विवेकानंद ने जगाई थी अलख अमेरिका में भारत के सम्मान की।
अब तुम भी जग जाओ और समझ लो इस बगिया की बानगी।
रोक लो इस समाज सेवा की राजनीति के झूठे आडंबर को।
अब रखनी होगी नीव हमें इस जर्जर होते सम्मान की।
महापुरुषों का योगदान तो शायद हम कभी भुला सकें। आज उनकी ही देन है जो हम स्वतंत्र भारत में शान से जीवन बसर कर रहे हैं। मगर शायद उनको याद करना अब एक परंपरा सी ही रह गई है। केवल महाराणा प्रताप जयंती ही नहीं प्रत्येक महापुरुष की जयंती को सर्वप्रथम तो एक जाति विशेष से जोड़ दिया गया है। वहीं कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी हैं जिन्होंने इसे प्रचार और स्वयं के नाम की परंपरा बना दिया है। आज के नौनिहालों से यदि महाराणा प्रताप की जीवनी के बारे में पूछा जाए तो क्या वह उनका थोड़ा सा भी परिचय दे पाएंगे? मुझे आज भी याद है जब मैं आठ-दस साल का था तब पिताजी से कहानी सुनाने की जिद किया करता था, और वह महाराणा प्रताप और स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों का कहानियों में जिक्र किया करते थे, तो अक्सर उनके जैसे बनने की इच्छा जाग जाती थी। मगर क्या अब कहानियों में महापुरुष शामिल होते हैं? नहीं।
अब तो आमजीवन में स्पाइडर मैन और सुपर मैन की कहानियां ही शामिल होती हैं। महापुरुषों की जयंती मनाने वाले लोगों से ही पूछा जाए तो उन्हें भी अपने संगठन व दल को सुदृढृ करने से फुरसत मिले तो वह बच्चों को इन महापुरुषों की कहानियां सुनाएं?
आखिर गोविंददेवजी का सत्संगभवन भी गिनीज बुक में
शहर के आराध्यदेव गोविंद देवजी की ख्याति तो दुनिया में सर्वमान्य है ही, जो यहां के लिए गौरव का विषय है। अब इसके साथ ही अब एक और उपलब्धि शामिल हो चुकी है। यहां अत्याधुनिक तकनीक से बना बिना खंभों का सबसे लंबा सत्संग भवन गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल हो चुका।
दो साल में बनकर तैयार आधुनिक तकनीक से निर्मित यह भवन 119 फीट लंबा और 124 फीट चौड़ा है। इस भवन की छत को डालने में लगातार 36 घंटे का समय लगा था। पूरे भवन में 8 कॉलम दिए गए। भवन के स्ट्रक्चर इंजीनियर दीपक सौगानी के अनुसार सामान्य से दिखाई देने वाले इस भवन को बनाने के लिए शुरूआत में थोड़ा डर लगा। इसकी छत को बनाने के लिए कंपनी की छह साइटों से काम बंद करना पड़ा। कुल तीन करोड की लागत से तैयार इस भवन की प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी छत को पोस्ट टेंसनिंग तकनीक से तैयार किया गया है। इस तकनीक के उपयोग से दस से बीस फीसदी कम लागत आई। वहीं इसकी लाइफ दूसरे भवनों से 2.5 फीसदी अधिक है। भवन में एक साथ पांच हजार व्यक्ति बैठ सकते हैं। मंदिर प्रवक्ता मानस गोस्वामी के अनुसार गोविंददेवजी का इतिहास तो जग जाहिर है अब यहां के सत्संग भवन का गिनीज बुक में नामित होना भी गर्व की बात है।
ये है पोस्ट टेंसनिंग तकनीक-----------
पोस्ट टेंसनिंगतकनीक में कंक्रीट डालने से पहले नए तरीके की लोहेनुमा तार डालते हैं। पीवीसी कोटिंग से सुरक्षित इस तार में पांच तारों का समूह होता है। इस तार को डालने के बाद इसमें कंक्रीट डाली जाती है। इसके बाद इस तार को पंप से खींचा जाता है। इन तकनीक में तार प्रोटेक्टेड होते हैं। इसके साथ ही इसमें 65 फीसदी कम स्टील का उपयोग होता है। इसके साथ ही यह भूकंपरोधी भी है। यह तकनीक पहले पुल बनाने में काम आती थी।
यूं आया गिनीज बुक में--------------
-15827 वर्ग फीट की छत की लंबाई दस फ्लेट के बराबर है।
-भवन में कुल 2000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा, जिससे सौ आवासीय फ्लैट्स तैयार हो सकते हैं।
-भवन के निर्माण में 290 टन स्टील लगी, इससे साठ फ्लैट्स बन सकते हैं।
-7 जुलाई 2007 में शुरू हुए इस भवन का कार्य 23 जुलाई 2009 को पूरा हुआ।
आराध्यदेव गोविंददेवजी का इतिहास--------
मान्यतानुसार अप्रैल 1669 में जब औरंगजेब ने शाही फरमान जारी कर बृजभूमि के देव मंदिरों को गिराने और उनकी मूर्तियों को तोडऩे का हुक्म दिया तो इसके कुछ आगे पीठे वहां की सभी प्रधान मूर्तियों की सुरक्षा के लिए अन्यंत्र ले जाई गई। महंत अंजन कुमार गोस्वामी ने बताया कि इस दौरान माध्वीय गौडीय संप्रदाय के गोविंदेवजी, गोपीनाथजी, मदन मोहनजी, राधा दामोदरजी और विनोदीलालजी ये पांच स्वरूप जयपुर लाए गए। इनमें से गोविंददेवजी को एक बैलगाड़ी लेकर भक्त रवाना हुए। ऐसा माना जाता है कि इन्हें पहले कांमा या वृंदावन में छिपाकर रखा गया। इसके बाद आमेर के निकट कनक वृंदावन में पहुंचने पर यह बैल अपने आप ही यही आकर रुक गए। तभी से यहां भी पुराने गोविंददेवजी विराजमान हैं।
पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार उत्तर भारत के सर्वोत्कृष्ण मंदिरों में से एक यह मंदिर सूरजमहल के नाम से जयनिवास में चंद्रमहल और बादल महल के मध्य स्थित है। किवदंती है पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह जब जयपुर शहर को बसा रहे थे तब सूरजमहल की बारादरी में रहने लगे थे। तब उन्हें एक रात मे स्वप्न आया कि यह स्थान तो भगवान का है इसे छोड़ देना चाहिए। अगले ही दिन वह चंद्रमहल में रहने लगे और कनक वृंदावन से गोविंददेवजी को यहां लाकर विराजित किया गया।
बुधवार, 9 जून 2010
शुक्र ने बदली चाल, मिथुन राशि को छोड़ कर्क में प्रवेश
गुरु की कर्क राशि पर पूर्ण दृष्टि से प्रदेश में शीघ्र ही बनेंगे मानसून के संकेत
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आकाश के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र ग्रह ने बुधवार को मिथुन राशि को छोड़कर कर्क राशि में प्रवेश किया। शुक्र का राशि परिवर्तन मानसून में गति लाएगा। वहीं प्रदेश में शीघ्र ही मानसून के संकेत मिलेंगे।
ज्योतिषीय गणना के तहत वर्तमान में कर्क राशि पर चल रही गुरु की पांचवीं दृष्टि से संपूर्ण राजस्थान में बारिश होने के आसार पनपेंगे। पं.बंशीधर जयपुर पंचांग निर्माता दामोदर प्रसाद शर्मा के अनुसार शुक्र ग्रह कर्क राशि में 4 जुलाई तक रहेगा। कर्क राशि में बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि होने से यह वर्षा का कारक बनेगा। इसके बाद सिंह राशि का शुक्र होने पर वर्षा में कमी आएगी व वायु प्रकोप बढ़ेगा।
रोहिणी का कम तपना कम बारिश का द्योतक
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इस वर्ष रोहिणी तपी जरूर है, मगर बीच-बीच में बारिश व धूल आंधी आने से रोहिणी जितनी तपनी चाहिए, उतनी नहीं तप पाई। राजस्थान ज्योतिष परिषद के महासचिव डॉ. विनोद शास्त्री के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि अगर रोहिणी अच्छी तपे तो बारिश खूब होती है, चारों ओर हरियाली छा जाती है और अगर रोहिणी कम तपे तो बारिश कम आने के आसार पैदा हो जाते हैं। इस बार बीच में आंधी व बादल होने से आशा से कम बारिश हो सकती है। इस वर्ष संवतसर का राजा मंगल है, अगर किसी वर्ष का राजा मंगल होता है तो वर्षा की कमी के संकेत मिलते हैं। मंगल के कारण बारिश अपेक्षा से कम होती है। इसके अलावा अग्निकांड की घटनाएं बढ़ जाती हैं। पिछले दिनों अग्निकांड तथा तेज गर्मी पडऩे की घटनाएं भी इसी कारण हुई थीं। मेघेष (वर्षा का मालिक) भी मंगल है। मंगल अग्नि का कारक है तो वर्षा की कमी को दर्शाता है।
मंगलवार, 8 जून 2010
चौदह साल में एक भी निशक्त आरएएस नहीं -------------------------------
निशक्तजन अधिनियम को लागू हुए भले ही चौदह बर्ष बीत चुके हों, मगर इन सालों में एक भी निशक्त को मुख्य आरएएस कैडर में आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है
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अधिनियम के अनुसार प्रत्येक वर्ग में निशक्त को 3 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। लेकिन पिछले चौदह सालों में 129 आरएएस बने थे , लेकिन एक को भी इस का लाभ नहीं मिला। जबकि कम से कम 4 पदों पर निशक्त आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था। हालांकि निशक्तजन न्यायालय की ओर से इस मामले में सुनीता सिंह और डॉ. आकाश अरोड़ा के परिवाद पर कार्मिक विभाग व मुख्यमंत्री को 10 मार्च 2010 में पत्र भेजकर जवाब मांगा। लेकिन फिलहाल कोई जबाव नहीं आया। पत्र में बताया गया कि दोनों ही परिवादियों का आरएएस में चयन के बाद भी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया गया। जबकि इस विषय में राज्य सरकार ने अक्टूबर 2002 में आरक्षण के लिए चिह्नित पदों पर ज्यों की त्यों भर्ती करने का निर्णय किया था। अगस्त 2003 में प्रमुख शासन सचिव राजस्व की अध्यक्षता में कार्मिक विभाग की बैठक में आरक्षण प्रावधान लागू होने का निर्णय लिया गया था।
कब बना कानून
-------
भारतीय संसद ने निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 पारित किया। प्रदेश में इस कानून को 1996 से लागू माना गया। इस अधिनियम की धारा 33 में निशक्त व्यक्तियों को चिह्नित पदों पर तीन प्रतिशत पद आरक्षित किए जाने का प्रावधान है। यहां तक कि वर्ष 2000 में इस अधिनियम का नियम नियोजन होने के बावजूद भी कार्मिक विभाग ने इसे प्रभावी रूप में नहीं माना।
न्यायालय ने भी माना 1996 से ही लागू आरक्षण
-------
—सितंबर 2000 में राजस्थान हाइकोर्ट में न्यायमूर्ति राजाराम यादव ने डॉ. विजय कुमार अग्रवाल के प्रकरण में 1996 से ही एक्ट के तहत आरक्षण लागू होने का निर्णय सुनाया।
—जुलाई 2002 में राजस्थान हाइकोर्ट में ही न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने डॉ. मनुजा अग्रवाल के केस में स्पष्ट रूप से कहा कि एक्ट प्रावधान शुरू होने से ही लागू माना जाए।
इनका कहना है
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निशक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन के अनुसार गत चौदह वर्षों में आरएएस के कुल 129 पद निकाले गए। अधिनियम के अनुसार इनमें कम से कम चार निशक्तजनों की भर्ती होनी चाहिए थी। मगर एक भी व्यक्ति को इसका लाभ नहीं दिया गया। अधिनियम बनने के बावजूद भी सरकार और कार्मिक विभाग मौन धारण किए हुए हैं।
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अधिनियम के अनुसार प्रत्येक वर्ग में निशक्त को 3 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए। लेकिन पिछले चौदह सालों में 129 आरएएस बने थे , लेकिन एक को भी इस का लाभ नहीं मिला। जबकि कम से कम 4 पदों पर निशक्त आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए था। हालांकि निशक्तजन न्यायालय की ओर से इस मामले में सुनीता सिंह और डॉ. आकाश अरोड़ा के परिवाद पर कार्मिक विभाग व मुख्यमंत्री को 10 मार्च 2010 में पत्र भेजकर जवाब मांगा। लेकिन फिलहाल कोई जबाव नहीं आया। पत्र में बताया गया कि दोनों ही परिवादियों का आरएएस में चयन के बाद भी आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया गया। जबकि इस विषय में राज्य सरकार ने अक्टूबर 2002 में आरक्षण के लिए चिह्नित पदों पर ज्यों की त्यों भर्ती करने का निर्णय किया था। अगस्त 2003 में प्रमुख शासन सचिव राजस्व की अध्यक्षता में कार्मिक विभाग की बैठक में आरक्षण प्रावधान लागू होने का निर्णय लिया गया था।
कब बना कानून
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भारतीय संसद ने निशक्त व्यक्ति अधिनियम 1995 पारित किया। प्रदेश में इस कानून को 1996 से लागू माना गया। इस अधिनियम की धारा 33 में निशक्त व्यक्तियों को चिह्नित पदों पर तीन प्रतिशत पद आरक्षित किए जाने का प्रावधान है। यहां तक कि वर्ष 2000 में इस अधिनियम का नियम नियोजन होने के बावजूद भी कार्मिक विभाग ने इसे प्रभावी रूप में नहीं माना।
न्यायालय ने भी माना 1996 से ही लागू आरक्षण
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—सितंबर 2000 में राजस्थान हाइकोर्ट में न्यायमूर्ति राजाराम यादव ने डॉ. विजय कुमार अग्रवाल के प्रकरण में 1996 से ही एक्ट के तहत आरक्षण लागू होने का निर्णय सुनाया।
—जुलाई 2002 में राजस्थान हाइकोर्ट में ही न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा ने डॉ. मनुजा अग्रवाल के केस में स्पष्ट रूप से कहा कि एक्ट प्रावधान शुरू होने से ही लागू माना जाए।
इनका कहना है
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निशक्तजन आयुक्त खिल्लीमल जैन के अनुसार गत चौदह वर्षों में आरएएस के कुल 129 पद निकाले गए। अधिनियम के अनुसार इनमें कम से कम चार निशक्तजनों की भर्ती होनी चाहिए थी। मगर एक भी व्यक्ति को इसका लाभ नहीं दिया गया। अधिनियम बनने के बावजूद भी सरकार और कार्मिक विभाग मौन धारण किए हुए हैं।
शनिवार, 5 जून 2010
पुलिस सहायता केंद्र को मदद की दरकार
चार साल से बंद पड़ा है मूक-बधिरों की सहायता के लिए यादगार में स्थापित केंद्र
___________थानों में दर्ज मूक-बधिरों की शिकायतों पर बिना भेदभाव त्वरित कार्रवाई के लिए यादगार में स्थापित सहायता केंद्र चार साल से बंद पड़ा है। केंद्र के संचालन का जिम्मा एक स्वयंसेवी संस्था को सौंपा गया था, लेकिन पुलिस और प्रशासन से सहयोग नहीं मिलने के कारण संस्था मात्र दो साल तक ही काम कर पाई।
2004 में अजमेरी गेट के यादगार परिसर में मूक-बधिर सहायता केंद्र खोला गया था। पुलिस प्रशासन के सहयोग से केंद्र के संचालन का जिम्मा स्वयंसेवी संस्था नूपुर को सौंपा गया था।
केंद्र का उद्देश्य________
केंद्र की स्थापना शहर के किसी भी थाने में दर्ज मूक-बधिरों के मामलों को बिना भेदभाव हल कर दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने के उद्देश्य से की गई थी। लेकिन पुलिस और सरकार के सहयोग के अभाव में स्वयंसेवी संस्था दो वर्ष में मात्र 45 मामलों का निस्तारण ही कर पाई। इसके बाद से केंद्र बंद पड़ा है। सूत्रों के मुताबिक पूर्व आईजी ओपी गल्होत्रा के समय केंद्र के लिए विशेष टीम गठित करने का प्रस्ताव भी आया था, लेकिन मामला कागजी कार्रवाई से आगे नहीं बढ़ पाया।
इनका कहना है_______
--केंद्र का मुख्य काम पुलिस और मूक-बधिरों के मध्य समन्वय स्थापित करना था, लेकिन काउंसलिंग व्यवस्था के साथ आर्थिक परेशानी भी आ रही थी। हालांकि पुलिस प्रशासन के समक्ष पुलिस वेलफेयर फंड व समाज कल्याण मंत्रालय से सहायता मुहैया कराने का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। पुलिस की ओर से सहायता नहीं मिलने के कारण मजबूरन केंद्र बंद करना पड़ा।_मनोज भारद्वाज, अध्यक्ष, नूपुर संस्था
--मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, अभी जांच कराते हैं, यदि ऐसा है तो शीघ्र कार्रवाई की जाएगी। — बी.एल.सोनी, आईजी
--वर्ष 2004 में यादगार में पुलिस बधिर सहायता केंद्र स्थापित किया गया था, लेकिन अभी उसका क्या स्टेटस है, उसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है- मालिनी अग्रवाल, डीआईजी, जेडीए।
शुक्रवार, 4 जून 2010
जज्बे ने दिया नई जिंदगी का पैगाम... _____________________________ _____________________________
कुदरत ने ली आंखे, मगर दिल ने दी ताकत, सोलह वर्ष के मोहम्मद शाहिद ने कंठस्थ की कुराने हाफिज
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हौंसले बुलंद हों, इरादा पक्का हो तो इंसान अपनी हर इच्छा को पूरा कर सकता है। ऐसे में एक रास्ते पर कुदरत के हाथों मजबूर इंसान, दूसरा रास्ता अख्तियार कर आखिर बुलंदी हासिल कर लेता है। ऐसा ही एक शख्स है नाहरी का नाका के मुनव्वरा मस्जिद निवासी सोलह वर्षीय शाहिद।
कुदरत ने भले ही उसे आंखे नहीं दी हों, लेकिन उसने अपने इरादों को कभी कमतर नहीं होने दिया। बचपन से गरीबी के आंचल में पले शाहिद ने अपनी काबलियत को पढ़ाई के माध्यम से पूरा किया। हालांकि उसके हमउम्र कुरान पढऩे वाले तो बहुत हैं, लेकिन पूरा कुराने हाफिज पढऩे वाले इक्के-दुक्के ही लोग मिलेंगे। मगर शाहिद इन सभी से अलग है। मन में सौम्यता लिए वह अपने नाम को तो सार्थक करता ही है वहीं कुराने हाफिज को कहीं से भी बिना देखे पढ़ लेता है। मन में मौलवी बनने की तमन्ना लिए शाहिद नाहरी का नाका स्थित मदरसा तालिमुल कुरआन में अरबी अब्बल का कोर्स कर रहा है।
मदरसा के नाजिम अब्दुल वासिद के अनुसार वह छह साल से तालीम हासिल कर रहा है। उसने हाल ही में जामिया तुल हिदाया में आयोजित अजान के कंपटीशन में चौथा स्थान प्राप्त किया है। वहीं मदरसे में पढऩे वाले सभी बच्चों में अव्वल है। मदरसा तालीमुल कुरान के अध्यश्र कामरेड कन्नू भाई ने बताया कि शाहिद के पिता बाबू खां का कोई अता पता ही नहीं है। मां जरीना मजदूरी करके जैसे तैसे घर का खर्च चलाती है। तंजीम-ए-यजदानी के अध्यश्र शौकत अली ने बताया कि ऐसे मेधावी छात्रों की लोगों को आगे बढ़कर सहायता करनी चाहिए।
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हौंसले बुलंद हों, इरादा पक्का हो तो इंसान अपनी हर इच्छा को पूरा कर सकता है। ऐसे में एक रास्ते पर कुदरत के हाथों मजबूर इंसान, दूसरा रास्ता अख्तियार कर आखिर बुलंदी हासिल कर लेता है। ऐसा ही एक शख्स है नाहरी का नाका के मुनव्वरा मस्जिद निवासी सोलह वर्षीय शाहिद।
कुदरत ने भले ही उसे आंखे नहीं दी हों, लेकिन उसने अपने इरादों को कभी कमतर नहीं होने दिया। बचपन से गरीबी के आंचल में पले शाहिद ने अपनी काबलियत को पढ़ाई के माध्यम से पूरा किया। हालांकि उसके हमउम्र कुरान पढऩे वाले तो बहुत हैं, लेकिन पूरा कुराने हाफिज पढऩे वाले इक्के-दुक्के ही लोग मिलेंगे। मगर शाहिद इन सभी से अलग है। मन में सौम्यता लिए वह अपने नाम को तो सार्थक करता ही है वहीं कुराने हाफिज को कहीं से भी बिना देखे पढ़ लेता है। मन में मौलवी बनने की तमन्ना लिए शाहिद नाहरी का नाका स्थित मदरसा तालिमुल कुरआन में अरबी अब्बल का कोर्स कर रहा है।
मदरसा के नाजिम अब्दुल वासिद के अनुसार वह छह साल से तालीम हासिल कर रहा है। उसने हाल ही में जामिया तुल हिदाया में आयोजित अजान के कंपटीशन में चौथा स्थान प्राप्त किया है। वहीं मदरसे में पढऩे वाले सभी बच्चों में अव्वल है। मदरसा तालीमुल कुरान के अध्यश्र कामरेड कन्नू भाई ने बताया कि शाहिद के पिता बाबू खां का कोई अता पता ही नहीं है। मां जरीना मजदूरी करके जैसे तैसे घर का खर्च चलाती है। तंजीम-ए-यजदानी के अध्यश्र शौकत अली ने बताया कि ऐसे मेधावी छात्रों की लोगों को आगे बढ़कर सहायता करनी चाहिए।
बुधवार, 2 जून 2010
चढ़ावा अपार, खर्चा अपरंपार
गोविंद देव के एक करोड़, गणेशजी के लगता हैं 60 लाख का हर साल भोग----------------------
शहर के देवस्थान अधिकृत मंदिरों में आय से अधिक खर्चा, निजी एवं ट्रस्ट के मंदिरों में चढ़ावा आ रहा है अपार
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आम आदमी भले ही महंगाई से त्रस्त हो ,लेकिन भगवान के प्रति उनकी आस्था कम नहीं हुई और चढ़ावे में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी ही हो रही है। महंगाई ने जहां लोगों के रोजाना के मेन्यू में भले ही कमी कर दी हो, मगर ठाकुरजी के भोग और पोशाक में किसी तरह की कमी नहीं आई है। जयपुर के अराध्यदेव गोविंददेव जी के मंदिर में औसतन रोजाना भोग पर 25 से 27 हजार रुपए खर्च होता है यानी एक करोड़ रुपए सालाना, जबकि देवस्थान के 29 मंदिरों का भोग का रोजाना औसतन खर्चा मात्र 136 रुपए ही है।
जलेब चौक स्थित गोविंददेवजी मंदिर औसतन रोजाना 20 हजार दर्शनार्थी आते हैं ,वहीं यहीं के आनंदकृष्ण बिहारीजी मंदिर, बृजनिधिजी मंदिरों में भक्तों की संख्या मामूली है। विभागीय सूत्रों के अनुसार राज्य सरकार की उदासीनता के कारण देवस्थान के मंदिरों में भक्तों की संख्या कम हुई है। ट्रस्ट के मंदिरों में हालात अच्छे हैं। भगवान की पोशाक हर दिन नई होती है तथा हर झांकी में भगवान की पोशाक, शृंगार व भोग बदलता है।
सालाना एक करोड़ का भोग
देवस्थान के मंदिरों में वर्षभर में औसतन 45 हजार की राशि भोग में खर्च होती है जबकि गोविंददेवजी के भोग में करीब एक करोड़ की राशि खर्च हो जाती है। मोतीडूंगरी गणेश मंदिर में भोग पर प्रतिवर्ष औसतन साठ लाख रुपए खर्च होते हंैं।
शहर के प्रमुख मंदिर प्रन्यासों की आय-—व्यय
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मंदिर श्रीगोविंददेवजी
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वर्ष आय व्यय
2005 18167847.67 18167847.67
2006 23316664.10 23316664.10
2009 50625836.10 50625836.10
2010-11 64786064 64786064
मोतीडूंगरी गणेश मंदिर
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2004 9336288 9336288
2005 10638157 10638157
2006 11679050 11679050
2007 14504593.26 14504593.26
--------चांदपोल हनुमान मंदिर में 2005 से 2009 तक की आय 8,46,031 है और इतना ही खर्चा है।
--------देवस्थान के मंदिरों का आय व व्यय देखे तो खर्चा अधिक है। इनके मंदिरों में 2004---—05 से 2008—09 तक की आय 1,13,33,004 है वहीं 1,14,11,651 रुपए का खर्चा हैं।
इनका कहना है
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-देवस्थान विभाग में केवल आत्मनिर्भर श्रेणी के मंदिरों की आय-व्यय का ही ब्यौरा हमारे पास होता है देवस्थान के शेष मंदिरों की आय तो न के बराबर होती है जो किराए से आती है। प्रन्यास के मंदिरों की ऑडिट रिपोर्ट जितनी हमारे पास होती है वह हम उपलब्ध करा देते हैं।
पंकज प्रभाकर, सहायक आयुक्त(प्रथम), देवस्थान विभाग
—हर झांकी में भोग सभी मंदिरों में एक जैसा होता है, वहीं नित्य भोग भी उतना ही रहता है। यह राशि सिर्फ उत्सवों और त्यौहारों में अधिक हो जाती है। —मानस गोस्वामी, प्रवक्ता, गोविंददेवजी मंदिर
—प्रतिवर्ष मंदिर में 14 से 20 प्रतिशत आय बढ़ती है तो खर्च भी उसी हिसाब से बढ़ता है। फिर मंदिर में समय के अनुसार सिक्योरिटी बढ़ी तो अन्य सेवाएं भी बढ़ीं। इनके लिए मंदिर के भोग से ही भोजन की व्यवस्था की जाती है। इस कारण भोग में निरंतर बढ़ोतरी करनी पड़ती है। —महंत कैलाश शर्मा, मोतीडूंगरी मंदिर
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